Wednesday, October 30, 2024

केजरीवाल की नाटकीय-राजनीति की परीक्षा

अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे की घोषणा से बहुत से लोगों को हैरत हुई है, पर आप गहराई से सोचें तो पाएंगे कि वे इसके अलावा कर ही क्या सकते थे। अगले कुछ महीने वे दिल्ली के कार्यमुक्त मुख्यमंत्री के रूप में अपने पद पर बने रहते, तो जनता के सामने जो संदेश जाता, उसकी तुलना में ऐसी मुख्यमंत्री के संरक्षक के रूप में बने रहना ज्यादा उपयोगी होगा, जिसका ध्येय उनको मुख्यमंत्री की कुर्सी पर वापस लाना है। बावजूद इसके कुछ खतरे अभी बने हुए हैं, जो केजरीवाल को परेशान करेंगे।

आतिशी की परीक्षा

आतिशी मार्लेना (या सिंह) कार्यकुशल साबित हुईं तब और विफल हुईं तब भी, पहला खतरा उनसे ही है। भले ही वे भरत की तरह कुर्सी पर खड़ाऊँ रखकर केजरीवाल की वापसी का इंतजार करें, पर जनता अब उनके कामकाज को गौर से देखेगी और परखेगी। आतिशी के पास अब भी वे सभी 13 विभाग हैं जो पहले उनके पास थे, जिनमें लोक निर्माण विभाग, बिजली, शिक्षा, जल और वित्त आदि शामिल हैं। इसके विपरीत मुख्यमंत्री के रूप में केजरीवाल के पास कोई भी विभाग नहीं था। आतिशी पर काम का जो दबाव होगा, वह केजरीवाल पर नहीं था और वे राजनीति के लिए काफी हद तक स्वतंत्र थे।

पिछले कुछ महीनों में दिल्ली की जनता ने केवल केजरीवाल और ईडी-सीबीआई प्रकरण को ही नहीं देखा है, बल्कि पहले पेयजल की किल्लत और फिर सड़कों पर जल-भराव को झेला है। आतिशी-सरकार के सामने अब दिल्ली का सालाना प्रदूषण-संकट खड़ा होने वाला है, जो दीपावली के ठीक पहले आता है। वह आतिशबाजी की वजह से आता है या खेतों में पराली जलने से पैदा होता है, इसका फैसला अभी तक हो नहीं पाया है।

कितनी लोकप्रियता?

आम आदमी पार्टी के सामने दूसरा सवाल राजनीति से जुड़ा है। आप के वरिष्ठ नेता गोपाल राय ने कहा है कि हम चाहते हैं कि दिल्ली में अक्तूबर-नवंबर में चुनाव हों, पर लगता यही है कि चुनाव फरवरी 2025 में ही होंगे। 2015 में आप ने 70 में से 68 सीटें जीती थीं, जबकि 2020 में उसे 62 सीटें मिलीं। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने आठ सीटें जीती थीं।

क्या उसे आगामी चुनाव में स्पष्ट बहुमत मिलेगा? मिला भी और वैसा जबर्दस्त बहुमत नहीं मिला, जैसा पिछले दो चुनावों में मिला था, तब भी सवाल पूछे जाएँगे? आम आदमी पार्टी और इंडिया गठबंधन की  दोस्ती के सवाल भी पूछे जाएँगे। हरियाणा के चुनाव परिणाम भी इन पंक्तियों का प्रकाशन होने तक आ चुके होंगे या आ रहे होंगे। पार्टी ने महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव-मैदान में भी उतरने की घोषणा की है। वह जल्दी से जल्दी राष्ट्रीय-स्तर पर विस्तार पाना चाहती है। इससे खतरा किसके लिए पैदा होगा? बीजेपी या कांग्रेस के लिए?

थोड़ी देर के लिए मान लेते हैं कि आम आदमी पार्टी दिल्ली के चुनाव में बहुमत हासिल कर भी लेगी, तब भी क्या केजरीवाल मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ पाएँगे? ऐसा लगता है कि जमानत पर उनकी रिहाई से जुड़ी शर्तें जारी रहेंगी। जारी रहीं, तब भी क्या वे कुर्सी पर बैठ सकेंगे? इस किस्म के जटिल सवाल अभी अनुत्तरित हैं। यदि उन्हें पूर्ण बहुमत नहीं मिला और दिल्ली में त्रिशंकु विधानसभा का गठन हुआ, तब क्या होगा? क्या आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की गठबंधन सरकार बन सकती है? इस किस्म के सवालों के जवाबों के साथ पार्टी का भविष्य जुड़ा है। क्या पार्टी का कोई भविष्य है?इस किस्म के सवालों के जवाबों के साथ पार्टी का भविष्य जुड़ा है। क्या पार्टी का कोई भविष्य है?

