नरेंद्र मोदी की सरकार का बजट पेश होने की सुबह
कोई पूछे कि अच्छे दिन कितनी दूर हैं तो कहा जा सकता है कि हालात बड़े मुश्किल
हैं, पर दुःख भरे दिन बीत चुके हैं। वित्तीय स्वास्थ्य अच्छा होने के संकेत साफ
हैं। रफ्ता-रफ्ता अच्छे दिन आ रहे हैं। सरकार का कहना है कि कीमतों का बढ़ना रुक
रहा है। विदेशी निवेशकों के रुख में नाटकीय बदलाव आ रहा है। खराब मॉनसून के बावजूद
मुद्रास्फीति को रोका जा सका तो यकीन मानिए कि निवेशकों का विश्वास भारतीय सिस्टम पर
बढ़ेगा। आर्थिक सर्वेक्षण राहत के संकेत दे रहा है, पर आज किसी बड़े चमत्कार की
उम्मीद मत कीजिए। हाँ यह सम्भव है कि सरकार उत्पादन और आयात कर में कुछ राहतों की
घोषणा करे, जिससे कुछ उपभोक्ता वस्तुएं सस्ती हो सकती हैं। पर पेट्रोलियम पदार्थों
पर सब्सिडी का बोझ कम करने के लिए पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ने से नहीं
रोकी जा सकेंगी। इसके बाद सरकार राजकोषीय घाटे को काबू में ला सकेगी। भोजन और
उर्वरकों पर सब्सिडी भी कम होने की सम्भावना है। इसके अलावा सब्सिडी देने के तरीके
में बायोमीट्रिक्स के इस्तेमाल के बाबत भी कोई घोषणा बजट में हो सकती है। सर्वे
में इस बात का उल्लेख है कि देश के सबसे धनी दस फीसदी लोग गरीबों के मुकाबले सात
गुना ज्यादा सब्सिडी ले रहे हैं। हम समझते हैं कि यह योजना गरीबों के नाम पर बनी
है, पर उसका फायदा अमीर उठाते हैं।
इस बजट में आयकर पर राहत की उम्मीद नौकरीपेशा
लोगों को है। पर राजस्व आय में वृद्धि का कोई वैकल्पिक मार्ग न होने के कारण इस
मामले में भी किसी बड़े कदम की आशा मत कीजिए। देश में सरकारी राजस्व जीडीपी का 9
फीसदी है, जिसे 20 फीसदी के आसपास होना चाहिए। भारत सरकार दुनिया में सबसे कम
टैक्स वसूल पाने वाले देशों में है। इसका कारण यह भी है कि हम टैक्स देने वालों को
पूरी तरह कर ढाँचे के भीतर नहीं ला पाए हैं। दूसरे ऐसी आर्थिक गतिविधियां नहीं हो
पा रहीं हैं, जहाँ से टैक्स निकाला जा सके। सन 2008 के आसपास हमारा राजस्व 12
फीसदी के ऊपर चला गया था। राजस्व तभी बढ़ेगा जब आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ेगी। जब
राजस्व बढ़ेगा तभी सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों के लिए धन आएगा। इसी तरह सरकार
के सामने राजकोषीय घाटे को जीडीपी के बरक्स 4.1 फीसदी पर रखने की चुनौती है। इस
साल 17 फरवरी को अंतरिम बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने यह लक्ष्य 4.1
फीसदी रखने की घोषणा की थी, पर यह अव्यावहारिक लक्ष्य था। यूपीए सरकार एनडीए सरकार
के ऊपर भारी देनदारी छोड़कर गई है। सम्भव है कि सरकार अब इस लक्ष्य को 4.4 फीसदी
पर लाने की कोशिश करे।
हाँ कुछ कानूनों में बदलाव की पहल वित्तमंत्री
इस बजट भाषण में कर सकते हैं। इनमें सबसे प्रमुख है डायरेक्ट टैक्स कोड। सर्वेक्षण
के मुताबिक़ खराब मानसून से निपटना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। आम जनता को
अर्थ-व्यवस्था के स्वास्थ्य की तकनीकी शब्दावली समझ में नहीं आती। उसे महंगाई कम
करने और रोजगार बढ़ाने वाली बातें समझ में आती हैं। और सरकार को विश्वास है कि
दोनों दिशाओं में सुधार होगा।
आम बजट के ठीक पहले रखे गए दो दस्तावेजों का
संदेश है कि भारत के कारोबारियों का उत्साह बढ़ाइए। वे सक्रिय होकर आगे आएंगे, तो
अर्थव्यवस्था दो साल बाद सात से आठ फीसदी की दर से बढ़ने लगेगी। इसके साथ ही
रोजगारों की संख्या बढ़ेगी। हाल के महीनों में निर्यात बढ़ने के कारण भुगतान
संतुलन में घाटा कम हुआ है। भारतीय अर्थव्यवस्था निर्यातोन्मुखी नहीं है। साथ ही विश्व
