Tuesday, October 2, 2018

मजबूरी नहीं, जरूरी हैं गांधी

श्रेष्ठ विचारों की झंडी बनाकर उससे सजावट करने में हमारा जवाब नहीं है। गांधी इसके उदाहरण हैं। लम्बे अरसे तक देश में कांग्रेस पार्टी का शासन रहा। पार्टी खुद को गांधी का वारिस मानती है, पर उसके शासनकाल में ही गांधी सजावट की वस्तु बने। हमारी करेंसी पर गांधी हैं और अब नए नोटों में उनका चश्मा भी है। पर हमने गांधी के विचारों पर आचरण नहीं किया। उनके विचारों का मजाक बनाया। कुछ लोगों ने कहा, मजबूरी का नाम महात्मा गांधी। लम्बे अरसे तक देश के कम्युनिस्ट नेता उनका मजाक बनाते रहे, पर आज स्थिति बदली हुई है। गांधी का नाम लेने वालों में वामपंथी सबसे आगे हैं।
उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने और तमाम शहरों की सड़कों को महात्मा गांधी मार्ग बनाने के बावजूद हमें लगता है कि उनकी जरूरत 1947 के पहले तक थी। अब होते भी तो क्या कर लेते?  वस्तुतः गांधी की जरूरत केवल आजादी की लड़ाई तक सीमित नहीं थी। सन 1982 में रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधीने दुनियाभर का ध्यान खींचा, तब इस विषय पर एकबार फिर चर्चा हुई कि क्या गांधी आज प्रासंगिक हैं? वह केवल भारत की बहस नहीं थी। और आज गांधी की उपयोगिता शिद्दत से महसूस की जा रही है।

