धनुष से निकला तीर और मुँह से निकले शब्द वापस
नहीं लौटते, और आज के मीडिया-परिदृश्य में वे लगातार गूँजते रहते हैं। इसलिए
राजनेताओं को अपनी बातें कहने के पहले ठंडे दिमाग से सोचना चाहिए कि वे क्या कह
रहे हैं। सैम पित्रोदा ने अपने ‘हुआ तो हुआ’ बयान के लिए फौरन
माफी माँग ली, राहुल गांधी ने भी इसे अनुचित बताया। पर इससे आग बुझेगी नहीं। देखते
ही देखते नाराज सिखों की टोलियाँ सड़कों पर उतर आईं। पित्रोदा ने अपने हिन्दी भाषा
ज्ञान को भी दिया है। ऐसा ही दोष दिसम्बर 2017 में मणिशंकर अय्यर ने नरेन्द्र मोदी
को नरेन्द्र मोदी को ‘नीच’ बताने
वाले बयान के सिलसिले में बताया था। यह सफाई बाद में सोची गई है।
वास्तव में राजनेता अपने बयानों के अर्थ तभी समझते हैं, जब उन्हें
नुकसान होता है। उनमें समझदारी होती, तो माहौल इतना कड़वा नहीं होता, जितना हो गया
है। वस्तुतः यह शीशे का महल है, इसमें एक चीज के सैकड़ों, हजारों और लाखों
प्रतिविम्ब बनते हैं और बनते चले जाते हैं। पित्रोदा के इस बयान के साथ ही इस बात पर चर्चा
चल रही है कि 1984 में हिंसा के निर्देश पीएम हाउस से जारी हुए थे। पित्रोदा ने
वरिष्ठ वकील एचएस फुल्का के इस आशय के बयान को गलत बताया था। सिख समुदाय के बीच
फुल्का की बहुत इज्जत है। इस चर्चा के साथ पित्रोदा का ‘हुआ तो हुआ’ और मोदी का आईएनएस
विराट को लेकर दिया गया बयान भी आ गया। इन सब बातों ने आग में घी का काम किया है।
मार्च के महीने में पित्रोदा ने बालाकोट स्ट्राइक को लेकर कुछ सवाल
उठाए थे। इस वजह से उनके खिलाफ पहले से माहौल खराब था। बहरहाल उनके इस बयान से जो
नुकसान होना था, वह हो चुका है। इसकी
संवेदनशीलता से पार्टी भलीभाँति परिचित है, इसलिए उसने और पंजाब के मुख्यमंत्री
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खुद को इससे फौरन अलग किया।1984 की हिंसा अब भी बड़ी
संख्या में लोगों की दुखती रग है, जो चुनाव के वक्त कांग्रेस का दुःस्वप्न बनकर
खड़ी हो जाती है। पार्टी अब सफाई देती रहेगी, और लोगों के मन का दबा गुस्सा फिर से
भड़केगा।
यह बयान एक तरह से ‘आ बैल, मुझे मार’ की तरह है। वे कहना चाहते थे कि मोदी के पाँच साल के कार्यकाल पर
बातें होनी चाहिए, पर उनकी पार्टी की चुनाव-रणनीति खुद भ्रमों की शिकार है। पिछले
पाँच साल से कहा जा रहा है कि पार्टी को अपना नैरेटिव तैयार करना चाहिए। केवल मोदी
को निशाना बनाने से काम नहीं होगा। यह नकारात्मक राजनीति है। राजनीतिक सकारात्मकता
के लिए दीर्घकालीन रणनीति की जरूरत है।