यूक्रेन और गज़ा में चल रही लड़ाइयाँ रुकने के बजाय तल्खी बढ़ती जा रही है. शीतयुद्ध की ओर बढ़ती दुनिया के संदर्भ में भारतीय विदेश-नीति की स्वतंत्रता को लेकर कुछ सवाल खड़े हो रहे हैं.
कभी लगता है कि भारत पश्चिम-विरोधी है और कभी
वह पश्चिम-परस्त लगता है. कभी लगता है कि वह सबसे अच्छे रिश्ते बनाकर रखना चाहता
है या सभी के प्रति निरपेक्ष है. पश्चिम एशिया में भारत ने इसराइल, सऊदी अरब और
ईरान के साथ अच्छे रिश्ते बनाकर रखे हैं. इसी तरह उसने अमेरिका और रूस के बीच
संतुलन बनाकर रखा है. कुछ लोगों को यह बात समझ में नहीं आती. उन्हें लगता है कि ऐसा
कैसे संभव है?
म्यूनिख सुरक्षा-संवाद
विदेशमंत्री एस जयशंकर ने पिछले हफ्ते म्यूनिख
सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में इस बात को काफी हद तक शीशे की तरह साफ करने का प्रयास किया
है. इस बैठक में भारत और पश्चिमी देशों के मतभेदों से जुड़े सवाल भी पूछे गए और
जयशंकर ने संज़ीदगी से उनका जवाब दिया.
म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन वैश्विक-सुरक्षा पर केंद्रित
वार्षिक सम्मेलन है. यह सम्मेलन 1963 से जर्मनी के म्यूनिख में आयोजित किया जाता
है. इस साल यह 60वाँ सम्मेलन था. सम्मेलन के हाशिए पर विभिन्न देशों के राजनेताओं
की आपसी मुलाकातें भी होती हैं.
इसराइल-हमास संघर्ष
जयशंकर ने इसराइल-हमास संघर्ष पर भारत के रुख
को चार बिंदुओं से स्पष्ट किया. एक, 7 अक्तूबर को जो हुआ वह आतंकवाद था. दूसरे,
इसराइल जिस तरह से जवाबी कार्रवाई कर रहा है, उससे
नागरिकों को भारी नुकसान हो रहा है. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का पालन
करना उसका दायित्व है. उन्होंने इसराइल के ‘दायित्व’
शब्द का इस्तेमाल करके इसराइल को निशान पर लिया है.
इसके अलावा उनका तीसरा बिंदु बंधकों की वापसी से जुड़ा है, जिसे उन्होंने जरूरी बताया है. चौथा, राहत प्रदान करने के लिए एक मानवीय गलियारे और एक स्थायी मानवीय गलियारे की जरूरत है. उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे का स्थायी हल निकाला जाना चाहिए. उन्होंने ‘टू स्टेट’ समाधान की बात करते हुए कहा कि यह विकल्प नहीं बल्कि अनिवार्यता ज़रूरत है.
फलस्तीनियों के बीच हमास के उदय के बाद से
इसराइल ‘टू स्टेट’ से बचने लगा है. अब तो उसने इससे पूरी
तरह पल्ला झाड़ लिया है. जयशंकर की सलाह एकतरफा नहीं है. संयुक्त राष्ट्र में रखे
गए प्रस्तावों में भी भारतीय रुख से इस बात की पुष्टि होती है. भारत का दृष्टिकोण
प्रस्ताव के गुण-दोष को अच्छी तरह परखने और भारतीय हितों को देखने के बाद ही तय
होता है.
मानवाधिकारों का मुद्दा
चर्चा के दौरान एक मुद्दा मानवाधिकारों का भी
उठा और सवाल किया गया कि पश्चिमी मुल्क ग़ज़ा में हो रही तबाही को देख रहे हैं,
और मानवाधिकारों की बात कर रहे हैं. इस स्थिति में पश्चिमी मूल्य
कहां हैं?
इस मौके पर जर्मन विदेशमंत्री एनालीना बेयरबॉक
ने कहा, यह दोहरे मानदंडों का मामला है. ग़ज़ा में जो
हो रहा है उसे देखें, तो सच्चाई यह है हमें तुरंत युद्धविराम
की ज़रूरत है ताकि वहाँ फँसे बच्चों को निकाला जा सके. दूसरी तरफ 7 अक्तूबर के
हमले में कई लोगों को अगवा किया गया, महिलाओं का
बलात्कार कर उनकी हत्या कर दी गई. जो लोग हमास के कब्ज़े में हैं उन्हें बचाना भी है.
