Monday, February 23, 2015

अब होगी मोदी सरकार की अग्निपरीक्षा

बजट सत्र में मोदी सरकार की अग्निपरीक्षा

  • 56 मिनट पहले
पिछले कुछ महीनों से लगातार सफलता के शिखर पर पैर जमाकर खड़ी नरेंद्र मोदी सरकार के सामने सोमवार से शुरू हो रहा संसद का बजट सत्र बड़ी चुनौती साबित होगा.
संसद से सड़क तक की राजनीति, देश के आर्थिक स्वास्थ्य और प्रशासनिक व्यवस्था को लेकर अनेक गंभीर सवालों के जवाब सरकार को देने हैं.
पिछले साल जुलाई में पेश किए गए रेल और आम बजट पिछली सरकार के बजटों की निरंतरता से जुड़े थे.
देखना होगा कि वित्त मंत्री का जोर राजकोषीय घाटे को कम करने पर है या वो सरकारी खर्च बढ़ाकर सामाजिक विकास को बढ़ावा देंगे.

पढ़ें, रिपोर्ट विस्तार से

यह मोदी सरकार के हनीमून की समाप्ति का सत्र होगा.
सत्र के ठीक पहले सरकारी दफ्तरों से महत्वपूर्ण दस्तावेजों की चोरी के मामले ने देश की प्रशासनिक-आर्थिक व्यवस्था को लेकर गम्भीर सवाल खड़े किए हैं. इसकी गूँज इस सत्र में सुनाई पड़ेगी.
संसदीय कर्म के लिहाज से भी यह महत्वपूर्ण और लम्बा सत्र है. दो चरणों में यह 8 मई तक चलेगा.
तब तक संसद के बाहर सम्भवतः कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व परिवर्तन और मोदी सरकार के कामकाज का पहले साल का अंतिम सप्ताह शुरू होगा.

नए भारत की कहानी

मध्यवर्ग की दिलचस्पी आयकर छूट को लेकर होती है. क्या बजट में ऐसी नीतिगत घोषणाएं होंगी, जिनसे इस साल आर्थिक संवृद्धि की गति तेज होगी?

Sunday, February 22, 2015

बहुत कुछ नया होगा अबके बजट में

सोमवार से शुरू होने वाला बजट सत्र मोदी सरकार की सबसे बड़ी परीक्षा साबित होगा। उसके राजनीतिक पहलुओं के साथ-साथ आर्थिक पहलू भी हैं। पिछले साल मई में नई सरकार बनने के एक महीने बाद ही पेश किया गया बजट दरअसल पिछली सरकार के बजट की निरंतरता से जुड़ा था। उसमें बुनियादी तौर पर नया कर पाने की गुंजाइश नहीं थी। इस बार का बजट इस माने में मोदी सरकार का बजट होगा। एक सामान्य नागरिक अपने लिए बजट दो तरह से देखता है। एक उसकी आमदनी में क्या बढ़ोत्तरी हो सकती है और दूसरे उसके खर्चों में कहाँ बचत सम्भव है। इसके अलावा बजट में कुछ नई नीतियों की घोषणा भी होती है। इस बार का बजट बदलते भारत का बजट होगा जो पिछले बजटों से कई मानों में एकदम अलग होगा। इसमें टैक्स रिफॉर्म्स की झलक और केंद्रीय योजनाओं में बदलाव देखने को मिलेगा। एक जमाने में टैक्स बढ़ने या घटने के आधार पर बजट को देखा जाता था। अब शायद वैसा नहीं होगा।
इस बार के बजट में व्यवस्थागत बदलाव देखने को मिलेगा। योजना आयोग की समाप्ति और नीति आयोग की स्थापना का देश की आर्थिक संरचना पर क्या प्रभाव पड़ा इसका पहला प्रदर्शन इस बजट में देखने को मिलेगा। पहली बार केंद्रीय बजट पर राज्यों की भूमिका भी दिखाई पड़ेगी। पिछली बार के बजट से ही केंद्रीय योजनाओं की राशि कम हो गई थी, जो प्रवृत्ति इस बार के बजट में पूरी तरह नजर आएगी। चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुरूप अब राज्यों के पास साधन बढ़ रहे हैं। पर केंद्रीय बजट में अनेक योजनाओं पर खर्च कम होंगे। आर्थिक सर्वेक्षण का भी नया रूप इस बार देखने को मिलेगा। नए मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम ने आर्थिक सर्वेक्षण का रंग-रूप पूरी तरह बदलने की योजना बनाई है। अब सर्वेक्षण के दो खंड होंगे। पहले में अर्थ-व्यवस्था का विवेचन होगा। साथ ही इस बात पर जोर होगा कि किन क्षेत्रों में सुधार की जरूरत है। दूसरा खंड पिछले वर्षों की तरह सामान्य तथ्यों से सम्बद्ध होगा।

