खतौली के पास हुई ट्रेन दुर्घटना ने तीन-चार किस्म की चिंताओं को जन्म दिया है. पहली नजर में लगता है कि यह दुर्घटना मानवीय गलती का परिणाम है. एक तरफ भारतीय रेलवे 200 किलोमीटर की स्पीड से रेलगाड़ियाँ चलाने जा रहा है, दूसरी तरफ मानवीय गलतियों की संभावना अब भी बनी हुई है.
इन रेल दुर्घटनाओं को लेकर तीन बड़ी चिंताएं सामने आती
हैं. पहली चिंता यह कि रेल संरक्षा (सेफ्टी) को लेकर काकोदकर समिति की सिफारिशें
प्राप्त होने के पाँच साल बाद भी हम कोई बड़ा कदम नहीं उठा पाए हैं.
दूसरी चिंता यह है कि हम रेलगाड़ियों की स्पीड बढ़ाने पर
लगातार जोर दे रहे हैं, जबकि दुर्घटनाएं बता रहीं हैं कि सेफ्टी के सवालों का
संतोषजनक जवाब हमारे पास नहीं है. तीसरी बड़ी चिंता इस बात को लेकर भी है कि इनके
पीछे तोड़फोड़ या आतंकी संगठनों का हाथ तो नहीं है.
खतौली की दुर्घटना को लेकर फौरन नतीजों पर नहीं पहुँचा
जा सकता. अलबत्ता तोड़फोड़ या आतंकी गतिविधि के अंदेशे की जाँच करने के लिए उत्तर
प्रदेश एटीएस की टीम भी घटनास्थल पर पहुँची है. तोड़फोड़ के अंदेशे की जाँच फौरन
करने की जरूरत होती है, क्योंकि देर होने पर साक्ष्य मिट जाते हैं.
दुर्घटनाओं का संख्या बढ़ी है
बहरहाल यह बात परेशान करती है कि हाल में रेल दुर्घटनाओं
की संख्या बढ़ी है. खासतौर से रेलगाड़ियों के पटरी से उतरने की संख्या काफी ज्यादा
है. हाल में 9 अप्रैल को दक्षिण पूर्व रेलवे के हावड़ा-खड़गपुर खंड पर एक मालगाड़ी
पटरी से उतरी.