हाल में खबर मिली है कि फिल्म अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे कैंसर की
बीमारी से जूझ रही हैं। उन्होंने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर इस बारे में जानकारी दी
है कि मुझे हाईग्रेड मेटास्टेटिस कैंसर है। उनकी इस पोस्ट के बाद काफी लोग जानना
चाहते हैं कि यह कैसा कैंसर है और कितना खतरनाक है। मेटास्टेटिस कैंसर का मतलब यह
है कि शरीर में किसी एक जगह कैंसर के सेल मौजूद नहीं हैं। जहां से कैंसर की
उत्पत्ति हुई, उससे शरीर के दूसरे अंग में वह फैल चुका है। सोनाली न्यूयॉर्क में
अपना इलाज करवा रही हैं। बॉलीवुड एक्टर इरफान खान भी कैंसर से जूझ रहे हैं। वे कुछ
महीनों से लंदन में इलाज करा रहे हैं। अमेरिकी कंप्यूटर कंपनी एपल के सह-संस्थापक स्टीव जॉब्स का कैंसर से लम्बी लड़ाई लड़ने के बाद कुछ साल पहले निधन हो गया।
हॉलीवुड अभिनेत्री जेन फोंडा से लेकर सीएनएन के मशहूर शो के प्रस्तोता
लैरी किंग तक इस बीमारी के शिकार हुए हैं। बॉलीवुड के अभिनेता राजेश खन्ना और
विनोद खन्ना इसके शिकार थे। हाल में संजय दत्त पर बनी बायोपिक फिल्म ‘संजू’ में कैंसर से लड़ती नर्गिस दत्त का जिक्र
था। संयोग से फिल्म में नर्गिस की भूमिका में फिल्म अभिनेत्री मनीषा कोईराला भी
कैंसर से पीड़ित रही हैं। फिल्म निर्देशक
अनुराग बसु, अभिनेत्री लीजा रे और मुमताज से लेकर क्रिकेटर युवराज सिंह भी कैंसर
से पीड़ित हो चुके हैं। बहुत से मामलों में लोग कैंसर के खिलाफ लड़ाई में जीतकर
वापस लौटे हैं, पर यह बीमारी ऐसी है, जिसका नाम सुनते ही दिल काँपता है।
हृदय रोग के बाद दुनिया में मौत का दूसरा या तीसरा सबसे बड़ा कारण कैंसर
है। चिकित्सा विज्ञान की प्रतिष्ठित पत्रिका लैंसेट के अनुसार सन 2015 में
दुनिया में 9 करोड़ से ज्यादा लोग कैंसर के शिकार थे। करीब 1.4 करोड़ लोग नए मरीज
हर साल सामने आते हैं। करीब 88
लाख लोगों की मौत हर साल कैंसर की वजह से होती है। इसका इलाज इतना महंगा है कि यह
केवल जानलेवा ही नहीं होता, परिवार को भी तबाह कर देता है। इंसान की औसत उम्र बढ़ने के बावजूद प्रदूषण, सिगरेट, तम्बाकू, शराब के बढ़ते सेवन
जैसे कारणों और वंशानुगत कारणों से भी इस बीमारी का प्रकोप बढ़ा है। यह अनेक
बीमारियों का एक नाम है। इसके सेल तेजी से शरीर के दूसरे हिस्सों में फैल जाते
हैं। जिगर, फेफड़ों, त्वचा, हड्डियों,
मस्तिष्क
यानी कि कहीं भी हो सकता है।
दुनियाभर में कैंसर के मरीजों की तादाद बढ़ रही
है। कुछ देशों में एक तरह का कैंसर ज्यादा है, तो दूसरे देशों में किसी दूसरे
तरीके का। मसलन भारत में मुँह के और महिलाओं के स्तन कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़
रही है, जबकि स्त्रियों के गर्भाशय के कैंसर में कमी आ रही है। कैंसर किसी भी उम्र में हो सकता है
परन्तु ज्यादातर अधेड़ और वृद्ध इसके शिकार होते हैं क्योंकि इसे बढ़ने में कई बार
20 से 30 साल भी लगते हैं।
इस बीमारी से लड़ने के लिए इलाज एक रास्ता है,
पर उससे बेहतर बचाव का है। अपने खान-पान का ध्यान रखकर हम अपना बचाव कर सकते हैं।
दिक्कत यह है कि खान-पान की व्यावसायिक प्रवृत्तियाँ हमारी आँख पर ऐसी पट्टी बाँध
देती हैं कि समय रहते हम देख नहीं पाते। हम सब जानते हैं कि जंक फूड तमाम
बीमारियों की जड़ है, कैंसर की भी। पर जंक फूड का प्रचलन बढ़ रहा है। छोटे बच्चों
को उनकी माताएं गर्व के साथ पिज्जा, बर्गर और ऐसी ही चीजें खिलाना पसंद करती हैं।
उन्हें लगता है कि आधुनिकता के साथ कदम मिलाकर चलने के लिए यह जरूरी है। तम्बाकू,
गुटखा और ऐसे ही पदार्थों का सेवन और शराब हमें कई तरह के रोगों की ओर धकेलती है,
पर उसका सेवन कम नहीं होता। हम किसे जिम्मेदार ठहराएं?
