सीएनएन-आईबीएन में जस्टिस काटजू |
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब 'एक्सीडेंटल पीएम' के कुछ अंशों की वजह से हंगामा शुरू हो गया था। संजय बारू ने लिखा कि मनमोहन सिंह अपनी मर्जी से फैसले नहीं कर पाते थे। यह हंगामा शांत होने के पहले ही पूर्व कोयला सचिव पीसी पारख की किताब 'क्रूजेडर आर कांस्पिरेटर: कोलगेट एंड अदर ट्रूथ' ने दूसरा हंगामा खड़ा किया। इस किताब में पारख ने बताने की कोशिश की है कि कैसे कोयला मंत्रालय के कामकाज को प्रधानमंत्री असहाय प्रधानमंत्री की तरह देखते थे। वह कड़े फैसले लेने में कमजोर थे और साथ ही कोयला मंत्रालय में जारी ब्लैकमेलिंग का जिक्र भी पारख ने अपनी किताब में किया। पारख ने अपनी इस किताब में दावा किया है कि अक्सर नेता कई बड़े फैसलों को बदलने और उन्हें प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। और अब सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने मद्रास हाइकोर्ट के एक जज के बारे में लिखा है कि गठबंधन राजनीति के कारण उस जज को लगातार संरक्षण मिलता रहा, बावजूद इसके कि उसपर भ्रष्टाचार के आरोप थे। आज सुबह टाइम्स ऑफ इंडिया ने जस्टिस काटजू के आलेख को अपनी लीड बनाया है। उन्होंने अपने आलेख में लिखा है कि मेरा उद्देश्य यह बताना है कि सिस्टम किस तरह काम करता है, I have related all this to show how the system actually works, whatever it is in theory. In fact, in view of the adverse IB report the judge should not even have been allowed to continue as additional judge. न्यायपालिका में राजनीतिक हस्तक्षेप का इससे बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है। जस्टिस काटजू अपने ब्लॉग में इन दिनों मद्रास हाइकोर्ट के अनुभवों को लिख रहे हैं। उनके इस आलेख ने भारतीय राजनीति के भीतर के एक गहरे अंतर्विरोध को उभारा है। हमारे यहाँ न्यायाधीशों ने अपने इस किस्म के संस्मरण नहीं लिखे हैं। यह आलेख मौके पर सामने आया है। जस्टिस काटजू ने अपने लेख की शुरूआत इस तरह की हैः-
There was an additional judge of the Madras high court against whom there were several allegations of corruption. He had been directly appointed as a district judge in Tamil Nadu, and during his career as district judge there were as many as eight adverse entries against him recorded by various portfolio judges of the Madras high court. But one acting chief justice of Madras high court by a single stroke of his pen deleted all those adverse entries, and consequently he became an additional judge of the high court, and he was in that post when I came as chief justice of Madras high court in November 2004.
That judge had the solid support of a very important political leader of Tamil Nadu. I was told that this was because while a district judge he had granted bail to that political leader.
Since I was getting many reports about his corruption, I requested the Chief Justice of India, Justice RC Lahoti, to get a secret IB inquiry made about him. A few weeks thereafter, while I was in Chennai, I received a call from the secretary of the CJI saying that Justice Lahoti wanted to talk to me. The CJI then came on the line and said that what I had complained about had been found true. Evidently the IB had found enough material about the judge's corruption.
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