राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि विभाजन की पीड़ा का समाधान, विभाजन को निरस्त करने में है। इस बात का अर्थ क्या है, इसे उन्होंने स्पष्ट नहीं किया है, पर कम से कम दो अर्थ निकाले जा सकते हैं। पहला और सीधा अर्थ यही है कि विभाजन के सिद्धांत को निरस्त करते हुए भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश फिर से एक राजनीतिक इकाई के रूप में जुड़ जाएं।
दूसरा अर्थ यह है कि 1947 में स्वतंत्र हुआ
भारत एक और विभाजन से बचने की कोशिश करे। शायद उन्होंने दूसरे अर्थ में यह बात
भारत के मुसलमानों से कही है। आशय यह भी है कि एक और विभाजनकारी धारणा पनप रही है।
उन्होंने कहा है कि हमारा अस्तित्व दुभंग यानी दो हिस्से होकर नहीं चल सकता।
कृष्णानंद सागर की किताब, 'विभाजन कालीन भारत के साक्षी' के
विमोचन के दौरान मोहन भागवत ने नोएडा में हुए एक समारोह में यह बात कही है।
उन्होंने कहा कि यह 2021 का भारत है, 1947 का नहीं।
विभाजन एक बार हुआ था, दोबारा नहीं होगा। जो ऐसा सोचते हैं
उनको खुद विभाजन झेलना पड़ेगा। भागवत ने सबको इतिहास पढ़ने और उसे मान लेने की भी
हिदायत दी। उन्होंने कहा, विभाजन का दर्द तब तक नहीं मिटेगा जब तक यह रद्द नहीं
होगा।'
विभाजन का खतरा
भागवत ने यह भी कहा कि हम लोगों को स्वतंत्रता मिली है संपूर्ण दुनिया को कुछ देने के लिए और संपूर्ण दुनिया को कुछ देने लायक हम तब हो जाएंगे जब अपने इतिहास के इस दुराध्याय को उलटकर हम अपने परम वैभव का मार्ग चलने लगेंगे। विभाजन के पीछे कुछ परिस्थितियां जरूर थीं, लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण इस्लाम और ब्रिटिश आक्रमण ही था। इस विभाजन से कोई भी खुश नहीं है और न ही ये किसी संकट का उपाय था।