Wednesday, November 11, 2015

मोदी के खिलाफ युद्ध घोषणाएं

 
हिन्दू में केशव का कार्टून
भारतीय जनता पार्टी को यह बात चुनाव परिणाम आने के पहले समझ में आने लगी थी कि बिहार में उसकी हार होने वाली है। इसलिए पार्टी की ओर से कहा जाने लगा था कि इस चुनाव को केन्द्र सरकार की नीतियों पर जनमत संग्रह नहीं माना जा सकता। इसे जनमत संग्रह न भी कहें पर नरेन्द्र मोदी के खिलाफ वोटर की कड़ी टिप्पणी तो यह है ही। इस परिणाम के निहितार्थ और इस पराजय के कारणों पर विवेचन होने लगा है। पार्टी के बुजुर्गों की जमात ने अपनी नाराजगी लिखित रूप से व्यक्त कर दी है। यह जमात नरेंद्र मोदी की तब से विरोधी है जब उन्होंने प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनने के लिए दावेदारी पेश की थी। देखना होगा कि बुजुर्गों की बगावत किस हद तक मोदी को परेशान करेगी।  

बिहार-पराजय का पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र पर असर होगा। आडवाणी जी की टोली ने बहुत से खामोश लोगों को बोलने का अवसर दे दिया है। इन लोगों का पार्टी नेतृत्व पर तानाशाही होने का आरोप है। इन बागियों को भाजपा विरोधी पार्टियों का समर्थन प्राप्त है, पर उनके कारण अलग हैं। मोदी विरोधी कम कट्टरपंथी हैं, ऐसा नहीं। हेट स्पीच, विवादास्पद बयानों और संकीर्ण हिन्दुत्व पर रोक नहीं लगाई गई तो पार्टी को इससे भी खराब स्थितियों का सामना करना पड़ेगा। पर बागियों ने हेट स्पीच वगैरह को लेकर कोई शिकायत नहीं की है। वे पार्टी के कट्टरपंथी रुझान को ही व्यक्त करते हैं। 

नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी को भी अपनी रणनीति के बाबत विचार करना होगा। अब से चार-पाँच महीने बाद तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल और असम में चुनाव होंगे। बंगाल और असम में भारतीय जनता पार्टी अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रही है। इन दोनों राज्यों में सामाजिक ध्रुवीकरण का प्रभाव राजनीति पर ज़रूर पड़ेगा। दोनों राज्यों की राजनीति में हिन्दू-मुस्लिम रिश्तों का स्थान महत्वपूर्ण बनता जा रहा है।

तमिलनाडु और केरल दो ऐसे राज्य हैं जहाँ भारतीय जनता पार्टी प्रवेश की कोशिश कर रही है। अभी तक उसे सफलता नहीं मिली है, पर अगले चुनाव में जीतोड़ कोशिश करेगी। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने तमिलनाडु के कुछ छोटे दलों के साथ गठबंधन भी किया था। बिहार में पार्टी ने जातीय गठबंधनों पर ध्यान दिया था। तमिलनाडु की राजनीति भी जातीय गठबंधनों पर केंद्रित है। इसके बाद 2017 में हिमाचल, गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और गोवा विधानसभाओं के चुनाव होंगे। ये सभी राज्य भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हैं। केवल इन राज्यों की सरकारों की दृष्टि से और भविष्य में राज्यसभा की सीटें तय करने के लिहाज से भी।

मंगलवार को आडवाणी-जोशी बयान आने के पहले एफडीआई के बाबत सरकार के नए कदमों की चर्चा थी। मोदी सरकार का ध्यान अब आर्थिक उदारीकरण से जुड़े कदमों की ओर होगा। उसके सामने संसद से जरूरी विधेयकों को पास कराने की जिम्मेदारी है, दूसरी ओर पार्टी के भीतर से उभर रहे विरोधी स्वरों को दबाने की जिम्मेदारी है। मोदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था में बदलाव लाने को मैराथन बताते हुए कहा है कि गरीबों को ताकतवर बनाने और देश में बदलाव के लिए आर्थिक सुधार जरूर किए जाएंगे। आर्थिक बदलाव हमारी राजनीति में पीछे न चले जाएं इसपर ध्यान देने की जरूरत है। हालांकि कुछ खाद्य वस्तुओं, खासतौर से दलहन और तिलहन की कीमतों में वृद्धि हुई है, पर मुद्रास्फीति काबू में हैं। बैंकों की ब्याज दरें कम होने का सिलसिला शुरू हो गया है। इससे इंफ्रास्ट्रक्चर में निर्माण की गतिविधियाँ बढ़ेंगी और रोजगार मिलेंगे।

नरेंद्र मोदी अब ब्रिटेन की यात्रा पर जाने वाले हैं। भारत की वैश्विक नीति अभी विस्तार के मोड में है। मोदी सरकार को यूरोप के साथ रिश्तों को सुधारना बाकी है। बिहार के चुनाव परिणामों का इस पर भी असर होगा। बहरहाल वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज़ एनालिटिक्स ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगाह किया कि यदि उनकी पार्टी के सदस्यों पर लगाम नहीं लगी देश की वैश्विक स्तर पर विश्वसनीयता कम हो जाएगी। मूडीज़ की एक रिपोर्ट में इस बात का इशारा किया गया है कि भारत को उन सुधार कार्यक्रमों पर अमल करना होगा, जिसका उसने वायदा किया है।


