आम आदमी पार्टी के सामने
जो संकट आकर खड़ा हुआ है, उसके तीन पहलू हैं। न्यायिक प्रक्रिया, जनता के बीच
पार्टी की साख और संगठन का आंतरिक लोकतंत्र। सबसे पहले इससे जुड़ी प्रशासनिक
न्यायिक प्रक्रिया का इंतजार करना होगा। विधायकों की सदस्यता खत्म हो जाए, तब भी
देखना होगा कि अदालत की कसौटी पर आखिरी फैसला क्या होगा। अंततः सम्भव है कि इन 20
पदों पर चुनाव हों। ऐसी नौबत आने के पहले पार्टी के भीतर बगावत का अंदेशा भी है।
पिछले एक साल से खबरें हैं कि दर्जन से ज्यादा विधायक बगावत के मूड में हैं।
दिल्ली विधानसभा के चुनाव
2020 में होने हैं। क्या हालात ऐसे बनेंगे कि उसके पहले चुनाव कराने पड़ें? केवल 20 सीटों के ही उप-चुनाव
हुए तो आम आदमी पार्टी की स्थिति क्या होगी? जीत या हार दोनों बातें
उसका भविष्य तय करेंगी। मोटे तौर पर आम आदमी पार्टी जिस राजनीति को लेकर चली थी,
उसकी विसंगतियाँ बहुत जल्दी सामने आ गईं। खासतौर से पार्टी नेतृत्व का बचकानापन।
इस सरकार के तीन साल पूरे
होने में अभी कुछ समय बाकी है, पर इस दौरान यह पार्टी ऐसा कुछ नहीं कर पाई, जिससे
लगे कि उसकी सरकार पिछली सरकारों से फर्क थी? इस दौरान हर तरह के
धत्कर्म इस दौरान हुए हैं। हर तरह के आरोप इसके नेतृत्व पर लगे। दूसरे दलों की तरह
इस पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र का हाजमा खराब है और कार्यकर्ताओं की दिलचस्पी फायदे
उठाने में है। विचारधारा और व्यवहार के बीच की दरार राज्यसभा चुनाव में प्रत्याशियों
के चयन से साबित हो चुकी है।