बेशक बीमारी की जड़ में केवल खान-पान ही नहीं
है। कई प्रकार के संक्रमण और असंतुलित भोजन भी इसके पीछे है। यह भी सच है कि तमाम
ऐसे लोगों को भी कैंसर होता है, जो सात्विक जीवन बिताते हैं। बहुत से ऐसे लोगों को
नहीं होता, जो तामसी जीवन में ही डूबे रहते हैं, पर इससे बुनियादी तथ्य बदल नहीं
जाते है। सादा जीवन कई प्रकार की मानसिक और शारीरिक व्याधियों , आपको मुक्त रखता
है। आधुनिक जीवन में केवल कैंसर ही एक बीमारी नहीं है। हृदय रोग, डायबिटीज़, हाइपर
टेंशन और मानसिक रोग हमारी बदलती जीवन शैली के कारण भी हैं।
पर्यावरण प्रदूषण भी कैंसर का बड़ा कारक है। अपरोक्ष
धूम्रपान, वातावरण में मौजूद एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन वगैरह कैंसर फैलाते हैं। भोजन
में मौजूद कुछ तत्व भी कैंसर की सम्भावना बढ़ा देते हैं। बाजरा, मक्का, मूँगफली
वगैरह में लगने वाला फफूँद एफ्लोटॉक्सिन छोड़ता है। फफूँद लगे भोजन के सेवन से लिवर-कैंसर
का खतरा रहता है। भोजन में फैट ज्यादा होने से आँतों, अग्नाशय, महिलाओं
में स्तन, गर्भाशय, अंडाशय तथा पुरुषों में प्रॉस्टेट कैंसर का
खतरा रहता है। भोजन में बीटा कैरोटिन, विटामिन ‘सी’ की कमी से फेफड़ों, मुँह, आमाशय
कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। भोजन को बहुत तेज आग में पकाया जाए, ग्रिल तथा
स्मोक्ड किया जाए तब भी और इसे लम्बे समय तक फ्रीजर में सुरक्षित रखा जाए तब भी
बीमारी का खतरा रहता है। एक ही तेल, घी को बार-बार गर्म कर उपयोग में लाया जाए तो
वह भी खतरनाक है। आधुनिक जीवन शैली में हम डिब्बाबंद भोजन के आदी होते जा रहे हैं।
कई तरह के प्रिजर्वेटिव खतरनाक है। कीटनाशकों का इस्तेमाल भी एक नया खतरा है।
वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में कैंसर या दूसरे
रोगों से लड़ने के लिए उपचारों की खोज सतत चल रही है, पर औद्योगीकरण और विकास के
रास्तों पर चलती दुनिया खतरों से भी खेलती जा रही है। शायद भविष्य में इंसान कुछ
चमत्कारी विधियों से इन रोगों का इलाज खोज लेगा, पर नए रोग सामने नहीं आएंगे, ऐसा
कहना मुश्किल है। जरूरत एक शांत-समझदार दुनिया की है, जो अपनी लालसाओं को नियंत्रण
में रखे और दूसरों के हित के बारे में भी सोचे। कैंसर एक भयानक रोग है, जो हजारों
साल से हमारे बीच रहा है, पर उसकी भयावहता आधुनिक जीवन शैली की वजह से भी बढ़ी है।
यह एक रोग है और एक रोग का लक्षण भी। पूरे समाज को उससे लड़ने की जरूरत है, पर
कैसे? विचार
करें आप।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (09-07-2018) को "देखना इस अंजुमन को" (चर्चा अंक-3027) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी