मन कहता है, तुम जियो हजारों साल. बीसवीं सदी ने दुनिया को जितने
महान नेता दिए उतने दूसरी किसी सदी ने नहीं दिए. नेलसन मंडेला उस कद-काठी के आखिरी
नेताओं में एक हैं. फिदेल कास्त्रो, अमेरिका के जिमी कार्टर और चीन के जियांग जेमिन
उनसे उम्र में छह से आठ साल छोटे हैं और पहचान में भी. नेलसन मंडेला का आज जन्म दिन
है. वे आज 95 वर्ष पूरे कर लेंगे (जन्मतिथि 18 जुलाई 1918). उनकी बीमारी को लेकर सारी
दुनिया फिक्रमंद है. हमारी कामना है कि वे दीर्घायु हों, शतायु हों. हमें उनके जैसे नेता की आज बेहद जरूरत है।
नेलसन मंडेला हमें अपने लगते हैं. महात्मा गांधी सत्याग्रह का
अपना विचार दक्षिण अफ्रीका से लेकर आए थे। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ चली
लड़ाई महात्मा गांधी के बताए रास्ते पर चली थी. नेलसन मंडेला और महात्मा गांधी की मुलाकात
कभी नहीं हुई, फिर भी दोनों गहरे दोस्त लगते हैं. अमेरिका की साप्ताहिक टाइम मैग्ज़ीन
का 3 जनवरी 2000 का अंक सदी के महान व्यक्तियों पर केन्द्रित था. इसमें महात्मा गाँधी
पर लेख नेलसन मंडेला ने लिखा था. उन्होंने लिखा, भारत ने दक्षिण अफ्रीका को जो गाँधी
सौंपा वह बैरिस्टर था, जबकि दक्षिण अफ्रीका ने उस गाँधी को महात्मा बनाकर भारत को लौटाया.
भारत ने केवल दो गैर-भारतीयों को भारत रत्न दिया है. पहले थे खान अब्दुल गफ्फार खां
और दूसरे नेलसन मंडेला.
मंडेला के अनुसार गाँधी ने इस दावे का भंडाफोड़ किया कि व्यक्ति
कठोर श्रम करे तो वह अमीर और सफल हो सकता है. उन्होंने लाखों-करोड़ों लोगों का उदाहरण
दिया जो हाड़-तोड़ काम करते हैं और भूखे रह जाते हैं. गांधी अपने आरामगाह को यह कहते
हुए छोड़कर आम जनता के साथ आए कि मैं आर्थिक बराबरी नहीं ला सकता, पर खुद को कम करके
गरीबों के बराबर ला सकता हूँ. मंडेला ने अहिंसा को अपना हथियार इसीलिए बनाया क्योंकि
वही कारगर था. यही हथियार था जिसके कारण दुनिया भर की सरकारों ने दक्षिण अफ्रीका की
रंगभेदी सरकार से हाथ खींचा. यह रणनीतिक समझ थी. उन्होंने गाँधी से अहिंसा की रणनीति
ली थी, उसका कर्मकांड नहीं. जब हिंसा का रास्ता पकड़ा तब भी गाँधी का नाम लिया. मंडेला
ने लिखा, मेरे जीवन में एक ऐसा क्षण भी आया, जब मैने महसूस किया कि उत्पीड़क की हिंसा
अब सहन नहीं होती. तब हमने अपने संघर्ष को एक सैनिक आयाम दिया. गांधी ने कभी हिंसा
को पूरी तरह खारिज नहीं किया. उनके अनुसार जब हिंसा और कायरता के बीच फैसला करना होगा
तो मैं हिंसा की सलाह दूँगा....चुपचाप बेइज्जती झेलने के बजाय सम्मान की रक्षा के लिए
हथियार उठाने को कहूँगा....
मंडेला के विचार से आज दुनिया पर हावी विकसित औद्योगिक समाज
के अकेले आलोचक गाँधी के विचार हैं. दूसरों ने इसके निरंकुश स्वरूप की आलोचना तो की
है, पर इसके उत्पादक औजारों की निन्दा नहीं की. वे विज्ञान और तकनीक के खिलाफ नहीं
थे, पर वे काम करने के अधिकार को प्राथमिक मानते थे और मशीनीकरण का उस हद तक विरोध
करते थे जिस हद तक वह व्यक्ति के इस अधिकार का हनन करता है. ऐसे दौर में जब मार्क्स
पूँजीपति और मजदूर के बीच टकराव देख रहा था गाँधी दोनों के झगड़े निपटा रहे थे. गाँधी
के मर्म को मंडेला से बेहतर किसने समझा?
गाँधी के पौत्र गोपालकृष्ण गाँधी ने सन 1990 में मंडेला की पहली
भारत यात्रा के बारे में कहीं लिखा है. कोलकाता के ईडन गार्डन में मंडेला की सभा थी.
कोलकाता में भीड़ आम बात है, पर उस रोज ज्योति बसु ने कहा, आज कुछ खास बात है। ऐसा
माहौल तब था जब बंग बंधु मुजीबुर्रहमान जेल से छूटकर बाहर आए थे. आज दुनिया संकट के
दौर में है. पश्चिम में ऑक्यूपाई वॉलस्ट्रीट जैसे आंदोलन खड़े हो रहे हैं. हमारे पास
नेता नहीं हैं. दुनिया को रोशनी चाहिए. हमें मंडेला जैसा नेता चाहिए.
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