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अमेरिकी संसद के संयुक्त अधिवेशन में ट्रंप |
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने मंगलवार को एक बार फिर भारत पर उसके ऊँचे टैरिफ को लेकर निशाना साधा और संकेत दिया कि व्यापार समझौते के लिए बातचीत में पारस्परिक टैरिफ जैसे व्यापक शुल्कों पर नई दिल्ली को रियायतें नहीं मिलेंगी, जो 2 अप्रैल से प्रभावी होने वाले हैं। उन्होंने ऑटो सेक्टर का विशेष उल्लेख किया, जहाँ उन्होंने कहा कि भारत 100 प्रतिशत से अधिक टैरिफ वसूलता है।
अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए ट्रंप ने कहा, भारत हमसे 100 प्रतिशत टैरिफ वसूलता है; यह व्यवस्था अमेरिका के लिए उचित नहीं है, कभी थी ही नहीं। 2 अप्रैल से पारस्परिक टैरिफ लागू हो जाएंगे। वे हम पर जो भी टैक्स लगाएंगे, हम उन पर लगाएंगे। अगर वे हमें अपने बाजार से बाहर रखने के लिए गैर-मौद्रिक टैरिफ का इस्तेमाल करेंगे, तो हम उन्हें अपने बाजार से बाहर रखने के लिए गैर-मौद्रिक बाधाओं का इस्तेमाल करेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा के बाद भारतीय उद्योग जगत में यह उम्मीद जागी थी कि अमेरिका के साथ व्यापार समझौता नई दिल्ली को भारत में अमेरिकी उत्पादों के लिए बाजार पहुँच के बदले में व्यापक टैरिफ से राहत दिलाने में मदद करेगा। भारत ने बातचीत शुरू होने से पहले ही बोरबॉन ह्विस्की जैसी कई वस्तुओं पर टैरिफ में कटौती कर दी थी।
लंबा भाषण
उन्होंने कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए सबसे लंबे समय तक बोलने का रिकॉर्ड बनाया। एक घंटे और 40 मिनट से अधिक समय तक बोलते हुए उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के पिछले रिकॉर्ड को तोड़ दिया, जो एक घंटे, 28 मिनट और 49 सेकंड तक चला था। ट्रंप का यह वक्तव्य आम लोगों को चौंकाएगा, पर यह मानकर चलिए कि जैसा उन्होंने कहा है, वैसा ही होगा। उनका यह वक्तव्य केवल भारत पर केंद्रित नहीं है, बल्कि उनकी नीतियों के निहितार्थ पर केंद्रित है।
यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की से मंगलवार को प्राप्त एक पत्र को भी ट्रंप ने पढ़ा, जिसमें कहा गया है कि पिछले सप्ताह ओवल ऑफिस में हुई विस्फोटक बैठक के बाद रूस और यूक्रेन के बीच शांति समझौते के लिए हम फिर से वार्ता की मेज पर आना चाहते हैं। ट्रंप की लगभग हर पंक्ति पर रिपब्लिकन पार्टी के सदस्यों ने जोरदार तालियाँ बजाईं, जिसमें दो मौके ऐसे भी थे जब ट्रंप ने मस्क को भी निशाना बनाया, जो संसद का अभिवादन करने के लिए खड़े हुए थे।
संसद के संयुक्त अधिवेशन में राष्ट्रपति के वक्तव्य का विरोध भी हुआ। डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य, अल ग्रीन को बाहर निकालने का आदेश भी दिया गया क्योंकि उन्होंने हंगामा बंद करने से इनकार कर दिया था। उनका दावा था कि ट्रंप को स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रमों को खत्म करने का कोई अधिकार नहीं है।
व्यापार-युद्ध
व्यापार युद्ध के बारे में ट्रंप ने कहा कि टैरिफ से अमेरिका की अर्थव्यवस्था में कुछ अशांति भी देखने को मिलेगी। टैरिफ सिर्फ़ अमेरिकी नौकरियों की रक्षा के बारे में नहीं हैं। हमारे देश की अंतरात्मा के बारे में हैं। यह ऐसा उपकरण है, जो घरेलू उद्योगों को फलने-फूलने में मदद करेगा। बहरहाल व्यापार-नीतियों को लेकर उनका मुख्य निशाना चीन है। उन्होंने यह भी कहा कि यह तो शुरुआत है।
भारत सरकार भी इस बात को जानती है और टैरिफ के प्रभाव को कम करने के प्रयास दोनों तरफ से चल भी रहे हैं। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल सोमवार को अमेरिका यात्रा पर रवाना हो गए हैं, जहाँ वे अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जैमीसन ग्रीअर से मुलाकात करेंगे, जिन्हें ट्रंप की टैरिफ योजना को लागू करने का काम सौंपा गया है। ट्रंप के 2016-20 के दौर में भी ग्रीअर प्रशासन का हिस्सा थे। उन्होंने व्यापक रूप से चीन को निशाना बनाया था, जिससे भारत को खासतौर से इलेक्ट्रॉनिक्स में निर्यात के अवसर मिले।
अमेरिकी संसद में ट्रंप ने यह भी कहा कि दूसरे देशों ने कई सालों से अमेरिका पर टैरिफ लगाए हैं और अब समय आ गया है कि अमेरिका उन देशों के खिलाफ टैरिफ लगाए। उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ, चीन, ब्राजील और भारत जैसे देश अमेरिका पर बहुत ज़्यादा टैरिफ लगाते हैं, जबकि अमेरिकी टैरिफ इतना नहीं है। यह स्थिति अनुचित है।
भारत पर असर
रेटिंग एजेंसी मूडीज़ ने पिछले महीने कहा था कि भारत, वियतनाम और थाईलैंड जैसे विकासशील देशों में अमेरिका की तुलना में ब्याज दरों में सबसे अधिक अंतर है और अमेरिका के पारस्परिक टैरिफ का सबसे अधिक प्रभाव इन पर पड़ सकता है।
मूडीज़ की रिपोर्ट में कहा गया है, भारत का इस क्षेत्र के अन्य क्षेत्रों की तुलना में कुल जोखिम कम है, हालांकि खाद्य और वस्त्र जैसे कुछ क्षेत्रों के साथ-साथ दवा उत्पादों को भी जोखिम का सामना करना पड़ता है। हमारे रेटेड पोर्टफोलियो में ज्यादातर कंपनियां घरेलू स्तर पर केंद्रित हैं, जिनका अमेरिकी बाजार में सीमित जोखिम है।
रेटिंग एजेंसी ने बताया कि लक्षित एशिया-प्रशांत अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं पर संभावित रूप से अधिक पूंजी बहिर्प्रवाह (आउटफ्लो) और संभवतः मजबूत अमेरिकी डॉलर के कारण निरंतर गिरावट का दबाव बना रह सकता है, क्योंकि क्षेत्रीय केंद्रीय बैंकों के पास आर्थिक विकास को सहारा देने के लिए घरेलू मौद्रिक नीतियों को सरल बनाने के लिए बहुत कम समय है।
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