Wednesday, November 28, 2012

कुछ भी हो साख पत्रकारिता की कम होगी

ज़ी़ न्यूज़ के सम्पादक की गिरफ्तारी के बारे में सोशल मीडिया में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। इसमें कई तरह की व्यक्तिगत बातें भी हैं। कुछ लोग सुधीर चौधरी से व्यक्तिगत रूप से खफा हैं। वे इसे अपनी तरह देख रहे हैं, पर काफी लोग हैं जो मीडिया और खासकर समूची  पत्रकारिता की साख को लेकर परेशान हैं। इन दोनों सवालों पर हमें दो अलग-अलग तरीकों से सोचना चाहिए।

एक मसला व्यावसायिक है। दोनों कारोबारी संस्थानों के कुछ पिछले विवाद भी हैं। हमें उसकी पृष्ठभूमि अच्छी तरह पता हो तब तो कुछ कहा भी जाए अन्यथा इसके बारे में जानने की कोशिश करनी चाहिए। फेसबुक में एक पत्रकार ने टिप्पणी की कि यह हिसार-युद्ध है। इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए। जहाँ तक सीडी की सचाई के परीक्षण की बात है, यह वही संस्था है जहाँ से शांति भूषण के सीडी प्रकरण पर रपट आई थी और वह रपट बाद में गलत साबित हुई। फिर यह सीडी एक समय तक इंतज़ार के बाद सामने लाई गई। हम नहीं कह सकते कि कितना सच सामने आया है। पुलिस की कार्रवाई न्यायपूर्ण है या नहीं, यह भी नहीं कह सकते। बेहतर होगा इसपर अदालत के रुख का इंतज़ार किया जाए।

जहाँ तक पत्रकारिता की साख का सवाल है, यह बात मेरे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है। ज़ी न्यूज़ के मामले में इतना साफ है कि संस्थान अपने सम्पादक के साथ है। यानी सम्पादक व्यक्तिगत हित में काम नहीं कर रहे थे। तब यह देखना होगा कि संस्थान का हित क्या था। और निष्कर्ष एक दम से निकाला नहीं जा सकता। ब्रॉडकास्टिंग सम्पादकों की संस्था ने शुरू से ही ज़ी को ज़िम्मेदार मान लिया था। क्या वास्तव में ज़ी समूह अनैतिकता को बढ़ावा दे रहा है? क्या बाकी चैनल ज़िम्मेदार पत्रकारिता करते हैं? जिम्मेदार पत्रकारिता कहीं होती भी है या नहीं? कम से कम सामान्य नागरिक के मन में तमाम संदेह हैं।

हाल के वर्षों में पत्रकारों की कामकाजी भूमिका में भारी बदलाव आया है। खास तौर से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में खबर और विज्ञापन का फर्क मिट चुका है। हाल में गौरी भोंसले की खबर का मामला सामने आया था। उस संदर्भ में किसी लड़की की बरामदगी वाले प्रसंग को अलग भी कर दें पर एबीपी चैनल पर खबर पढ़ने वाले एक एंकर का इस्तेमाल एक बाहरी संस्था के विज्ञापन के लिए किया जाना और वह भी खबर के फॉर्मेट, किसी को अटपटा नहीं लगा। हमारे दिमागों ने काम करना बंद कर दिया है। सामान्य पाठक और दर्शक को समझ में नहीं आता कि खबर क्या होती है और विज्ञापन क्या होता है, पर पत्रकारिता के लम्बे इतिहास ने दोनों के फर्क स्थापित कर दिए थे। इन्हें किसने खत्म किया? यह काम केवल पत्रकारों ने नहीं किया। मेरी समझ में न्यूज़ रूम मे  कुछ समय काम करने वाले को अपनी मर्यादा रेखा समझ में आ जाती है। उसे इन रेखाओं को तोड़ने का आदेश देने वाली व्यवस्था न तो बाहरी है और न पत्रकारों की निजी हित-साधना इसके लिए ज़िम्मेदार है। यह काम सीधे-सीधे मीडिया हाउसों के मालिकों की जानकारी और सहमति से होता है। और इसे भारत में नहीं लंदन के संडे टाइम्स के सम्पादक हैरल्ड इवांस ने अस्सी के दशक में उठाया था, जब रूपर्ट मर्डोक इंग्लैंड के मीडिया कारोबार पर कब्ज़ा कर रहे थे।

आज़ादी के फौरन बाद हमारे अखबार व्यावसायिक रूप से निर्बल थे, पर वैचारिक रूप से उतने असहाय नहीं थे, जितने आज हैं। पिछले 65 साल में दुनियाभर की पत्रकारिता में बदलाव हुए हैं। गुणात्मक रूप से पत्रकारिता का ह्रास हुआ है। जैसे-जैसे पत्रकारिता के पास साधन बढ़ रहे हैं, तकनीकी सुधार हो रहा है वैसे-वैसे वह अपने आदर्शों और लक्ष्यों से विमुख हो रही है। ऐसा सारी दुनिया में हुआ है, पर जो गिरावट हमारे देश में आई है वह शेष विश्व की गिरावट के मुकाबले कहीं ज्यादा है। शायद इस मीडिया ने अपना मृत्युलेख खुद लिख लिया है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि पत्रकारों की भूमिका बदल गई है। उनके सामने लक्ष्य बदल दिए गए हैं। मीडिया हाउसों ने नए पत्रकारों को पुरानी पीढ़ी के पत्रकारों से काट दिया है। उनके ऊपर अधकचरी समझ के मैनेजरों को सवार कर दिया है। इन मैनेजरों को फर्शी सलाम करने वालों के हाथ में अब चाभी है। यह इस देश के पाठक से धोखा है। उसे मीडिया पर भरोसा था और शायद अब भी है, पर वह टूट रहा है।
 इस विवाद पर इससे पहले की मेरी पोस्ट

4 comments:

  1. khoob sari baaten, lekh, vichar, ethich ki duhai......fir v wahi dhaak ke tin paat

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  2. हम जैसे मानुष ही रचते हैं सारे तन्त्र तो पवित्रता का आशीर्वाद क्या भगवान टपकायेगा?

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  3. चौथा स्तंभ भी जर्जर हो चला है अब ... बहुत सुंदर लेख जोशी जी !

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  4. मान्यवर ,
    प्राचीन कल में विदूषक होते थे,चारण -भाट होते थे .
    बुद्धिजीवी उनका मजाक उड़ाते हैं।मीडिया में बुद्धिजीवी भरे परेबहुतायत में हैं।
    मुझे डर है कि मीडिया से राज्य सभा की और फिर कॉर्पोरेट की रफ़्तार इसे एक अन्य प्राचीनतम व्यवसाय ......में तब्दील न कर दें .

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