Friday, August 9, 2024

देस-परदेस: पश्चिम एशिया के आकाश पर युद्ध के बादल


हमास के प्रमुख इस्माइल हानिये और हिज़बुल्ला के टॉप कमांडर फवाद शुकर की हत्याओं के बाद दो तरह की बातें हो रही हैं. इसराइल और ईरान के बीच सीधी लड़ाई होने का खतरा पैदा हो रहा है. हानिये की हत्या कहीं और हुई होती, तब शायद बात दूसरी होती, पर तेहरान में हत्या होने से लगता है कि ईरान को सायास लपेट लिया गया है.

दूसरी बात इस हत्या से जुड़ी पेचीदगियाँ हैं. इतने सुरक्षित इलाके में हत्या हुई कैसे? इसराइल ने भी की, तो कैसे? ईरान की सरकारी फ़ारस समाचार एजेंसी के अनुसार, जिस जगह पर इस्माइल हनिये रह रहे थे, वहाँ बिल्डिंग के बाहर से शॉर्टरेंज प्रक्षेपास्त्र या प्रोजेक्टाइल दाग़ा गया, जिसमें सात किलो का विस्फोटक लगा था.

यह बयान ईरानी रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स का है. इसमें कहा गया है कि इस अभियान की योजना और इसका कार्यान्वयन इसराइली सरकार ने किया था, जिसे अमेरिकी सरकार का समर्थन मिला हुआ है.

बढ़ती पेचीदगियाँ

पेचीदगी अमेरिकी मीडिया स्रोतों की इस खबर से भी बढ़ी है कि हत्या के लिए, जिस विस्फोटक का इस्तेमाल हुआ है, वह करीब दो महीने पहले उस कक्ष में लगा दिया गया था, जिसमें हानिये ठहरे थे. उसे रिमोट की मदद से दागा गया.

इसराइल ने इस सिलसिले में कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है. अमेरिका ने कहा है कि इस हमले से हमारा कोई लेना-देना नहीं है. हनिये तेहरान में कहाँ रुके थे, इस बारे में न तो आधिकारिक जानकारी उपलब्ध है और न उनकी मौत के बारे में इस बयान से ज्यादा कोई अधिक विवरण सामने आया है.

घटनास्थल की कोई तस्वीर और वीडियो तक जारी नहीं किया गया. यहाँ तक ​​कि हनिये और उनके अंगरक्षक की भी कोई फोटो जारी नहीं की गई. इस्माइल हानिये, ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए तेहरान गए थे.

सीधा हमला?

उधर टाइम्स ऑफ इसराइल की वैबसाइट की एक खबर ने सनसनी फैला दी है, जिसके अनुसार हत्या से नाराज़ ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामनेई ने इसराइल पर सीधे हमले का आदेश दिया है. शुरुआती नाराज़गी में ऐसी बात स्वाभाविक है और ईरान कुछ न कुछ करेगा जरूर, पर अब लगता है कि वह जल्दबाजी भी नहीं करेगा.

ईरान ने इस्लामी देशों के संगठन (ओआईसी) की असाधारण बैठक बुलाने का आह्वान किया है. इसका मतलब है कि वह इस लड़ाई को डिप्लोमैटिक मोर्चे पर भी ले जाएगा. इसके दो कारण हैं. एक तो देश के नए राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान का सत्तारोहण और दूसरे युद्ध के जोखिमों से जुड़ा आकलन.  

कतर के प्रधानमंत्री मुहम्मद बिन अब्दुल रहमान अल थानी ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा, एक पार्टी बातचीत में शामिल लोगों की हत्या कर रही है. ऐसे में युद्धविराम के लिए चल रही वार्ता को आगे ले जाना मुश्किल होगा.

लेबनॉन का मोर्चा

कतर सरकार का दोनों पक्षों पर प्रभाव कम होता जा रहा है. इसराइल की ओर से अचानक कार्रवाई में आई तेजी के पीछे एक वजह 27 जुलाई को गोलान हाइट्स में फुटबॉल के एक मैदान पर हुआ रॉकेट हमला है, जिसमें 12 लोगों की मौत होने की खबर है. इनमें ज्यादातर बच्चे थे.

माना जा रहा है कि वह हमला हिज़बुल्ला ने किया था. हिज़बुल्ला ने दावा किया है कि हम इसराइल में घुसकर मार करेंगे. गज़ा के बाद अब लेबनॉन युद्ध का केंद्र बन सकता है. अमेरिका, ब्रिटेन, स्वीडन, फ्रांस, कनाडा और जॉर्डन जैसे कई मुल्कों ने अपने नागरिकों से जल्दी लेबनान छोड़ने की अपील की है.

