Saturday, November 27, 2010

क्या हैं टू जी, थ्रीजी और सीएजी

जेपीसी क्या होती है? और पीएसी क्या होती हैदूरसंचार आयोग क्या काम करता  है? और इन दिनों चल रहे दूरसंचार घोटाले का मतलब क्या है? किसने क्या फैसला किया और क्यों किया? सीएजी क्या करता है? उसे रपट लिखने की ज़रूरत क्यों आन पड़ी? उसकी रपट में क्या है?

मैं अपने आपको एक आम हिन्दी पाठक की जगह रखकर देखता हूँ तो ऐसे तमाम सवाल मेरे मन में उठते हैं। उसके बाद सुबह का अखबार उठाता हूँ तो कुछ और सवाल जन्म ले लेते हैं। टीआरएआई, जीओएम, एडीएजी, एफसीएफएस, 2जी, 3जी वगैरह-वगैरह के ढेर के बीच एक बात समझ में आती है कि कोई घोटाला हो गया है। मामला करोड़ों का नहीं लाखों करोड़ का है।

Monday, November 15, 2010

करप्शन कोश

मेरे मन में विचार आया है कि एक करप्शन कोश बनाया जाय। यह सिर्फ विचार ही है, पर इसे मूर्त रूप दिया जाय तो पठनीय सामग्री एकत्र की जा सकती है। इससे हमें कुछ जानकारियों को एक जगह लाने और विश्लेषण करने का मौका मिलेगा। करप्शन कितने प्रकार के हैं। सरकारी और अ-सरकारी करप्शन में क्या भेद है। करप्शन को रोकने के लिए समाज ने क्या किया। प्रतिफल क्या रहा। सामाजिक विकास के साथ करप्शन बढ़ा है या कम हुआ है। इस तरह के सैकड़ों बिन्दु हो सकते है।

हालांकि मैने बात भारतीय संदर्भ में शुरू की है, पर करप्शन तो वैश्विक अवधारणा है। इसका जन्म कहाँ हुआ। भारत में या कहीं और। क्या यह अनिवार्य है। यानी इससे पल्ला छुड़ाया जा सकता है या नहीं। करप्शन कोश की टाइमलाइन क्या हो। यानी 1947 या ईपू पाँच हजार साल। या पाँच अरब साल। क्या आप मेरी मदद करेंगे।

लगे हाथ मैं आपको ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के ताज़ा नतीज़ों से परिचित करादूँ। नीचे एक सूची है जिसमें खास-खास देशों के नाम है। जितना बड़ा नम्बर उतना ज्यादा करप्शन। पर क्या वास्तव में यह सूची ठीक बनी होगी।


1 Denmark, New Zealand, Singapore
15 Germany
17 Japan
17 Japan
19 Qatar
22 United States
28 United Arab Emirates
30 Israel
50 Saudi Arabia
66 Rwanda
67 Italy
78 China
87 India
98 Egypt
105 Kazakhstan
127 Syria
143 Pakistan
146 Iran
154 Russia
175 Iraq
176 Afghanistan
178 Somalia


बहरहाल विचार कीजिए और मेरी मदद कीजिए। कुछ ग्रैफिक भी साथ में रख दिए हैं। यह बताने के लिए कि यह समस्या सर्व-व्यापी है।

Saturday, November 13, 2010

चीन में एशिया खेल

ग्वांग्ज़ो में एशिया खेलों का उद्घाटन समारोह आकर्षक और मौलिक था। दिल्ली के कॉमनवैल्थ खेल समारोह के उद्घाटन कार्यक्रम से इक्कीस ही लगा। हालांकि इन खेलों में शामिल देशों की संख्या कॉमनवैल्थ देशों से कम है, पर हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों की संख्या दुगनी है। खेल का स्तर भी बेहतर होगा। ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और कनाडा की टीमों की कमी अकेले चीन की टीम ही कर देगी। फिर जापान और कोरिया हैं। ईरान, उज्बेकिस्तान, ताजिकस्तान, फिलीपाइन्स और इंडोनेशिया जैसी टीमें भी किसी से कम नहीं हैं।