अस्सी के दशक में अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने राजनीतिक कार्यक्रम को गांधीवादी समाजवादका नाम दिया था। इसमें गांधी और समाजवाद दोनों की मिलावट थी। गांधी के महत्व को नरेंद्र मोदी ने भी स्वीकार किया। उन्होंने 15 सितंबर से स्वच्छता ही सेवा अभियानशुरू किया है, जो 2 अक्टूबर यानी आजतक तक चलेगा। आज से गांधी का 150वाँ जयंती वर्ष भी शुरू हो रहा है। व्यापक अर्थ में यह गांधी के अंगीकार का अभियान है, जिसके राजनीतिक निहितार्थ हैं। 
कांग्रेस पार्टी सत्ता की राजनीति करती रही और बीजेपी भी वही करती है। दोनों ने गांधी के प्रचारात्मक महत्व को ग्रहण किया और बाकी पर ध्यान नहीं दिया। बीजेपी का तो गांधी के साम्प्रदायिक सद्भाव के विचार में विश्वस भी नहीं है, फिर भी वह गांधी के नाम की माला जप रही है। 
मोदी सरकार ने अपने पहले साल से ही गांधी की 150वीं जयंती का नाम लेना शुरू कर दिया था। जून 2014 में लोकसभा के पहले सत्र में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने अभिभाषण में नई सरकार की जिन प्राथमिकताओं को गिनाया था, उनमें एक थी, ‘स्वच्छ भारतकी स्थापना। नरेंद्र मोदी ने नारा दिया, 'पहले शौचालय, फिर देवालय। ' राष्ट्रपति ने इसी तर्ज पर कहा, देश भर मे स्वच्छ भारत मिशनचलाया जाएगा और ऐसा करना महात्मा गांधी को उनकी 150वीं जयंती पर हमारी श्रद्धांजलि होगी जो वर्ष 2019 में मनाई जाएगी।
पिछले साल 9 अगस्त क्रांति दिवस संकल्प दिवसके रूप में मनाने का आह्वान करके मोदी ने कांग्रेस की एक और पहल को छीना था। अगस्त क्रांति के 75 साल पूरे होने पर बीजेपी सरकार ने जिस स्तर का आयोजन किया, उसकी उम्मीद कांग्रेस पार्टी ने नहीं की होगी। मोदी ने 1942 से 1947 को ही नहीं जोड़ा है,  2017 से 2022 को भी जोड़ दिया। मोदी सरकार की योजनाएं 2019 के आगे जा रही हैं। स्वच्छ भारत अभियान भी अगले साल के अक्टूबर तक जा रहा है।
वास्तव में गांधी की विरासत पूरे देश की है, पर उनके कार्यक्रमों को भी उसी व्यापक समझ के दायरे में देखना चाहिए। गांधी का सबसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम था देश में सद्भाव और सामाजिक सौहार्द्र कायम करना। वे हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। आज हमें इस सद्भाव की सबसे ज्यादा जरूरत है। यह जरूरत केवल भारत की ही नहीं, पूरी दुनिया को है। गांधी के विचार-दर्शन का फलक वैश्विक था और इसे वैश्विक दृष्टि से ही देखना चाहिए।
गांधी अगर प्रासंगिक हैं, तो दुनिया के लिए हैं, केवल भारत के लिए नहीं, क्योंकि उनके विचार सम्पूर्ण मानवता से जुड़े है। फिर भी सवाल है कि क्या उनका देश भारत आज उन्हें उपयोगी मानता है? कुछ लोगों को यह सोचना मजेदार लगता है कि गांधी आज होते तो क्या करते? क्या कश्मीर का विवाद खड़ा होने देते? क्या 1962, 65 और 71 की लड़ाइयाँ होतीं? क्या भारत एटम बम बनाता? क्या बाबरी मस्जिद को ढहाया जा सकता था? क्या चीन के साथ डोकलाम जैसा विवाद होता?
हमें लगता है कि इस व्यावहारिक दुनिया से गांधी की समझ मेल नहीं खाती। बहरहाल कश्मीर का विवाद गांधी के सामने ही पैदा हो गया था और उन्होंने कश्मीर में सेना भेजने का समर्थन किया था। हमने गांधी की ज्यादातर भूमिका स्वतंत्रता संग्राम में ही देखी। और हम उनके प्रतिरोधी-स्वरूप के आगे देख नहीं पाते हैं। स्वतंत्र होने के बाद देश के सामने जब कई तरह की प्रशासनिक-राजनीतिक समस्याएं आईं तबतक वे चले गए। गांधी की प्रशासनिक समझ का जायजा उनके लेखन और व्यावहारिक गतिविधियों से लिया जा सकता है। उनकी सबसे बड़ी काबिलीयत थी समूह को साथ लेकर चलना। पिछले कई सौ साल में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं हुआ, जिसने दक्षिण एशिया के जन-समूह को इस कदर सम्मोहित किया हो।
गांधी की रणनीति प्रासंगिक है। वे आज होते तो समय के लिहाज से कोई न कोई रणनीति लेकर वे आते। उन्हें आधुनिकता का विरोधी माना जाता है। मसलन वे यंत्रों के विरोधी थे। सवाल है कि विरोधी क्यों थे? इसलिए नहीं कि तकनीकी विकास से उनका बैर था। बल्कि इसलिए कि वे तकनीक को सामाजिक जरूरत के रूप में देखते थे, जो वास्तव में तकनीक का उद्देश्य है। तकनीक से उस समाज की असलियत का पता लगता है, जिसकी वह तकनीक है।
गांधी काम करने के अधिकार को प्राथमिक मानते थे और मशीनीकरण का उस हद तक विरोध करते थे जिस हद तक वह व्यक्ति के इस अधिकार का हनन करता है। वे चाहते थे कि औजार उसके प्रयोक्ता के नियंत्रण में रहे वैसे ही जैसे क्रिकेट का बैट या कृष्ण की बाँसुरी। और उत्पादन प्रक्रिया में नैतिकता हो। उनके ट्रस्टीशिप के विचार पर गंभीरता से विवेचन नहीं हुआ। उसे हवाई परिकल्पना माना गया, पर क्या वास्तव में कॉरपोरेट मैनेजर अपने मालिकों का ट्रस्टी नहीं होता? दुनिया की कम्पनियाँ अब जनता के अंशदान (शेयर पूँजी) के सहारे खड़ी होती हैं।
वैश्विक पूँजीवाद आज जिस कॉरपोरेट लोकतंत्र और शेयरहोल्डर के अधिकारों की बात करता है, उससे गांधी के विचारों का टकराव नहीं है। गांधी ने चम्पारण के अपने पहले सत्याग्रह में ही साबित कर दिया कि वे टकराव से नहीं सद्भाव से समाधान निकालने आए हैं। जिस दौर में कार्ल मार्क्स को पूंजीपति और मजदूर के बीच टकराव नजर आ रहा था, गाँधी दोनों के झगड़े निपटा रहे थे। वे एडम स्मिथ के इस विचार से असहमत थे कि मनुष्य स्वभावतः स्वार्थ और पाशविक लोभ-लालचों से घिरा है।
उन्होंने इस दावे को गलत बताया कि कि व्यक्ति परिश्रम करे तो वह सफल हो सकता है। उन्होंने लाखों-करोड़ों लोगों का उदाहरण दिया जो हाड़-तोड़ काम करते हैं और भूखे रह जाते हैं। उनकी प्रासंगिकता का इससे बेहतर उदाहरण क्या हो सकता है कि उन्हें आज संघ परिवार के सदस्यों का समर्थन मिल रहा है, जो कभी उनके आलोचक थे। यह प्रासंगिकता भारतीय समाज को समझने में गांधी की सफलता के कारण है। गांधी को यह देश अप्रासंगिक नहीं मानता। केवल इतना मानता है कि आज कोई ईमानदार गांधी हमारे बीच नहीं है।
राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (03-10-2018) को "नहीं राम का राज" (चर्चा अंक-3113) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

    ReplyDelete