Wednesday, May 7, 2025

वैश्विक-मंच पर होगी कश्मीर की लड़ाई


पहलगाम-हमले ने एक तरफ कश्मीर की मूल समस्या की ओर हमारा ध्यान खींचा है, वहीं वैश्विक-दृष्टिकोण को भी समझने का मौका दिया है. कौन हमारा साथ देगा, अमेरिका या ब्रिटेन? यूरोप क्या सोचता है या रूसी नज़रिया क्या है वगैरह.  

आतंकवादियों के हमले का जवाब देने के अलावा वैश्विक राजनीति को अपने पक्ष में लाने का प्रयास भी भारत को करना है. साथ ही कश्मीर को लेकर अपने दृष्टिकोण को वैश्विक-मंच पर ज्यादा दृढ़ता से उठाना होगा. 

सवाल केवल प्रतिशोध का नहीं है, बल्कि दीर्घकालीन रणनीति पर चलने का है. एक बड़ा सवाल चीन की भूमिका को लेकर भी है. लड़ाई हुई, तो शायद चीन सीधे उसमें शामिल नहीं होगा, पर परोक्षतः वह पाकिस्तान का साथ देगा. खासतौर से सुरक्षा परिषद की गतिविधियों में. 

वैश्विक-उलझाव

भारत के विभाजन की सबसे बड़ी अनसुलझी समस्या है, कश्मीर. शीतयुद्ध और राजनीतिक गणित के कारण यह मसला उलझा रहा. भारत का नेतृत्व इस समय संज़ीदगी से बर्ताव कर रहा है, वहीं पाकिस्तानी नेतृत्व बदहवास है और एटमी धमकी दे रहा है. 

हमारा विदेश मंत्रालय सुरक्षा परिषद के स्थायी और अस्थायी सदस्यों सहित दुनिया के सभी प्रमुख देशों से संपर्क कर रहा है. सुरक्षा परिषद ने सोमवार 5 मई को बंद कमरे में विचार-विमर्श किया, जिसमें बढ़ते तनाव पर चर्चा की गई. 

प्रेस ट्रस्ट की रिपोर्ट के अनुसार बैठक में राजदूतों ने दोनों देशों से तनाव कम करने का आह्वान किया और पाकिस्तान के सामने ‘कठोर सवाल’ रखे. इस बैठक का अनुरोध पाकिस्तान ने किया था. सुरक्षा परिषद ने बैठक के बाद कोई बयान जारी नहीं किया, लेकिन पाकिस्तान ने दावा किया कि उसके अपने उद्देश्य ‘काफी हद तक पूरे हो गए’.

Monday, May 5, 2025

अमेरिका और ब्रिटेन ने उलझाया कश्मीर का सवाल

पहलगाम पर हुए आतंकी हमले ने कश्मीर की मूल समस्या की ओर हमारा ध्यान फिर से खींचा है। भारत के विभाजन की यह सबसे बड़ी देन है, जिसके कारण दक्षिण एशिया अशांत है और आज दुनिया के सबसे पिछड़े इलाकों में उसका शुमार होता है। प्रश्न है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद इस समस्या का समाधान करने में विफल क्यों रही? 

समस्या का जन्म

अविभाजित भारत में 562 देशी रजवाड़े थे। कश्मीर भी अंग्रेजी राज के अधीन था, पर उसकी स्थिति एक प्रत्यक्ष उपनिवेश जैसी थी और 15 अगस्त 1947 को वह भी स्वतंत्र हो गया। जम्मू-कश्मीर महाराजा हरिसिंह के नेतृत्व में देशी रियासत थी। देशी रजवाड़ों के सामने विकल्प था कि वे भारत को चुनें या पाकिस्तान को। देश को जिस भारत अधिनियम के तहत स्वतंत्रता मिली थी, उसकी मंशा थी कि कोई भी रियासत स्वतंत्र देश के रूप में न रहे। बहरहाल कश्मीर राज के मन में असमंजस था।

इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 के तहत 15 अगस्त 1947 को जम्मू कश्मीर पर भी अंग्रेज सरकार का आधिपत्य (सुज़रेंटी) समाप्त हो गया। महाराजा के मन में संशय था कि भारत में शामिल हुए, तो राज्य की बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी को यह बात पसंद नहीं आएगी और पाकिस्तान में विलय करेंगे, तो हिंदू और सिख नागरिकों को दिक्कत होगी। 

स्टैंडस्टिल समझौता

पाकिस्तान ने कश्मीर के महाराजा को कई तरह से मनाने का प्रयास किया कि वे पकिस्तान में विलय को स्वीकार कर लें। स्वतंत्रता के ठीक पहले जुलाई 1947 में मोहम्मद अली जिन्ना ने महाराजा को पत्र लिखकर कहा कि उन्हें हर तरह की सुविधा दी जाएगी। महाराजा ने भारत और पाकिस्तान के साथ ‘स्टैंडस्टिल समझौते’ की पेशकश की। यानी यथास्थिति बनी रहे। भारत ने इस पेशकश पर कोई फैसला नहीं किया, पर पाकिस्तान ने ‘स्टैंडस्टिल समझौता’ कर लिया। 

Saturday, May 3, 2025

वक़्फ़ कानून का राजनीतिक-माइलेज और अदालती सुनवाई

भारत सरकार की ओर से जवाब मिल जाने के बाद अब 5 मई को सुप्रीम कोर्ट में वक़्फ़ कानून से जुड़ी याचिकाओं पर फिर से सुनवाई होगी। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने लगातार वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली नई याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की पीठ 5 मई को पाँच याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। 

