जोनाथन स्विफ्ट ने लिखा है, 'दुनिया जिसे राजनीति के नाम से जानती
है वह केवल भ्रष्टाचार है और कुछ नहीं।' सत्रहवीं-अठारहवीं सदी के इंग्लैंड में राजनीतिक
व्यवस्था बन ही रही थी। पत्रकारिता जन्म ले रही थी। उन दिनों विमर्श पैम्फलेट्स के
मार्फत होता था। आपने ‘गुलीवर की यात्राएं’ पढ़ी
होंगी, उसके लेखक जोनाथन स्विफ्ट। स्विफ्ट अपने दौर के श्रेष्ठ पैम्फलेटीयर थे। वह
भी नई विधा थी। स्विफ्ट ने उस दौर की दोनों महत्वपूर्ण पार्टियों टोरी और ह्विग के
लिए पर्चे लिखे थे। वे श्रेष्ठ व्यंग्य लेखक थे। अखबारों में सम्पादकीय लेखन के सूत्रधार
थे, बल्कि पहले सम्पादकीय लेखक थे। तकरीबन तीन सौ साल पहले उनकी राजनीति के बारे में
ऐसी राय थी।
प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए
गुरुवार, 15 अगस्त, 2013 को 18:42 IST तक के समाचार
साल 2001 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से नरेंद्र मोदी राज्यस्तरीय स्वतंत्रता दिवस समारोह जिला मुख्यालयों पर आयोजित करते आ रहे हैं.
इस बार यह समारोह कच्छ जिला मुख्यालय भुज के लालन कॉलेज कैंपस में हुआ. वे पहले भी प्रधानमंत्री के स्वतंत्रता दिवस भाषणों की समीक्षा इस प्रकार करते रहे हैं, जैसी इस बार की. पर इस बार उन्होंने ख़बरदार करके यह हमला बोला है.
क्या यह एक नई परंपरा पड़ने जा रही है? केंद्र सरकार और केंद्रीय राजनीतिक शक्ति के साथ असहमतियाँ आने वाले समय में कम नहीं बल्कि ज़्यादा ही होंगी. ऐसे में क्या स्वतंत्रता दिवस के संबोधनों को राजनीतिक संबोधनों के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए. लेकिन लगता है कि लालकिले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस का संबोधन राजनीति से नहीं बच पाएगा.
मनमोहन सिंह यों भी सार्वजनिक सभाओं के लिहाज़ से अच्छे वक्ता नहीं हैं. ग्रासरूट राजनीति का उनका अनुभव नहीं है. उनके मुकाबले नरेंद्र मोदी शुरू से जमीन पर काम करते रहे हैं. उनके पास जनता को लुभाने वाले मुहावरे और लच्छेदार भाषा है. वे खांटी देसी अंदाज़ में बोलते हैं.