इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने वॉटसएप और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को आगाह किया है कि वे अफवाहबाज़ी को रोकने में आगे आएं. उनका यह कदम ठीक है, पर व्यावहारिक सच यह है कि वॉटस्एप सिर्फ औजार है. असली जिम्मेदार वे लोग हैं, जो इसका इस्तेमाल नकारात्मक कार्यों के लिए कर रहे हैं. वे अपराधी हैं और इन अफवाहों से प्रेरित-प्रभावित होकर हिंसा पर उतारू उन्मादी भीड़ भी अपराधी है. इस पागलपन को रोकने के लिए सरकार को कड़ा संदेश देना चाहिए. आने वाले समय में तकनीक सामाजिक व्यवस्था को और भी खोलने जा रही है. वह अब सामान्य व्यक्ति को आसानी से और कम खर्च पर भी उपलब्ध होगी. लोकतांत्रिक-व्यवस्था के संचालन और सामाजिक जीवन को पारदर्शी बनाने के लिए इसकी जरूरत भी है, पर व्यक्ति के निजी जीवन और उसकी स्वतंत्रता की रक्षा भी होनी चाहिए. इसके लिए राज्य और सामाजिक व्यवस्था को सोचना चाहिए.
चाकू
डॉक्टर के हाथ में हो, तो वह जान बचा सकता है. गलत हाथ में हो, तो जान ले लेता है.
सोशल मीडिया पर भी यह बात लागू होती है. ग्रामीण इलाकों में चेतना फैलाने और
सामाजिक कुरीतियों से लड़ने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता सोशल मीडिया का सहारा ले
रहे हैं. हाल में खबरें थीं कि कश्मीर के डॉक्टरों का एक समूह वॉट्सएप के जरिए हृदय
रोगों की चिकित्सा के लिए आपसी विमर्श का सहारा लेता है. वहीं कश्मीर के आतंकी
गिरोह अपनी गतिविधियों को चलाने और किशोरों को भड़काने के लिए सोशल मीडिया का
सहारा ले रहे हैं.
हाल
में असम, ओडिशा, गुजरात, त्रिपुरा, बंगाल, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक और
महाराष्ट्र से खौफनाक आईं हैं. ज्यादातर मामले झूठी खबरों से जुड़े हैं, जिनके फैलने
से उत्तेजित भीड़ ने हत्याएं कर दीं. ऐसे मामलों की संख्या भी काफी बड़ी है, जिनमें
मौत नहीं हुईं, पर लोगों को पीटा गया. बहुत सी खबरें पुलिस की जानकारी में आईं भी
नहीं. जिस तरह सन 2012 में रेप के खिलाफ जनांदोलन खड़ा हुआ था, लिंचिंग के खिलाफ
वैसा आंदोलन भी खड़ा नहीं होने वाला. ज्यादातर मरने वाले गरीब लोग
हैं.
करीब
महीने भर पहले बेंगलुरु की खबर थी कि 25 साल के एक व्यक्ति को भीड़ ने बाँधकर इतना
पीटा कि उसकी मौत हो गई. भीड़ को शक़ था कि वह बच्चा चोरी करने वाले गिरोह के लिए
काम करता था. पुलिस के अनुसार, लोग एक फ़र्ज़ी व्हॉट्सऐप वीडियो को लेकर नाराज़ थे. इस वीडियो में
दो बाइक सवार लोग एक बच्चे को चोरी करते दिखाई देते हैं.
वस्तुतः
वह वीडियो कराची शहर का था, जिसे एक स्वयंसेवी समूह ने बनाया था. इस वीडियो में
जनता को सावधान करने का प्रयास किया गया, जिसके लिए बच्चों के अपहरण की एक स्थिति
का नाटकीय चित्रण किया गया था. वीडियो वायरल करने वालों ने मूल संदेश को गायब करके
केवल बाइक-सवार लोगों को दिखाया था, जो बच्चों का अपहरण करते हैं. ये पूरा वीडियो
देखें तो उससे साफ़ होता है कि वह किडनैपिंग का नहीं बल्कि बच्चों की हिफ़ाज़त को
बढ़ावा देने वाले सोशल कैंपेन का वीडियो है.
वीडियो
के आख़िर में संदेश दिया गया था कि कराची में घर से बाहर खेलने निकले बच्चों को
उठाना बेहद आसान है, इसलिए उनकी हिफ़ाज़त करें. बेंगलुरु में वीडियो वायरल करने वालों ने संदेश
दिया, बेंगलुरु
शहर में क़रीब 200 लोग बच्चा चोरी करने के लिए घुस आए हैं. उनसे सावधान रहें. नाराज
भीड़ को अचानक एक अनजाना व्यक्ति नजर आ गया और भीड़ ने उसे घेरकर मार डाला.
