Wednesday, February 20, 2019

इमरान खान पर भरोसा किसे है?



पुलवामा कांड पर पाँच दिन बाद अपनी प्रतिक्रिया में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि भारत हमें जानकारी दे, तो हम जाँच करेंगे। इस बात को काफी लोगों ने सकारात्मक रूप से लिया है, पर एक बड़ी संख्या में लोगों को, खासतौर से भारत के लोगों को विश्वास नहीं है। आज के इंडियन एक्सप्रेस में राहुल त्रिपाठी की एक रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया है कि इमरान पर यकीन न करने के कारण क्या हैं। आज के एक्सप्रेस में सम्पादकीय भी इसी विषय पर है। राहुल त्रिपाठी की रिपोर्ट में कहा गया है कि जैशे-मोहम्मद के बाबत भारत की और से दी गई सूचनाओं पर पाकिस्तान पहले से कुंडली मारे बैठा है। भारत के तमाम अनुरोधों के बावजूद वह कुछ करके नहीं दे रहा है। भारत में हुई कम से कम दो बड़ी आतंकी घटनाओं में मसूद अज़हर का नाम है। एक है 2001 का संसद पर हमला और दूसरी है 2016 का पठानकोट हमला। मसूद अज़हर के नाम दो बार इंटरपोल ने दो रेड कॉर्नर नोटिस जारी किए हैं। पहला 2004 में संसद पर हुए हमले के बाबत और दूसरा 2016 में पठानकोट हमले के संदर्भ में। 

Tuesday, February 19, 2019

कुलभूषण जाधव को क्या हम बचा पाएंगे?


पुलवामा कांड के ठीक चार दिन बाद सोमवार से हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में कुलभूषण जाधव के मामले की सुनवाई शुरू हो गई है, जो चार दिन चलेगी. इन चार दिनों में न केवल इस मामले के न्यायिक बिन्दुओं की चर्चा होगी, बल्कि भारत-पाकिस्तान रिश्तों की भावी दिशा भी तय होगी. भारत लगातार इस बात पर जोर दे रहा है कि पाकिस्तान का फौजी प्रतिष्ठान अंतरराष्ट्रीय नियमों-मर्यादाओं और मानवाधिकार के बुनियादी सिद्धांतों को मानता नहीं है. पर ज्यादा बड़ा सवाल है कि क्या हम कुलभूषण जाधव को छुड़ा पाएंगे? इस कानूनी लड़ाई के अलावा भारत के पास दबाव बनाने के और तरीके क्या हैं? पर इतना तय है कि आंशिक रूप से भी यदि हम सफल हुए तो वह पाकिस्तान पर दबाव बनाने में मददगार होगा.

इतिहास के बेहद महत्वपूर्ण पड़ाव पर हम खड़े हैं. इस मामले में अदालत ने सन 2017 में पाकिस्तान को आदेश दिया था कि वह जाधव का मृत्युदंड स्थगित रखे. अदालत का फैसला आने में चार-पाँच महीने लगेंगे, पर यह फैसला दोनों देशों के रिश्तों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. पाकिस्तान को लगता है कि भारत में चुनाव के बाद बनने वाली नई सरकार से उसकी बात हो सकती है, पर जाधव को कुछ हुआ, तो वार्ता की उम्मीद नहीं करनी चाहिए.

Sunday, February 17, 2019

जैश को भुगतना होगा




पुलवामा कांड पर देश में दो तरह की प्रतिक्रियाएं हैं। पहली है, निंदा नहीं, एक भी आतंकी जिंदा नहीं चाहिए...याचना नहीं, अब रण होगा...आतंकी ठिकानों पर हमला करो वगैरह। दूसरी है, धैर्य रखें, बातचीत से ही हल निकलेगा। दोनों बातों के निहितार्थ समझने चाहिए। धैर्य रखने का सुझाव उचित है, पर लोगों का गुस्सा भी गलत नहीं है। जैशे मोहम्मद ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है, जिसमें उसने बिलकुल भी देर नहीं लगाई है। उसके हौसले बुलंद हैं। जाहिर है कि उसे पाकिस्तान में खुला संरक्षण मिल रहा है। नाराजगी के लिए क्या इतना काफी नहीं है? अब आप किससे बात करने का सुझाव दे रहे हैं? जैशे-मोहम्मद से?

पुलवामा कांड में हताहतों की संख्या बहुत बड़ी है, इसलिए इसकी आवाज बहुत दूर तक सुनाई पड़ रही है। जाहिर है कि हम इसका निर्णायक समाधान चाहते हैं। भारत सरकार ने बड़े कदम उठाने का वादा किया है। विचार इस बात पर होना चाहिए कि ये कदम सैनिक कार्रवाई के रूप में होंगे या राजनयिक और राजनीतिक गतिविधियों के रूप में। सारा मामला उतना सरल नहीं है, जितना समझाया जा रहा है। अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के पुनरोदय से भी इसका रिश्ता है।