नाटकीयता

अक्सर पूछा जाता है कि केजरीवाल की राजनीति में इतनी नाटकीयता क्यों होती है? मसलन वे सीधे-सीधे इस्तीफा भी दे सकते थे। या उन्होंने तभी इस्तीफा क्यों नहीं दे दिया, जब उन्हें गिरफ्तार किया गया था?  उनका कहना है, पहले हम एक सिद्धांत के ले लड़ रहे थे, और अब हम दूसरे सिद्धांत के लिए लड़ रहे हैं। वे अपने हरेक कदम को किसी आदर्श के साथ जोड़ लेते हैं, पर वस्तुतः उनपर आज लोगों का वैसा भरोसा नहीं नहीं है, जैसा 2010-12 में था।

अक्सर उनके कार्यक्रम गांधी-समाधि से जुड़े होते हैं। हाल में उन्होंने भगत सिंह से लेकर राम के बनवास और सीता माता के रूपकों का इस्तेमाल किया है। अब उन्होंने कहा है कि भाजपा के फर्जी आरोपों की वजह से इस्तीफा दे रहा हूं और अब मैं जनता की अदालत में जाऊँगा। इसके लिए उन्होंने जंतर-मंतर में जनता अदालत लगाई। उन्होंने अब कहा है कि दिल्ली की जनता मानती है कि केजरीवाल ईमानदार है तो उन्हें वोट देना और मुख्यमंत्री बनाना। उनके जवाब में भाजपा ने जनता दरबार लगाने शुरू किए हैं।

जनता से संवाद

केजरीवाल ने कई साल पहले नरेंद्र मोदी के 'मन की बात' की तर्ज पर अपना 'टॉक टू एके' शुरू किया था। उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों से बातचीत की कशिश की और दावा किया कि प्रधानमंत्री के रेडियो कार्यक्रम के एकतरफा संवाद के विपरीत, मैं लोगों के सवालों के जवाब दूँगा। 11 जनवरी 2014 को जब दिल्ली सचिवालय में पहला जनता दरबार आयोजित किया गया, तो मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्रियों को तमाम शिकायतों का सामना करना पड़ा। कार्यक्रम में हज़ारों लोग आ गए और केजरीवाल को सत्र को बीच में ही रोकना पड़ा। भीड़ के अनियंत्रित होने के कारण उन्हें वहाँ से हटना पड़ा। दो साल के भीतर जनता से सीधे संपर्क की उनकी पहल ने दम तोड़ना शुरू कर दिया। लोगों का उत्साह खत्म हो गया।

उन्हें कई शर्तों के साथ जमानत पर अंतरिम रिहाई मिली है। वे अपने दफ्तर या सचिवालय नहीं जा सकेंगे और केवल उन्हीं फाइलों को देख या उनपर दस्तखत कर पाएंगे, जिन्हें एलजी की स्वीकृति लिए भेजना है। एक तरह से वे पावर से दूर हो जाएंगे। जब तक वे जेल में थे, जनता यह देख नहीं पाती थी, पर अब यह सब सामने होगा।

संदेह बना रहेगा

कहा जा रहा है कि शराब नीति से जुड़े मामलों में ईडी-सीबीआई ने आम आदमी पार्टी के नेताओं समेत अन्य जितने भी लोगों को गिरफ्तार किया था, उनमें से ज्यादातर को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल चुकी है। केस की सुनवाई के दौरान अदालत की टिप्पणियों से सीबीआई की काफी फज़ीहत हुई है। इन सब बातों को जोड़कर आम आदमी पार्टी ऐसा माहौल बना रही है कि आबकारी-नीति मामले में वह पाक-साफ है। सीबीआई और ईडी ने उन्हें जबरन फँसाने की साजिश की है।

ऐसा वे पहले से कहते रहे हैं। यह मान भी लिया कि सीबीआई ने अदालत के सामने ऐसे तथ्य नहीं रखे, जिनसे जमानत पर उनकी रिहाई रुक जाती, पर मुकदमा तो निचली अदालत में चलना है। जमानत पर रिहाई, तो यों भी देर-सबेर होनी थी, पर इस मामले में तमाम नाम और परिस्थितियाँ कहीं न कहीं संदेह तो पैदा कर ही रही हैं। एक-एक चीज का सबूत नहीं भी हो, पर जनता के मन के संदेह दूर करने की जरूरत तो उन्हें होगी।

हमदर्दी जीतने की कोशिश

केजरीवाल ने पहले तो यह कहकर इस्तीफा नहीं दिया कि उनका इस्तीफा लेकर बीजेपी दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार गिराने की साजिश कर रही है। अब उनके इस्तीफे से क्या सरकार गिर जाएगी? शायद उन्हें लगता है कि जनता की हमदर्दी उन्हें मिलेगी। वे यह संदेश देना चाहते हैं कि केजरीवाल को सत्ता का लालच नहीं है। पर जनता इन बातों को कई तरह से देखती है। वे अतीत में कई बार इस किस्म के फैसले करते रहे हैं।

केजरीवाल चाहते हैं कि महाराष्ट्र के साथ दिल्ली विधानसभा के चुनाव भी करा लिए जाएं। उनकी पार्टी महाराष्ट्र में भी सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। उन्हें पिछले दिनों गुजरात में इसका फायदा मिला था, पर नुकसान कांग्रेस का हुआ था। फिर भी वे बीजेपी-विरोध की खातिर इंडिया गठबंधन में भी शामिल हो गए। हरियाणा में भी कांग्रेस के साथ गठबंधन की बातें थी, जो हुआ नहीं। और अब लग रहा है कि दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भी उनकी पार्टी अकेले उतरेगी। यह उनका सबसे महत्वपूर्ण चुनाव होगा। आम आदमी पार्टी के प्राण दिल्ली में बसते हैं। यहाँ वह सत्ता से खिसकी, तो ताश के पत्तों की तरह उनका किला बिखर जाएगा।

भारत वार्ता में प्रकाशित

 

 

 

 

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