Monday, February 16, 2015

दिल्ली को पूर्ण राज्य का बनाना आसान नहीं

दिल्ली विधानसभा के चुनाव में राजनीतिक दल दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की माँग करते हैं, पर यह दर्जा मिलता नहीं है। पिछले दस साल से केंद्र और दिल्ली दोनों में कांग्रेस पार्टी का शासन था, पर इसे पूर्ण राज्य नहीं बनाया गया। इस बार चुनाव के पहले तक भारतीय जनता पार्टी इस विचार से सहमत थी, पर चुनाव के ठीक पहले जारी दृष्टिपत्र में उसने इसका जिक्र भी नहीं किया। पिछले साल उम्मीद की जा रही थी कि प्रधानमंत्री अपने 15 अगस्त के भाषण में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की घोषणा करेंगे, पर नहीं की। भाजपा ने देर से इस बात के व्यावहारिक पहलू को समझा। और आम आदमी पार्टी इसके राजनीतिक महत्व को समझती है।

Thursday, February 12, 2015

राजस्थान से आई यह निराली बधाई


11 फरवरी के राजस्थान पत्रिका, जयपुर के पहले पेज के जैकेट पर निराला विज्ञापन प्रकाशित हुआ। इसमें दिल्ली के विधान सभा चुनाव में 3 सीटें जीतने पर भाजपा को बधाई दी गई है। यह बधाई प्रतियोगिता परीक्षाओं से जुड़ी किताबें छापने वाले एक प्रकाशन की ओर से है। प्रकाशन के लेखक नवरंग राय, रोशनलाल और लाखों बेरोजगार विद्यार्थियों की ओर से यह बधाई दी गई है। इसमें ड़क्टर से राजनेता बने वीरेंद्र सिंह से अनुरोध किया गया है कि वे राजस्थान में आम आदमी पार्टी का नेतृत्व करें और उसे नए मुकाम पर पहुँचाएं। पिछले लोकसभा चुनाव में वीरेंद्र सिंह आम आदमी पार्टी के टिकट पर लड़े थे। 

भेड़ों की भीड़ नहीं, जागरूक जनता बनो

दिल्ली की नई विधानसभा में 28 विधायकों की उम्र 40 साल या उससे कम है. औसत उम्र चालीस है. दूसरे राज्यों की तुलना में 7-15 साल कम. चुने गए 26 विधायक पोस्ट ग्रेजुएट हैं. 20 विधायक ग्रेजुएट हैं, और 14 बारहवीं पास हैं. बीजेपी के तीन विधायकों को अलग कर दें तो आम आदमी पार्टी के ज्यादातर विधायकों के पास राजनीति का अनुभव शून्य है. वे आम लोग हैं. उनके परिवारों का दूर-दूर तक रिश्ता राजनीति से नहीं है. उनका दूर-दूर तक राजनीति से कोई वास्ता नहीं है. दिल्ली के वोटर ने परम्परागत राजनीति को दूध की मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया है. यह नई राजनीति किस दिशा में जाएगी इसका पता अगले कुछ महीनों में लगेगा. यह पायलट प्रोजेक्ट सफल हुआ तो एक बड़ी उपलब्धि होगी.