अब जब राहुल गांधी का
पार्टी अध्यक्ष बनना तय हो गया है, पहला सवाल जेहन में आता है कि इससे भारतीय
राजनीति में क्या बड़ा बदलाव आएगा? क्या राहुल के पास वह
दृष्टि, समझ और चमत्कार है, जो 133 साल पुरानी इस पार्टी को मटियामेट होने से बचा
ले? पिछले 13 साल
में राहुल की छवि बजाय बनने के बिगड़ी ज्यादा है. क्या वे अपनी छवि को बदल पाएंगे?
सितम्बर 2012 में
प्रतिष्ठित ब्रिटिश पत्रिका ‘इकोनॉमिस्ट’ ने ‘द राहुल प्रॉब्लम’ शीर्षक आलेख में लिखा, उन्होंने नेता के तौर पर कोई योग्यता
नहीं दिखाई है. वे मीडिया से बात नहीं करते, संसद में भी अपनी आवाज़ नहीं उठाते
हैं. उन्हें प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी कैसे माना जाए? यह बात आज से पाँच साल
पहले लिखी गई थी. इस बीच राहुल की विफलता-सूची और लम्बी हुई है.