Sunday, November 15, 2015

आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक संधि में देर क्यों?

रात में भारतीय मीडिया पर लंदन के वैम्बले स्टेडियम की खबरें छाई थीं तो सुबह पेरिस में आतंकवादी हमलों की खबरें आने लगीं। हालांकि इन दोनों घटनाओं का एक-दूसरे से रिश्ता नहीं, पर एक बात शिद्दत से रेखांकित हुई कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के मार्फत एक वैश्विक संधि के लिए दोनों देशों के प्रयासों को शक्ल देने का समय आ गया है। नरेंद्र मोदी और ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड केमरन ने इस बात का उल्लेख किया कि मुम्बई पर हमला हो या लंदन के धमाके दोनों देश आतंकवाद के खतरे से वाकिफ हैं। इसका मुकाबला करने के लिए दोनों एक-जुट हैं। इस यात्रा के दौरान भारतीय राजनीति से जुड़े सवाल भी उठे हैं। अंदेशा है कि इसका इस्तेमाल भारत विरोधी ताकतें अपने हितों के लिए भी करेंगी। अंतरराष्ट्रीय मंच पर इस वक्त भारतीय भूमिका को बढ़ाने की जरूरत है। इसके लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का पुनर्गठन होना चाहिए साथ ही आतंकवाद से निपटने के लिए वैश्विक संधि होनी चाहिए। पेरिस में सौ से ऊपर लोगों की हत्या आतंकवादी आसानी से करने में इसलिए सफल हो पाए क्योंकि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई गोलबंदी की शिकार हो रही है। अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के पीछे संगठित राजशक्तियाँ भी है।

Wednesday, November 11, 2015

मोदी के खिलाफ युद्ध घोषणाएं

 
हिन्दू में केशव का कार्टून
भारतीय जनता पार्टी को यह बात चुनाव परिणाम आने के पहले समझ में आने लगी थी कि बिहार में उसकी हार होने वाली है। इसलिए पार्टी की ओर से कहा जाने लगा था कि इस चुनाव को केन्द्र सरकार की नीतियों पर जनमत संग्रह नहीं माना जा सकता। इसे जनमत संग्रह न भी कहें पर नरेन्द्र मोदी के खिलाफ वोटर की कड़ी टिप्पणी तो यह है ही। इस परिणाम के निहितार्थ और इस पराजय के कारणों पर विवेचन होने लगा है। पार्टी के बुजुर्गों की जमात ने अपनी नाराजगी लिखित रूप से व्यक्त कर दी है। यह जमात नरेंद्र मोदी की तब से विरोधी है जब उन्होंने प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनने के लिए दावेदारी पेश की थी। देखना होगा कि बुजुर्गों की बगावत किस हद तक मोदी को परेशान करेगी।  

Sunday, November 1, 2015

हाशिए पर जाने वाली है कांग्रेस

बिहार में चुनाव अब अंतिम दौर में है। परिणाम चाहे जो हो, उसका राष्ट्रीय राजनीति पर गहरा असर होने वाला है। भारतीय जनता पार्टी के भीतर नेतृत्व को लेकर असमंजस और भाजपा-विरोधी राष्ट्रीय गठबंधन की सम्भावनाएं इस पार या उस पार लगेंगी। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सामने आ रहे हैं। ममता बनर्जी ने समर्थन किया ही है। उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। महागठबंधन जीता तो श्रेय किसे मिलेगा? कांग्रेस को, राहुल गांधी को या लालू और नीतीश को? बिहार से आश्चर्यजनक खबरें मिल रहीं हैं कि कांग्रेसी प्रत्याशी लालू-नीतीश की मदद चाहते हैं सोनिया-राहुल की नहीं। परिणाम आने के बाद लालू-नीतीश को अफसोस होगा कि कांग्रेस को इतनी सीटें दी ही क्यों थीं। इस परिणाम की गूँज संसद के शीत सत्र में भी सुनाई पड़ेगी।  जीएसटी, भूमि अधिग्रहण तथा आर्थिक उदारीकरण से जुड़े कानूनों की दिशा का पता भी इससे लगेगा। जब तक राज्यसभा में कांग्रेस की उपस्थिति है वह खबरों में रहेगी, पर उसके बाद?

Thursday, October 29, 2015

गीता क्या रोशनी की किरण बनेगी?

पिछले साल केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद से विदेश नीति से जुड़े मामलों में उन्हें सफलता मिली है, पर पाकिस्तान के साथ रिश्तों में सुधार होने के बजाय तल्खी बढ़ी है. भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में एक-दूसरे के प्रति कड़वाहट है. दोनों तरफ का मीडिया इसमें तड़का लगाता है. ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब नकारात्मक खबर न होती हो. इधर भारत से भटक कर पाकिस्तान चली गई गीता की कहानी से कुछ सकारात्मक पहलू सामने आए हैं. पर पाकिस्तान के उर्दू मीडिया में इसके नकारात्मक पहलू को ज्यादा जगह मिली है.

पाकिस्तान में खबर सुर्खियों में है कि उनके ईधी फाउंडेशन ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दी गई एक करोड़ की धनराशि ठुकरा दी. ईधी फाउंडेशन ने गीता को अपने यहाँ रखा था. उसके स्थापक अब्दुल सत्तार ईधी ने प्रधानमंत्री को उनकी सहृदयता के लिए धन्यवाद देते हुए वित्तीय सहायता अस्वीकार कर दिया. साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि हम किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं लेते. इस खबर को पाकिस्तान में राष्ट्रवादी स्वाभिमान के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, जबकि ईधी फाउंडेशन ने ऐसा नहीं कहा.

Monday, October 26, 2015

पारम्परिक उद्यमों में नई रोशनी

अभिजित बनर्जी और एस्थर ड्यूफ्लो की पुस्तक ‘पुअर इकोनॉमिक्स’ में गरीबों की दशा सुधारने के बाबत उनकी उद्यमिता के बारे में एक अध्याय है। दुनिया के ज्यादातर देशों में छोटे और ऐसे पारम्परिक उद्यमियों की संख्या सबसे बड़ी होती है, जो सैकड़ों साल से चले आ रहे हैं। ज्यादातर नए हुनर किसी पारम्परिक हुनर का नया रूप हैं। भारत जैसे देश में गरीबी दूर करने में सबसे बड़ी भूमिका यहाँ के पारम्परिक उद्यमों की हो सकती है। अक्सर उत्पादन के तौर-तरीकों में बदलाव से पारम्परिक उद्यमों को धक्का लगता है, क्योंकि वे नए तौर-तरीकों को जल्द ग्रहण करने की स्थिति में नहीं होते। ऐसा भी नहीं कि वे उद्यम भावना में कच्चे होते हैं। किताब में उन्होंने लिखा, ‘कई साल पहले एक हवाई यात्रा में हमारे बराबर बैठे एक बिजनेसमैन ने बताया कि 1970 के दशक-मध्य में अमेरिका में एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद जब वह भारत वापस आए तो उनके अंकल वास्तविक उद्यमिता का पाठ पढ़ाने के लिए उन्हें घर से बाहर ले गए।…अंकल चाहते थे कि सड़क के साइडवॉक पर बैठी चार स्त्रियों को गौर से देखूँ।