मई 2005 में राष्ट्रीय
जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार का एक साल
पूरा होने पर 'चार्जशीट'
जारी की थी।
एनडीए का कहना था कि एक साल के शासन में यूपीए सरकार ने जितना नुक़सान लोकतांत्रिक
संस्थाओं को पहुँचाया है, उतना नुक़सान इमरजेंसी को
छोड़कर किसी शासन काल में नहीं हुआ। एनडीए ने उसे 'अकर्मण्यता और
कुशासन का एक वर्ष' क़रार दिया था। सरकार ने अपनी तारीफ के पुल
बाँधे और समारोह भी किया, जिसमें उसके मुख्य सहयोगी वाम दलों ने हिस्सा नहीं लिया।
पिछले दस साल में
केंद्र सरकार को लेकर ‘तारीफ के सालाना पुलों’ और ‘आरोप पत्रों’ की एक नई राजनीति चालू हुई है। मोदी सरकार का
एक साल पूरा हो रहा है। एक साल में मंत्रालयों ने कितना काम किया, इसे लेकर प्रजेंटेशन
तैयार हो रहे हैं। काफी स्टेशनरी और मीडिया फुटेज इस पर लगेगी। इसके समांतर ‘आरोप पत्रों’ को भी पर्याप्त फुटेज
मिलेगी। सरकारों की फज़ीहत में मीडिया को मज़ा आता है। मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत, बेटी पढ़ाओ,
बेटी बढ़ाओ, स्मार्ट सिटी वगैरह-वगैरह फिर से सुनाई पड़ेंगे। दूसरी ओर काला धन,
महंगाई, रोज़गार और किसानों की आत्महत्याओं पर केंद्रित कांग्रेस साहित्य तैयार हो
रहा है। सरकारी उम्मीदों के हिंडोले हल्के पड़ रहे हैं। मोदी सरकर के लिए मुश्किल
वक्त है, पर संकट का नहीं। उसके हाथ में चार साल हैं। यूपीए के ‘दस साल’ की निराशा के मुकाबले ‘एक साल’ की हताशा ऐसी बुरी भी
नहीं।