चीनी क्रिकेट पर बीबीसी की यह खास रपट पढ़ें

और यह फिल्म देखें
हमारा सबसे लोकप्रिय खेल क्रिकेट भी यहाँ है, पर हमारी टीम नहीं है। सबसे रोचक होगा चीनी क्रिकेट टीम को देखना। पाकिस्तान के जावेद मियांदाद ने टीम की मदद की है। खेलना चीनी खिलाड़ियों को ही है। पिछले तीन-चार साल में चीनी क्रिकेट में पारंगत हो गए हैं। अब उनका हुनर देखने की बारी है। कुछ साल पहले तक वो हॉकी भी नहीं खेलते थे, पर दोहा एशियाड में उन्होंने भारत को हरा दिया। कोई सीखना चाहे तो उसके लिए कोई काम मुश्किल नहीं है।



















Sunday, November 7, 2010

ओबामा का पहला दिन

ओबामा की यात्रा के पहले ही दिन भाजपा की आपत्ति समझ में नहीं आई। मुम्बई में सबसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम  भारत के उद्योग-व्यापार जगत के साथ संवाद का था। इसके लिए काफी पहले से तैयार फैसलों की घोषणा की गई है। ताज होटल से ओबामा की यात्रा का प्रारम्भ प्रतीक रूप में आतंकवाद-विरोधी वक्तव्य है। राजनैतिक वक्तव्य दिल्ली आने पर ही होना चाहिए। ओबामा बचना भी चाहेंगे तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कहीं यह बात उठाएंगे। सुषमा स्वराज खुद ओबामा से मुलाकात करने वाली हैं। किसी विदेशी यात्री की यात्रा शुरू होने के पन्द्रह मिनट के भीतर आलोचनात्मक वक्तव्य जारी करना मुझे बचकाना लगता है।

कल की घोषणाओं में इसरो, भारत डायनैमिक्स और डीआरडीओ पर से टेक्नॉलजी ट्रांसफर की पाबंदियाँ हटने की खबर महत्वपूर्ण है। अब अणु-ऊर्जा विभाग की पाबंदियाँ रह गईं हैं। शायद वे भी खत्म हो जाएंगी। भारत को  न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में प्रवेश मिलने पर इस दिशा में एक कदम और आगे बढ़ेंगे। हालांकि इन सब बातों का फायदा अमेरिका को भी है, पर हमें भी तो है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय समुदाय में हमारी जगह पहले के मुकाबले बेहतर होती जा रही है। अब से दस साल बाद हमारी पोजीशन आज के चीन से बेहतर होगी।

इस बात पर भी ध्यान दें कि हमारी प्रतियोगिता पाकिस्तान से नहीं है। हालांकि पाकिस्तान हमें निरंतर अपने बराबर खड़ा करने की कोशिश कर रहा है, पर अमेरिका उसे इस्लामी देशों का फ्रंटल स्टेट होने तक का ही महत्व देता है। भारत की उसे आर्थिक-सहयोग के लिए ज़रूरत है। इस रास्ते पर हम चले तो शायद पाकिस्तान भारत के साथ सामरिक प्रतियोगिता की जगह आर्थिक सहयोग के रास्ते पर आए। पाकिस्तान ने युद्धोन्माद और जेहादी राजनीति के कारण अपना काफी नुकसान कर लिया है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के मामले में अमेरिका हमारा सीधे समर्थन नहीं करेगा। सुरक्षा परिषद के सुधार की ज़रूरत आने वाले समय में महसूस की जाएगी। बेशक कुछ विशेषाधिकार-प्राप्त देशों का अलग समूह बनाने की बात समझ में नहीं आती। पर विश्व समुदाय उतना अच्छा समुदाय नहीं है, जितना शब्दकोश का समुदाय शब्द है। भारत और पाकिस्तान हर स्तर पर समान नहीं हैं। और पाकिस्तान भी खुद को मालदीव के बराबर नही गिनेगा। श्रीलंका भी अपने आप को भूटान के बराबर नहीं रखेगा। बहरहाल देखते हैं आगे क्या होता है।

नीचे मैने अनिता जोशुआ की हिन्दू में प्रकाशित रपट को रखा है, जो आज ही छपी है।

From The Hindu 7.11.2010
Don't endorse Indian bid for UNSC seat, says Pakistan

Anita Joshua
ISLAMABAD: Ahead of U. S. President Barack Obama's India visit, Pakistan on Friday warned that any endorsement of the Indian bid for a permanent seat in the United Nations Security Council (UNSC) would have a negative impact on issues relating to peace and security in South Asia.

“Existing anomalies”

This view was articulated by the Foreign Office before the Special Committee of the Parliament on Kashmir. Asked about India's prospects in acquiring a permanent seat in the UNSC and possible U. S. endorsement for such a position, the Foreign Office representatives sought to point out that Pakistan was opposed to expansion in the permanent category and “further perpetuation of existing anomalies.”