सरकार को संसद में एक रणनीति और सड़क पर दूसरी रणनीति का सहारा लेना होगा, पर यह ध्यान रखना होगा कि इन दोनों का एक-दूसरे पर विपरीत प्रभाव न पड़ने पाए। चुनाव जीतने के बाद लालू यादव ने पहली घोषणा की है कि हमारा अगला मुकाम दिल्ली है। यानी मोदी के खिलाफ युद्ध। पार्टी के भीतर उनके विरोधियों ने भी इसी समय युद्ध की घोषणा की है। देखना होगा कि संघ की राय क्या है। इधर भाजपा के गठबंधनों की परीक्षा भी होगी। बिहार में जीतन राम माझी और उपेंद्र कुशवाहा के साथ बने गठबंधन में दरार भी पड़ सकती है। इसी तरह महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबंधन में भी दरार पड़ने के आसार हैं। पिछले कुछ समय से शिवसेना भाजपा पर हमले बोल रही है। बिहार के परिणाम आने पर शिवसेना ने जो प्रतिक्रिया व्यक्त की है वह भाजपा को पसंद नहीं आएगी। फिलहाल हमें कुछ बातों का इंतजार करना होगा।  

Party
Won
Bharatiya Janata Party
53
Indian National Congress
27
Janata Dal (United)
71
Lok Jan Shakti Party
2
Rashtriya Janata Dal
80
Rashtriya Lok Samta Party
2
Communist Party of India (Marxist-Leninist) (Liberation)
3
Hindustani Awam Morcha (Secular)
1
Independent
4
Total
243



रविवार के हरिभूमि में प्रकाशित लेख नीचे पढ़ें

अब बदलेगी राजनीति
इन पंक्तियों के प्रकाशित होने के कुछ घंटे के भीतर बिहार के चुनाव परिणाम आपके सामने होंगे। परिणामों को लेकर अनुमान लगाने का समय भी अब नहीं बचा। एक्ज़िट पोल के परिणाम चाहे जो हों, पर ज्यादातर इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि चुनाव के ठीक पहले हुआ सामाजिक ध्रुवीकरण भाजपा के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे में महागठबंधन को एनडीए से 4 फीसदी ज्यादा वोट मिलने का अनुमान लगाया गया है। मतदान शुरू होने के एक हफ्ते पहले इसी संस्था ने दो सर्वे किया था उसमें स्थिति इसके उलट एनडीए की 4 फीसदी बढ़त दिखा रही थी।

सर्वेक्षणों और एक्ज़िट पोलों के परिणाम जो भी हों, वास्तविक परिणाम सामने आने के बाद भारतीय जनता पार्टी को आरक्षण, सामाजिक ध्रुवीकरण और नेताओं की हेट स्पीच के बाबत गहराई से विचार करना होगा। विचारधारा ही नहीं नेतृत्व को लेकर भी पुनर्विचार का अवसर अब मिलेगा। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी को भी अपनी रणनीति के बाबत विचार करना होगा। अब से चार-पाँच महीने बाद तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल और असम में चुनाव होंगे। बंगाल और असम में भारतीय जनता पार्टी अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रही है। इन दोनों राज्यों में सामाजिक ध्रुवीकरण का प्रभाव राजनीति पर ज़रूर पड़ेगा। दोनों राज्यों की राजनीति में हिन्दू-मुस्लिम रिश्तों का स्थान महत्वपूर्ण बनता जा रहा है।

तमिलनाडु और केरल दो ऐसे राज्य हैं जहाँ भारतीय जनता पार्टी प्रवेश की कोशिश कर रही है। अभी तक उसे सफलता नहीं मिली है, पर अगले चुनाव में जीतोड़ कोशिश करेगी। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने तमिलनाडु के कुछ छोटे दलों के साथ गठबंधन भी किया था। बिहार में पार्टी ने जातीय गठबंधनों पर ध्यान दिया था। तमिलनाडु की राजनीति भी जातीय गठबंधनों पर केंद्रित है। इसके बाद 2017 में हिमाचल, गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और गोवा विधानसभाओं के चुनाव होंगे। ये सभी राज्य भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हैं। केवल इन राज्यों की सरकारों की दृष्टि से और भविष्य में राज्यसभा की सीटें तय करने के लिहाज से भी।

दिल्ली की राजनीति में अब मोदी सरकार का सारा ध्यान आर्थिक उदारीकरण से जुड़े कदमों की ओर होगा। नरेन्द्र मोदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था में बदलाव लाने को मैराथन बताते हुए कहा है कि गरीबों को ताकतवर बनाने और देश में बदलाव के लिए आर्थिक सुधार जरूर किए जाएंगे। आर्थिक बदलाव हमारी राजनीति में पीछे न चले जाएं इसपर ध्यान देने की जरूरत है। एक बड़ा तबका अपने निजी फायदों के लिए आर्थिक सुधारों का विरोध करता है।  वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के साथ आयोजित छठे दिल्ली इकोनॉमिक कॉनक्लेव में मोदी ने कहा कि हमने 17 महीने पहले जब बागडोर संभाली थी उसके मुकाबले अर्थव्यवस्था बेहतर स्थिति में है।