इससे पहले कोर्ट ने कहा था कि 70 से ज्यादा याचिकाओं में से केवल पाँच पर सुनवाई होगी। गत 2 मई को फिर कहा कि इस मुद्दे पर कोई और नई याचिका पर विचार नहीं किया जाएगा। मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता मोहम्मद सुल्तान के वकील से कहा, 'यदि आपके पास कुछ अतिरिक्त आधार हैं, तो आप हस्तक्षेप आवेदन दायर कर सकते हैं।' इससे पहले 29 अप्रैल को पीठ ने अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 13 याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया था।

पीठ ने कहा, 'हम अब याचिकाओं की संख्या नहीं बढ़ाने जा रहे हैं। यह बढ़ती रहेंगी और इन्हें संभालना मुश्किल हो जाएगा।' 17 अप्रैल को पीठ ने अपने समक्ष प्रस्तुत याचिकाओं में से केवल पाँच पर सुनवाई करने का फैसला किया और मामले का टाइटल रखा 'वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के संबंध में।'

तब केंद्र ने पीठ को आश्वासन दिया कि वह 5 मई तक 'वक्फ के यूजर्स सहित वक्फ संपत्तियों को न तो गैर-अधिसूचित करेगा और न ही केंद्रीय वक्फ परिषद और बोर्डों में कोई नियुक्ति करेगा। कानून के खिलाफ 72 याचिकाएँ दायर की गईं। इनमें एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी), जमीयत उलमा-ए-हिंद, द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) और कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और मोहम्मद जावेद की याचिकाएं शामिल थीं। तीन वकीलों को नोडल वकील नियुक्त करते हुए पीठ ने वकीलों से कहा कि वे आपस में तय करें कि कौन बहस करने जा रहा है। पीठ ने कहा, 'हम स्पष्ट करते हैं कि अगली सुनवाई (5 मई) प्रारंभिक आपत्तियों और अंतरिम आदेश के लिए होगी।'

Friday, May 2, 2025

मानसिक-युद्धों के दौर में खामोशी भी हथियार है



पुलवामा हमला 14 फरवरी को हुआ था और भारत ने बालाकोट पर हमला उसके 12 दिन बाद 26 फरवरी को किया। इसबार कार्रवाई क्या और कब होगी, इसे लेकर अटकलें हैं। ऐसी कार्रवाई किसी भी वक्त हो सकती है, पर ज़रूरी नहीं कि बहुत जल्दी हो। रक्षा-प्रतिष्ठान समय और उसके तरीके पर काफी सोच-विचारकर ही फैसला करेगा। कार्रवाई के संभावित परिणामों पर भी विचार करने की जरूरत होती है। 

हमारा सत्ता-प्रतिष्ठान किसी किस्म की बदहवासी व्यक्त नहीं कर रहा है, जैसी पाकिस्तान से दिखाई और सुनाई पड़ रही है। पिछले कुछ वर्षों में युद्ध के दो नए पक्ष और जुड़े हैं। एक है साइबर-युद्ध और दूसरा हाइब्रिड-युद्ध। दोनों एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करते हैं। 12 नवंबर, 2021 को हैदराबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने 'नागरिक समाज को युद्ध का नया मोर्चा' कहा था। उनके इस बयान पर काफी हंगामा हुआ। 

वस्तुतः अजित डोभाल ने चेतावनी दी थी कि युद्ध की अवधारणा बदल रही है। ‘राष्ट्रहित को नुकसान पहुँचाने के लिए सिविल सोसाइटी को भ्रष्ट किया जा सकता है, अधीन बनाया जा सकता है, बाँटा जा सकता है, उसे अपने फायदे में इस्तेमाल किया जा सकता है।’ इस बयान से यह अर्थ नहीं निकलता कि समूची सिविल-सोसायटी दुश्मन है। ‘सिविल-सोसायटी मोर्चा है’ कहने का तात्पर्य है कि उसकी आड़ ली जा सकती है। युद्ध के नए हथियार के रूप में सिविल-सोसायटी का इस्तेमाल भी किया जा सकता है।  

जम्मू-कश्मीर को ‘पूर्ण-राज्य’ बनाने में देरी


जम्मू-कश्मीर में हालात काफी हद तक सामान्य हो रहे थे कि पहलगाम पर हमला हो गया, जिसके पीछे इरादा यह भी रहा होगा कि राज्य में स्थितियाँ सामान्य होती नज़र नहीं आएँ। हालांकि इस हमले से राज्य के नागरिकों का मनोबल टूटा नहीं है, पर लगता है कि इससे पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने में कुछ विलंब होगा। 

हमले से कुछ हफ़्ते पहले ही जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाक़ात के बाद जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल होने को लेकर उम्मीद जताई थी। उस समय उन्होंने कहा था, हमें लगता है कि सही समय आ गया है, विधानसभा चुनाव हुए छह महीने बीत चुके हैं। शाह यहाँ आए थे, मैंने उनसे अलग से मुलाक़ात की, जो अच्छी रही... मुझे अब भी उम्मीद है कि जम्मू-कश्मीर को जल्द ही अपना राज्य का दर्जा वापस मिल जाएगा।