व्यापार निर्यात नाजुक दौर से गुजर रहा है इसलिए यहाँ भी जोखिम है। मोदी सरकार का
पहला आर्थिक सर्वेक्षण पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि अप्रैल-मई
के दौरान निर्यात में सुधार और आयात 8.3 प्रतिशत घटने से 2014-15 की पहली तिमाही में व्यापार घाटे में 42.4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। वर्ष 2012-13 में व्यापार
घाटा इससे पहले के 137 अरब 50 करोड़ डॉलर से बढ़कर 190 अरब 30 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया था। सन 2013-14 में निर्यात 325 अरब डॉलर लक्ष्य के
मुकाबले 312.6 अरब डॉलर रहा और इसमें 4.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई जो इससे पहले के वित्त वर्ष के 1.8 प्रतिशत की नकारात्मक प्रगति की तुलना में एक अच्छा संकेत है। वर्ष के दौरान
कपड़ा, चमड़ा, हस्तशिल्प तथा कालीन निर्यात में अपेक्षाकृत
ज्यादा बढ़ोतरी रही।
आर्थिक समीक्षा के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद
(जीडीपी) की वृद्धि दर 2014-15 के दौरान 5.4 से 5.9 प्रतिशत रहने का अनुमान का
अनुमान व्यक्त किया गया है। लगातार दो साल से विकास दर पाँच फीसदी नीचे रही है।
उसका पाँच फीसदी के ऊपर जाना शुभ संकेत है। थोक मूल्य सूचकांक में गिरावट की
उम्मीद की जा रही है। आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक 2013-14- में राजकोषीय घाटा 4.5
फीसदी रहा, जो पिछले साल के मुकाबले कम है। चालू खाते और
राजकोषीय घाटे में सुधार से 2014-15 के दौरान वृद्धि बढ़ेगी। इधर भारतीय रुपया
स्थिर हुआ है जिससे स्पष्ट है कि विदेशी मुद्रा बाजार और पूंजी बाजारों में भरोसा
बढ़ा है। रुपए की वार्षिक औसत विनिमय दर 2013-14 में प्रति डॉलर 60.50 रुपए रही, जो 2012-13 में 54.41 रुपए थी और जो 2011-12 में 47.92 रुपए थी। विदेशी मुद्रा
भंडार मार्च 2014 के आखिर में बढ़कर 304.2 अरब डॉलर हो गया, जो मार्च 2013 के आखिर में 292 अरब डॉलर था।
भारतीय रेल की ओर से पिछले कुछ साल से आ रही
खराब खबरों के बाद रेल मंत्री डी वी सदानंद गौड़ा ने कुछ अच्छी और खबरों को भी
सुनाया। उन्होंने नई योजनाओं को लगभग रोक दिया है और कहा है कि हम पहले से चल रही
परियोजनाओं को पूरा करके दिखाएंगे। निरर्थक योजनाओं की घोषणा करने से कोई लाभ नहीं
जिन्हें पूरा न किया जा सके। हमारी सरकारें लोकलुभावन बातें करती रही हैं। भाजपा
सरकार ने हीरक चतुर्भुज जैसी प्रचारात्मक योजना का उल्लेख किया है। बेहतर होगा कि
पहले घिसती जा रही पुरानी पटरियों की जगह नई पटरियाँ लगाईं जाएं। फिलहाल रेलवे को
सेफ्टी और सुविधाओं पर ध्यान देना चाहिए, जो इस रेल बजट में दिखाई पड़ता है।
आज के बजट में सरकार पूरी तरह कारोबारियों के
पक्ष में जाती नजर नहीं आएगी। रेल बजट से ऐसा ही संकेत गया है। इसका प्रभाव शेयर
बाजार में दिखाई पड़ा। फिलहाल ऊर्जा, रियल एस्टेट और बुनियादी ढांचा क्षेत्र के लिए इस बजट में शुभ संकेत होंगे। सरकार
की सारा ध्यान वित्तीय अनुशासन पर होगा। यानी निरर्थक खर्चों पर रोक और आय बढ़ाने
के तरीकों पर विचार। भारत का सेवा क्षेत्र का कारोबार 9 फीसदी की दर से आगे बढ़
रहा है। चीन के बाद यह दूसरी सबसे तेज दर है। चीन में इस क्षेत्र की विकास दर 10.9
फीसदी है। सेवा क्षेत्र पढ़े-लिखे या कुशल लोगों को रोजगार देता है। हमें
विनिर्माण क्षेत्र में विकास की जरूरत है, क्योंकि यह क्षेत्र श्रम आधारित रोजगार
देता है।
हरिभूमि में प्रकाशित
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