लड़ाई होगी या नहीं, कहना मुश्किल है, पर अमेरिका ने अपने युद्धपोतों, लड़ाकू विमानों और सैन्यबलों को पश्चिम एशिया की ओर रवाना किया है. अमेरिकी रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन ने कहा है कि इसराइल पर हमला हुआ, तो अमेरिका उसकी रक्षा करेगा. यानी लड़ाई हुई, तो अकेले इसराइल से नहीं होगी, अमेरिका से भी होगी.

इसराइली कार्रवाई

इसराइल केवल गज़ा में ही हमले नहीं कर रहा है, बल्कि हमास और हिज़्बुल्ला के नेताओं को चुनकर निशाना बना रहा है. हाल में उसने यमन में हूती और लेबनॉन में हिज़बुल्ला के ठिकानों पर हमले बोले हैं. शनिवार को जॉर्डन नदी के पश्चिमी किनारे के एक इलाक़े में उसके ड्रोन हमले में एक स्थानीय हमास नेता सहित नौ लोग मारे गए.

इन हमलों से केवल यही साबित नहीं हो रहा है कि इसराइल के पास अचूक हमले करने की तकनीकी सामर्थ्य है, बल्कि साबित यह हो रहा है कि वह दुनिया के बहुत बड़े हिस्से के विरोध के बावजूद कार्रवाई कर रहा है.

इसराइली सेना का कहना है कि उन्होंने जिस वाहन पर हमला किया था, उसमें पाँच बंदूकधारी सवार इसराइल पर हमला करने जा रहे थे. मारे गए हमास नेता का नाम हैथम बलिदी है. वे हमास की सैन्य शाखा इज़्ज़-ए-दीन अल-क़स्साम ब्रिगेड के एक स्थानीय कमांडर थे.

जनता की नाराज़गी

इन सभी घटनाओं की प्रतिक्रिया में मोरक्को से लेकर तेहरान तक पूरे पश्चिम एशिया में लोग सड़कों पर उतर आए हैं. हिज़्बुल्ला के नेता हसन नसरल्लाह ने कहा है कि इसराइल के साथ हमारी लड़ाई नए दौर में प्रवेश कर गई है. अब हम जवाबी कार्रवाई करेंगे.

इस गरमा-गरमी के बीच गज़ा में युद्धविराम के लिए बातचीत और फलस्तीनी समस्या के स्थायी समाधान के प्रयास भी चल रहे हैं. काहिरा में चल रही समझौता वार्ता में इसराइली प्रतिनिधि भी शामिल हुए हैं. एक वार्ता रोम में भी चल रही है. गज़ा में इसराइली सैनिक-कार्रवाई में अब तक करीब 40 हजार लोगों की मौत हो चुकी है.

गत 2 अगस्त को हानिये और उनके साथ मारे गए अंगरक्षक को दोहा में दफना दिया गया. इसके साथ ही इस बात की चर्चा होने लगी कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा. ताज़ा खबर है कि याह्या सिनवार को नया नेता चुना गया है.  

हत्या को लेकर कयास

हानिये की हत्या को लेकर इसराइल ने कोई बयान नहीं दिया है, पर हमास मानता है कि इसके पीछे इसराइल का हाथ है. इसराइल ने यह जानकारी जरूर दी है कि गत 13 जुलाई को गज़ा पर हुए हवाई हमले में हमास की सैनिक शाखा के प्रमुख मुहम्मद दैफ मारे गए हैं. इसके पहले इसराइल ने यह दावा भी किया था कि हिज़्बुल्ला के कमांडर फवाद शुकर भी मारे गए हैं.

इस्माइल हानिये की हत्या किसने की और कैसे की, इसे लेकर कई तरह के कयास हैं. शुरू में लगता था कि जिस गेस्टहाउस में वे ठहरे थे, शायद उसपर मिसाइल से या पास से किसी जगह से एंटी-टैंक मिसाइल से हमला किया गया होगा.

ईरानी कुद्स नेटवर्क के अनुसार, हानिये जिस गेस्ट हाउस में ठहरे थे वह इमारत खुली जगह पर स्थित है और पहाड़ियों और पेड़ों से घिरी हुई है. शायद क़रीब की पहाड़ी से एंटी टैंक मिसाइल से हमला किया गया होगा.

महीन प्लानिंग

इस बीच न्यूयॉर्क टाइम्स ने गुरुवार को अमेरिकी रक्षा-स्रोतों के हवाले से जो खबर दी है उससे कुछ सवाल खड़े होते हैं. अखबार के अनुसार हानिये जहाँ ठहरे थे, वहाँ दो महीने पहले विस्फोटक लगा दिए गए थे, जिन्हें अब रिमोट से चलाया गया. यह विस्फोट रात के करीब दो बजे किया गया.

अखबार ने कई तरह के स्रोतों के आधार पर लिखा है कि विस्फोट के पीछे इसराइल का ही हाथ है. अखबार ने पश्चिम एशिया के कुछ अधिकारियों को उधृत करते हुए लिखा है कि हत्या के बाद इसराइली इंटेलिजेंस के लोगों ने अमेरिकी अधिकारियों को इस बारे में ब्रीफ भी किया है.

रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स के अधिकारियों का हवाला देते हुए न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि विस्फोट से जहाँ खिड़कियों के शीशे टूट गए और कंपाउंड की दीवार का क हिस्सा भी गिर गया, पर बिल्डिंग को खास नुकसान नहीं पहुँचा है. यहाँ तक कि हानिये, जिस कमरे में थे, उसके बराबर वाले कमरे को भी खास नुकसान नहीं पहुँचा. मिसाइल का हमला होता तो बिल्डिंग का काफी हिस्सा गिर जाता.

कौन है भेदिया?

इसका मतलब क्या है? क्या उन्हें पता था कि इस कमरे में हानिये ठहरेंगे? शायद वे जानते हैं कि विशिष्ट अतिथियों का कक्ष है, जिसमें कभी न कभी कोई न कोई विशिष्ट मेहमान आकर टिकेगा. सवाल है कि क्या कुछ और जगहों पर भी ऐसे विस्फोटक लगे हो सकते हैं?

रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स के लोग मानते हैं कि यह हमला उतना ही अचूक था, जितना 2020 में ईरानी नाभिकीय वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की हत्या के लिए इस्तेमाल की गई मशीनगन के इस्तेमाल का था. वे मानते हैं कि हानिये की हत्या के लिए इस्तेमाल किया गया रिमोट काफी दूर से संचालित था.

यह विशेष सुरक्षित क्षेत्र है, जिसका जिम्मा ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स यानी सेना के पास है. नेशत नाम की इस बिल्डिंग में मेहमान ठहरते ही नहीं गोपनीय बैठकें भी यहाँ होती हैं. इतने सुरक्षित इलाके में बम तभी लगाया जा सकता है, जब इसराइली या अमेरिकी एजेंट ईरान के रक्षातंत्र के भीतर पैठ बना चुके हों. 

आधिकारिक रूप से रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स ने इस थ्योरी को स्वीकार नहीं किया है. गार्ड्स ने कहा है कि हानिये की हत्या शॉर्ट रेंज से प्रक्षेपित करीब सात किलोग्राम वजन के विस्फोटक से उनकी हत्या हुई है. यानी कि बिल्डिंग के बाहर से उन्हें निशाना बनाया गया. ऐसा है, तब भी कुछ सवाल उठते हैं. कौन था, जो उस बिल्डिंग के करीब पहुँचा और पकड़ में नहीं आया?

भारतीय दुविधा

हानिये की हत्या के बाद वैश्विक-प्रतिक्रिया हुई है, पर भारत सरकार ने कोई बयान जारी नहीं किया है. ईरानी राष्ट्रपति के शपथ-ग्रहण समारोह में भारत के मंत्री नितिन गडकरी भी शामिल हुए थे, पर उन्होंने भी वहाँ इसे लेकर कोई बात नहीं कही.

इसे भारतीय दुविधा कहें या सावधानी. पश्चिम एशिया में भारतीय-डिप्लोमेसी के सामने सबसे बड़ी दुविधा संतुलन बनाने की है. भारत स्वतंत्र और संप्रभु फलस्तीन का समर्थक है, पर 7 अक्तूबर के हमले का आलोचक भी है. भारत के रिश्ते इसराइल के साथ अच्छे हैं, और महमूद अब्बास के फतह ग्रुप के साथ भी. हमास के साथ भारत के रिश्ते नहीं है, पर इसराइल के अनुरोध के बावजूद उसे बैन भी नहीं किया है.

पिछले साल अक्तूबर में गज़ा में हमास के हमले के बाद इसराइल ने हज़ारों फलस्तीनी कामगारों को रोज़गार से हटा दिया था. उनकी जगह लेने के लिए भारत से करीब पाँच हजार लोगों को काम मिला है. इनमें बड़ी संख्या में नर्स और स्वास्थ्य परिचारक हैं. इसराइल के साथ भारत के खासतौर से रक्षा-तकनीक से जुड़े संवेदनशील रिश्ते हैं.

आने वाले समय में गज़ा में पुनर्निर्माण का काम होगा, तब भी भारतीय कामगारों को रोज़गार मिलेगा. दूसरी तरफ ईरान में चाबहार जैसी परियोजना पर काम चल रहा है. लड़ाई बढ़ने पर ईरान पर अमेरिका पाबंदियाँ लगा सकता है, जिसका विपरीत प्रभाव भारत पर पड़ेगा. भारत के सऊदी अरब, यूएई और कतर के साथ गहरे संबंध हैं. आई2यू2 और भारत-पश्चिम एशिया कॉरिडोर पर काम चल रहा है. ऐसे में किसी भी एकतरफा बयान के जोखिम हैं.

आवाज़ द वॉयस में प्रकाशित

 

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