हालांकि कुछ खाद्य वस्तुओं, खासतौर से दलहन और तिलहन की कीमतों में वृद्धि हुई है, पर मुद्रास्फीति काबू में हैं। बैंकों की ब्याज दरें कम होने का सिलसिला शुरू हो गया है। इससे इंफ्रास्ट्रक्चर में निर्माण की गतिविधियाँ बढ़ेंगी और रोजगार मिलेंगे। देखना यह है कि लगातार चुनाव की गतिविधियाँ चलने के कारण पार्टी की सामाजिक राजनीति हावी रहती है या आर्थिक सुधार पर भी ध्यान रहता है। बिहार का चुनाव विकास के नारों के साथ शुरू हुआ था और अंत हुआ हेट स्पीच और व्यक्तिगत आरोपों-प्रत्यारोपों के साथ।

इस महीने के दूसरे हफ्ते में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिटेन की यात्रा पर जाने वाले हैं। भारत की वैश्विक नीति अभी विस्तार के मोड में है। मोदी सरकार को यूरोप के साथ रिश्तों को सुधारना बाकी है। बिहार के चुनाव परिणामों का इस पर भी असर होगा। बहरहाल वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज़ एनालिटिक्स ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगाह किया कि यदि उनकी पार्टी के सदस्यों पर लगाम नहीं लगी देश की वैश्विक स्तर पर विश्वसनीयता कम हो जाएगी। मूडीज़ की एक रिपोर्ट में इस बात का इशारा किया गया है कि भारत को उन सुधार कार्यक्रमों पर अमल करना होगा, जिसका उसने वायदा किया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि संसद में विपक्ष के प्रतिरोध के कारण सुधारों से जुड़े कई महत्वपूर्ण सुधारों से सम्बद्ध विधेयक अटके पड़े हैं। एजेंसी ने कहा, सरकार को राज्यसभा में और कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा और ऐसे में वहां बहस आर्थिक नीति से भटक जाएगी।

मूडीज़ का अनुमान है कि सितंबर की तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 7.3 प्रतिशत रहेगी जबकि पूरे वित्त वर्ष के दौरान 7.6 प्रतिशत रहेगी। हालांकि आर्थिक सुधारों से सकल घरेलू उत्पाद के लिए बड़ी संभावनाएं पैदा हो सकती हैं, क्योंकि इससे भारत की उत्पादन क्षमता सुधरेगी। इनमें भूमि अधिग्रहण विधेयक, वस्तु एवं सेवा कर विधेयक और श्रम कानूनों में सुधार शामिल हैं। इनके अब 2015 में संसद में पास होने की संभावना नहीं है। सम्भव है कि 2016 में इन्हें पास करना सम्भव हो।  ब्याज दर कम होने से फौरी तौर पर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन लम्बे स्तर पर बेहतर परिणामों के लिए सुधार कार्यक्रम जरूरी हैं। बहरहाल भाजपा को अब संसद के शीत सत्र पर ध्यान देना है।

सरकार को संसद में एक रणनीति और सड़क पर दूसरी रणनीति का सहारा लेना होगा, पर यह ध्यान रखना होगा कि इन दोनों का एक-दूसरे पर विपरीत प्रभाव न पड़ने पाए। संसद में असहिष्णुता, दादरी काण्ड, दलित काण्ड, साहित्यकारों, इतिहासकारों, कलाकारों, वैज्ञानिकों एवं अन्य क्षेत्र के लोगों के सामूहिक विरोध का मामला भी उठेगा। कांग्रेस पार्टी फिलहाल विरोध के मूड में है और उसका समर्थन पाने के लिए भाजपा को किसी ऐसी रणनीति का सेहरा लेना होगा, जिससे टकराव कम हो। बिहार में बना महागठबंधन क्या राष्ट्रीय शक्ल ले सकेगा यह देखना होगा। लालू-नीतीश गठजोड़ क्या कायम रह पाएगा? बिहार में जीत गए तब भी और हारे तब भी।


इस दिलचस्प गठजोड़ ने राष्ट्रीय स्तर पर उत्सुकता को बढ़ा दिया है। दूसरी ओर भाजपा के गठबंधनों की परीक्षा भी होगी। यदि बिहार में एनडीए को अपेक्षित सफलता नहीं मिली तो जीत राम माझी और उपेंद्र कुशवाहा के साथ बने गठबंधन में दरार भी पड़ सकती है। यदि एनडीए सफल हुआ तो यही कहानी महागठबंधन में दुहराई जा सकती है। इसी तरह महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबंधन में भी दरार पड़ने के आसार हैं। बिहार के परिणामों के साथ दिलचस्प राजनीति का एक नया अध्याय शुरू होता है अब। 

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