भारत
में पिछली 20 मई से अबतक करीब डेढ़ दर्जन लोगों की मौतें होने की खबरें हैं. नवीनतम
खबर महाराष्ट्र के शहर धुले के ग्रामीण इलाके से मिली है, जहाँ वॉट्सएप मैसेज से
फैली बच्चा चोरी की अफवाह के कारण घूम रहे पाँच अनजान लोगों को गाँव वालों ने
पीट-पीट कर मौत घाट उतर दिया. यहाँ भी वही कराची टाइप वीडियो वायरल हुआ था. गाँव
वालों ने पाँच अनजान लोगों को घेर लिया और फिर पंचायत भवन में बंद करके इतना पीटा
कि पाँचों की जान चली गई. ये पाँच लोग राज्य परिवहन की बस से उतरे थे.
अफवाहें
हमेशा से हमारे जीवन और समाज में जहर घोलती रहीं हैं. दो सौ साल पहले भी ऐसी
घटनाएं होती थीं. पर तब वे मुँह-जुबानी होती थीं. अब वीडियो भी साथ में हैं, जिससे
अफवाह ज्यादा विश्वसनीय लगने लगी है. पहले गाँव के पास अनजाने लोग बहुत कम आते थे.
आज आवाजाही ज्यादा है. पहले की अफवाहों में गलतफहमियाँ थीं. आधुनिक अफवाहों के
पीछे जान-बूझकर गलतफहमी पैदा करने की कोशिश है.
पिछले
कुछ वर्षों में हमारे जीवन में एक नया शब्द जुड़ा है, लिंचिंग (हत्या). लिंचिंग का
अर्थ है, बिना मुकद्दमा चलाए किसी की हत्या करना. त्रिपुरा में एक ऐसे व्यक्ति को
मर दिया गया, जो ऐसी हत्याएं रोकने का संदेश लेकर आया था. सुकांत चक्रवर्ती नामक
यह व्यक्ति सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही बच्चे उठाने वालों की अफवाहों बारे भ्रम
दूर करने के लिए गाँव-गाँव यात्रा कर रहा था. वह लाउड-स्पीकर की मदद से लोगों को बहकावे
में न आने की सलाह दे रहा था. उसे पीट-पीटकर मार डाला गया.
गलत-फहमियाँ
केवल बच्चा-चोरी तक सीमित नहीं हैं. साम्प्रदायिक और जातीय-दंगे भी इनकी मदद से भड़काए
जा रहे हैं. जरूरत इस बात की है कि अफ़वाहबाज़ों और लिंचिंग में शामिल लोगों को
मकोका और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कड़े कानूनों में बंद किया जाए. सोशल मीडिया का
उद्देश्य दंगे भड़काना नहीं है. वह सम्पर्क और विमर्श बढ़ाता है. उसका दुरुपयोग हो
रहा है, तो वजह सोशल मीडिया नहीं, बीमार समाज है.
इस
रोग का इलाज भी सोशल मीडिया में ही छिपा है. अनजाने व्यक्ति की हत्या के बाद बेंगलुरु
के पुलिस कमिश्नर टी सुनील कुमार ने बताया कि पुलिस ऐसी अफ़वाहों को रोकने के लिए
सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रही है. हम सोशल मीडिया पर फ़र्ज़ी वीडियो की जानकारी
दे रहे हैं. पुलिस की गाड़ियाँ मोहल्लों में जाकर लोगों को जागरूक करने का काम कर
रही हैं.
यह
सब केवल वॉट्सएप के कारण नहीं है. यह हमारे समाज का दोष है, जो अफवाहों पर विश्वास
करता है? एक शोध के अनुसार, वॉट्सएप न केवल चैट का साधन है बल्कि यह रिश्तों को मजबूत बनाता है,
बिछुड़ों को मिलाता है. दुनिया के किसी भी कोने से एक-दूसरे से बातचीत करके लोग विमर्श
को बढ़ा सकते हैं. सूचना का भी अच्छा माध्यम है. चूंकि इसमें ऑडियो, वीडियो और
टेक्स्ट तीनों का सहारा लिया जा सकता है, इसलिए यह काफी प्रभावशाली है. उसकी यह
शक्ति ही समस्या है.
समस्या
मीडियम से ज्यादा मैसेज और मैसेंजर की है. मुख्यधारा के मीडिया को भी इसके बारे
में सोचना चाहिए और अपने पाठकों और दर्शकों को इस बारे में जागरूक बनाना चाहिए.
सवाल इन हत्याओं का ही नहीं फेक जानकारियों का है, जो फैलती रहीं, तो जीना दूभर हो
जाएगा.
inext में प्रकाशित
प्रमोद जी अच्छी चर्चा, इसे मै महज इत्तेफाक ही कहूगीं की आज इसी मुद्दे पर मैने भी अपने ब्लाग पर अपने विचार रखे।, आपकी पोस्ट पधकर जानकारी बढी।
ReplyDeleteसाधुवाद
धन्यवाद अपर्णाजी
Delete