Tuesday, February 12, 2019

गुर्जर आंदोलन और आरक्षण का दर्शन


http://www.rashtriyasahara.com/epaperpdf//12022019//12022019-md-hr-10.pdf
राजस्थान में आरक्षण की मांग को लेकर गुर्जर समुदाय के लोग फिर से आंदोलन की राह पर निकल पड़े हैं। राजस्थान सरकार असहाय नजर आ रही है। सांविधानिक सीमा के कारण वह कोई फैसला कर पाने की स्थिति में नहीं है। आरक्षण के बारे में अब नए सिरे से विचार करने का समय आ गया है। सन 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने जाटों को ओबीसी कोटा के तहत आरक्षण देने के केंद्र के फैसले को रद्द करने के साथ स्पष्ट किया था कि आरक्षण के लिए नए आधारों को भी खोजा जाना चाहिए। अदालत की दृष्टि में केवल ऐतिहासिक आधार पर फैसले करने से समाज के अनेक पिछड़े वर्ग संरक्षण पाने से वंचित रह जाएंगे, जबकि हमें उन्हें भी पहचानना चाहिए।
अदालत ने ‘ट्रांस जेंडर’ जैसे नए पिछड़े ग्रुप को ओबीसी के तहत लाने का सुझाव देकर इस पूरे विचार को एक नई दिशा भी दी थी। कोर्ट ने कहा कि हालांकि जाति एक प्रमुख कारक है, लेकिन पिछड़ेपन के निर्धारण के लिए यह एकमात्र कारक नहीं हो सकता। पिछले 13 वर्ष में गुर्जर आंदोलनों में 72 व्यक्तियों की मृत्यु हो चुकी है। मई 2008 में भरतपुर की हिंसा में 15 व्यक्तियों की एक स्थान पर ही मौत हुई थी। स्थिति पर नियंत्रण के लिए सेना बुलानी पड़ा। राजस्थान के गुर्जर स्वयं को अनुसूचित जनजाति वर्ग में रखना चाहते थे, जैसाकि जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में है। मीणा समुदाय ने गुर्जरों को इस आरक्षण में शामिल करने का विरोध किया, क्योंकि यदि गुर्जरों को शामिल किया गया तो उनका कोटा कम हो जाएगा। गुर्जर बाद में अति पिछड़ा वर्ग में आरक्षण के लिए तैयार हो गए। पर कानूनी कारणों से उन्हें केवल एक फीसदी आरक्षण मिल पाया है।
केंद्र सरकार ने जबसे आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण की घोषणा की है और उसके लिए संविधान संशोधन भी किया है, उनकी माँग फिर से खड़ी हो गई है। चुनाव करीब हैं। आंदोलन का असर चुनाव पर पड़ने की उम्मीद भी है, शायद इसी वजह से वह फिर से भड़कता नजर आ रहा है। गुर्जरों की आबादी राजस्थान में सात फीसदी है। उनके आंदोलन की शुरूआत अपने लिए पाँच फीसदी आरक्षण की माँग से हुई थी। आंदोलन की शुरूआत सन 2006 में भरतपुर और दौसा में महापंचायतों से हुई थी।

अफ़ग़ानिस्तान में भारतीय भूमिका की परीक्षा

http://inextepaper.jagran.com/2022523/Kanpur-Hindi-ePaper,-Kanpur-Hindi-Newspaper-InextLive/12-02-19#page/8/1
अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी अब लगभग निश्चित है. अमेरिका मानता है कि पाकिस्तानी सहयोग के बिना यह समझौता सम्भव नहीं था. उधर तालिबान भी पाकिस्तान का शुक्रगुजार है. रविवार 10 फरवरी को पाकिस्तान के डॉन न्यूज़ टीवी पर प्रसारित एक विशेष इंटरव्यू में तालिबान प्रवक्ता ज़बीउल्ला मुजाहिद ने कहा कि हम सत्ता में वापस आए तो पाकिस्तान को भाई की तरह मानेंगे. उन्होंने कहा कि इस वक्त अफ़ग़ानिस्तान में जो संविधान लागू है, वह अमेरिकी हितों के अनुरूप है. हमारा शत-प्रतिशत मुस्लिम समाज है और हमारा संविधान शरिया पर आधारित होगा.

इसके पहले 6 फरवरी को मॉस्को में रूस की पहल पर हुई बातचीत में आए तालिबान प्रतिनिधियों ने कहा कि हम समावेशी इस्लामी-व्यवस्था चाहते हैं, इसलिए नया संविधान लाना होगा. तालिबानी प्रतिनिधिमंडल के नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकज़ाई ने कहा कि काबुल सरकार का संविधान अवैध है. उसे पश्चिम से आयात किया गया है. वह शांति के रास्ते में अवरोध बनेगा. हमें इस्लामिक संविधान लागू करना होगा, जिसे इस्लामिक विद्वान तैयार करेंगे.

सवाल है कि अफ़ग़ानिस्तान की काबुल सरकार को मँझधार में छोड़कर क्या अमेरिकी सेना यों ही वापस चली जाएगी? पाकिस्तानी सेना के विशेषज्ञों को लगता है कि अब तालिबान शासन आएगा. वे मानते हैं कि तालिबान और अमेरिका के बीच बातचीत में उनके देश ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है और इसका पुरस्कार उसे मिलना चाहिए. अख़बार ‘दुनिया’ में प्रकाशित एक आलेख के मुताबिक़ पाकिस्तान ने तालिबान पर दबाव डाला कि वे अमेरिका से बातचीत के लिए तैयार हो जाएं. इस वक्त वह ऐसा भी नहीं जताना चाहता कि तालिबान उसके नियंत्रण में है. अलबत्ता अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान की सरकार को आश्वस्त किया है कि हम उसे मँझधार में छोड़कर जाएंगे नहीं. अमेरिका शुरू से मानता रहा है कि तालिबान को पाकिस्तान में सुरक्षित पनाह मिली हुई है.