Against Charter

Pakistan's contention is that endorsing the candidacy of any one of more States for a permanent seat on the UNSC would be at variance with the spirit of the U.N.Charter and infringes upon the principles of sovereign equality.

“Creating a new class of privileged members, with or without veto, is not an option. The issue of the UNSC's expansion cannot be divorced from the broader questions relating to the restructuring of the global system.”

Consensus

According to the Foreign Office, Pakistan has been consistent on this position. “Such decisions that impact on the global system of inter-State relations based on the Charter require consensus. The spirit and the principles of the Charter should not be compromised, and sovereign equality is a cardinal principle.”

Counter-productive

While the Committee endorsed the government's position that India like any other sovereign State was entitled to develop its own bilateral relations in a manner it deems fit, the Foreign Office — in its briefing on the Obama visit to India — said the U. S. was informed about the need to maintain regional balance in South Asia.

“It is Pakistan's considered view that anything that militates against the regional balance is counter-productive and not in the interest of the region and the world.”

Friday, November 5, 2010

अंधेरे सोच के बीच हैप्पी दिवाली


दिवाली पर चौतरफा खुशहाली-आज सुबह दिल्ली के  दैनिक भास्कर का यह मुख्य शीर्षक है। जयपुर का शीर्षक है घर-घर पधारिए माँ लक्ष्मी। दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका के बीच इन जिनों थ्री-डी अखबार देने की प्रतियोगिता है। पहले राजस्थान पत्रिका ने दिया, फिर दैनिक भास्कर ने। राजस्थान पत्रिका ने धनतेरस के दिन पाठकों से कहा, आज के अखबार को अपनी नाक के पास ले जाएं। इसमें स्ट्रॉबेरी की खुशबू आएगी।


आज के हिन्दुस्तान का शीर्षक है हैप्पी दिवाली। जागरण का शीर्षक है दिवाली धमाका। आमतौर पर फीलगुड फैक्टर का सबसे बड़ा पैरोकार नवभारत टाइम्स माने हिन्दी में NBT  ने शेयर बाजार और सोने वगैरह को लीड नहीं बनाया है। राष्ट्रीय सहारा ने भी NBT की तरह दफ्तर में आचरण के नए नियमों को तरज़ीह दी है।

अमर उजाला का शीर्षक है- सेंसेक्स और सोने ने बिखेरी चमक, बाजार रिकॉर्ड 20893 के स्तर पर बंद,  दिवाली और धनतेरस पर 200 अरब का सोना बिका।

हिन्दी इलाके के मध्यवर्ग की खुशी के रंग में भंग डालना अच्छा नहीं लगेगा, पर आज के हिन्दी अखबारों ने यूएनडीपी की मानवाधिकार रपट की खबर को महत्व देना पसंद नहीं किया, जिसके अनुसार भारत दुनिया में आर्थिक प्रगति की तेजी में टॉप के दस देशों में है, पर मानव विकास में पिछड़टा जा रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस खबर को टॉप पर लगाया है कि लैंगिक समानता के मामले में भारत का दर्जा पाकिस्तान से भी नीचा है।

देश की खुशहाली और जनता की अमीरी बढ़ते देखना अच्छा लगता है, पर खबरों के चयन में हिन्दी अखबारों का यह दृष्टिकोण समझ में नहीं आता। ऐसी खबरें टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस में छपती हैं, जबकि उनके पाठक अपेक्षाकृत उच्च वर्ग से आते हैं।



हिन्दी अखबारों की कवरेज को देखें तो लगता नहीं कि वे अपने इलाके का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इलाके की आर्थक संरचना को थोड़ी देर के लिए भूल भी जाएं तो इन अखबारों में संस्कृति भी कृत्रिम है। हम अपने पर्वों को किस तरह मनाते हैं, यह हमारे लिए महत्वपूर्ण नहीं रहा। इसकी जगह छिछली अंग्रेजियत ने ले ली है। न जाने क्यों हमारे स्वाभिमान को चोट नहीं लगती।

सम्भव है मेरी यह बातें पिछड़ापन और दकियानूसी लगें, पर मुझे मीडियामार्ग से प्रवाहित यह खुशी नकली और आत्मघाती लगती है। मेरी कामना है कि हम वास्तव सें सुखी हों, अकेले ही नहीं पूरे समुदाय के साथ। उन करोड़ों उदास और परेशान आँखों को याद करें जिनके लिए आपके घर की रोशनी कोई माने नहीं रखती।