Saturday, November 1, 2014

जानकारी देने में घबराते क्यों हो?

सूचना पाने के अधिकार से जुड़ा कानून बन जाने भर से काम पूरा नहीं हो जाता। कानून बनने के बाद उसके व्यावहारिक निहितार्थों का सवाल सामने आता है। पिछले साल जब देश के छह राजनीतिक दलों को नागरिक के जानकारी पाने के अधिकार के दायरे में रखे जाने की पेशकश की गई तो दो तरह की प्रतिक्रियाएं आईं। इसका समर्थन करने वालों को लगता था कि राजनीतिक दलों का काफी हिसाब-किताब अंधेरे में होता है। उसे रोशनी में लाना चाहिए। पर इस फैसले का लगभग सभी राजनीतिक दलों ने विरोध किया। पर प्रश्न व्यापक पारदर्शिता और जिम्मेदारी का है। देश के तमाम राजनीतिक दल परचूनी की दुकान की तरह चलते हैं। केवल पार्टियों की बात नहीं है पूरी व्यवस्था की पारदर्शिता का सवाल है। जैसे-जैसे कानून की जकड़ बढ़ रही है वैसे-वैसे निहित स्वार्थ इस पर पर्दा डालने की कोशिशें करते जा रहे हैं।  

Sunday, October 26, 2014

कांग्रेस की गांधी-छत्रछाया


पी चिदंबरम के ताज़ा वक्तव्य से इस बात का आभास नहीं मिलता कि कांग्रेस के भीतर परिवार से बाहर निकलने की कसमसाहट है। बल्कि विनम्रता के साथ कहा गया है कि सोनिया गांधी और राहुल को ही पार्टी का भविष्य तय करना चाहिए। हाँ, सम्भव है भविष्य में नेहरू-गांधी परिवार से बाहर का कोई नेता पार्टी अध्यक्ष बन जाए। इस वक्त पार्टी का मनोबल बहुत गिरा हुआ है। इस तरफ तत्परता से ध्यान देने और पार्टी में आंतरिक परिवर्तन करने का अनुरोध उन्होंने ज़रूर किया। पर यह अनुरोध भी सोनिया और राहुल से है। साथ ही दोनों से यह अनुरोध भी किया कि वे जनता और मीडिया से ज्यादा से ज्यादा मुखातिब हों। इस मामले में उन्होंने भाजपा को कांग्रेस से ज्यादा अंक दिए हैं।

Thursday, October 23, 2014

बदलते अंधेरे और बदलते चिराग़

इस साल लालकिले के प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, मेड इन इंडिया के साथ-साथ दुनिया से कहें मेक इन इंडिया. भारत की यात्रा पर आए चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने कहा, चीन दुनिया का कारखाना है और भारत दुनिया का दफ्तर. उधर सरसंघचालक मोहन भागवत ने विजयादशमी पर अपने संदेश में कहा, हम अपने देवी और देवताओं की मूर्तियां व अन्य उत्पाद भी चीन से खरीद रहे हैं, जिस पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए. जाने-अनजाने दीपावली की रात आप अपने घर में एलईडी के जिन नन्हें बल्बों से रोशनी करने वाले हैं उनमें से ज्यादातर चीन में बने हैं. वैश्वीकरण की बेला में क्या हम इन बातों के निहितार्थ और अंतर्विरोधों को समझ रहे हैं?

Wednesday, October 22, 2014

और अब आर्थिक सुधारों की उड़ान

नरेंद्र मोदी की सरकार वोटर को संतुष्ट करने में कामयाब है या नहीं इसका संकेतक महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों को माना जाए तो कहा जा सकता है कि जनता फिलहाल सरकार के साथ खड़ी है। और अब लगता है कि सरकार आर्थिक नीतियों से जुड़े बड़े फैसले अपेक्षाकृत आसानी से करेगी। सरकार ने कोल सेक्टर और पेट्रोलियम को लेकर दो बड़े फैसले कर भी लिए हैं। मई में नई सरकार बनने के बाद के शुरूआती फैसलों में से एक पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों से जुड़ा था। फिर प्याज, टमाटर और आलू की कीमतों को लेकर सरकार की किरकिरी हुई। मॉनसून भी अच्छा नहीं रहा। अंदेशा था कि दीपावली के मौके पर मतदाता मोदी सरकार के प्रति अपनी नाराज़गी व्यक्त करेगा। पर ऐसा हुआ नहीं। जैसाकि हर साल होता है दीपावली के ठीक पहले सब्जी मंडियों में दाम गिरने लगे हैं। टमाटर और प्याज अब आसानी से खरीदे जा सकते हैं। फूल गोभी सस्ती होने लगी है। मूली 10 रुपए किलो पर बिक रही है और इसके भी नीचे जाएगी। नया आलू आने के बाद उसके दाम गिरेंगे। वित्तमंत्री को लगता है कि अर्थ-व्यवस्था की तीसरी और चौथी तिमाही काफी बेहतर होने वाली है।

Sunday, October 19, 2014

चुनावी रंगमंच पर ‘मोदी मैजिक’ की पुष्टि

चुनावी रंगमंच पर ‘मोदी मैजिक’ का भविष्य

  • 5 घंटे पहले
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री, भारत, भारतीय जनता पार्टी, भाजपा
महाराष्ट्र और हरियाणा के विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मिली बढ़त भारतीय राजनीति में नए दौर की शुरुआत की तरह है.
लोकसभा चुनावों के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वीकार्यता की अग्निपरीक्षा के रूप में देखे जा रहे इन दोनों विधान सभा चुनावों ने भाजपा को सही मायनों में देश की प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित कर दिया है.
इन राज्यों में मिली सफलता भाजपा को अन्य राज्यों में अपना प्रभाव बढ़ाने में मदद करेगी.
लेकिन इस जीत से क्षेत्रीय दलों के भाजपा के ख़िलाफ़ एकजुट होने की मांग भी ज़ोर पकड़ सकती है.

पढ़ें प्रमोद जोशी का विश्लेषण विस्तार से

हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव परिणामों का रुख़ तीन बातों की ओर इशारा कर रहा है. भाजपा निर्विवाद रूप से देश की सबसे प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी बन चुकी है.
दूसरी ओर कांग्रेस के सामने क्षेत्रीय दल बनने का ख़तरा है. और क्षेत्रीय दलों के पराभव का नया दौर शुरू हो गया है.