उन्होंने कहा, हम यह कह नहीं सकते कि इसराइल की
सुरक्षा चिंताएं जस की तस बनी रहें और युद्धविराम को लेकर दबाव बनाया जाए. हम नहीं
चाहेंगे कि एक बार फिर हमास खुद को संगठित करे और आम नागरिकों का इस्तेमाल मानव
ढाल के रूप में करे.
वहीं अमेरिकी विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा,
हमारी नज़र में इसराइल की सुरक्षा अहम है, लेकिन
हम यह भी चाहते हैं कि पीड़ित लोगों तक मदद पहुंचे और लोगों की जान बचाई जाए.
विश्व व्यवस्था
म्यूनिख सम्मेलन में वैश्विक-व्यवस्था को लेकर
काफी गंभीर प्रश्न उठाए गए. अमेरिका की ओर से कहा गया था कि ‘ब्रिक्स’ जैसे अलग-अलग किस्म के बहुपक्षीय
समूहों का उभार अनुचित है.
एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि हम ऐसी दुनिया नहीं
चाहते जहां मुल्क अलग-अलग गुटों में बँटे हुए हों. उन्होंने कहा, सबके सामने अलग-अलग चुनौतियां हैं जो उनके अलग-अलग अनुभवों का स्रोत
बनती हैं. ज़रूरी है कि हम मिलकर काम करें.
इसपर जयशंकर ने कहा, हमें
नॉन-वेस्ट और एंटी वेस्ट (पश्चिमी मुल्क न होना और पश्चिम का विरोधी होना) के बीच
के फर्क को समझना होगा. भारत नॉन-वेस्ट है लेकिन पश्चिम का विरोधी नहीं. पश्चिम के
साथ उसके बेहद मज़बूत संबंध हैं जो वक्त के साथ मज़बूत होते जा रहे हैं.
बदलता वक्त
भारतीय दृष्टिकोण है कि अब पश्चिमी वर्चस्व का
समय नहीं है. नए समूहों का उदय ऐसे समय
में शुरू हुआ था, जब जी-7 जैसे पश्चिमी समूह का वर्चस्व था. पहले इसका विस्तार
जी-20 के रूप में हुआ. इसमें शामिल हुए 13 नए देशों में पाँच ब्रिक्स के सदस्य
हैं. अब ब्रिक्स का विस्तार हो रहा है. जी-7 के बाहर भी ऐसे देश हैं, जिन्हें लगता
है कि वे वैश्विक-व्यवस्था में भूमिका निभा सकते हैं.
जयशंकर ने कहा, दुनिया की सारी जटिलताओं को एक
ही चश्मे से नहीं देखा जा सकता है. वह दौर अब ख़त्म हो चुका है. अलग-अलग देशों के
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य अलग-अलग हैं. मसलन अमेरिका और जर्मनी के रिश्तों को देखें,
तो उनके बीच गठबंधन के पीछे ऐतिहासिक कारण हैं. हमारे मामले में कारण दूसरे हैं.
रूसी तेल
जयशंकर ने यह भी कहा कि पश्चिमी देशों के
प्रतिबंधों के बावजूद भारत, रूस से तेल ख़रीदना जारी रखेगा. हम कई विकल्प अपने हाथ
में रखते हैं और इस बात के लिए भारत की आलोचना नहीं की जानी चाहिए.
जयशंकर से सवाल किया गया था कि आप अब तक रूस से
तेल खरीदते हैं, क्या आपके अच्छे मित्र अमेरिका की नज़र
में यह सही है कि आप जो चाहें करें? इससे पहले अमेरिकी विदेश मंत्रालय कह
चुका है कि वह भारत पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाने वाला है, क्योंकि भारत के साथ
अमेरिका के रिश्ते काफी महत्वपूर्ण हैं और भारत ने युद्ध बंद करने की अपील भी की
है.
दिसंबर 2022 में अपने भारत दौरे के वक्त बेयरबॉक
ने इस मामले को लेकर भारत से शिकायत की थी. तब जयशंकर ने कहा था कि पिछले नौ महीने
में यूरोपियन यूनियन ने जितना तेल खरीदा है, भारत
ने उसका छठा हिस्सा ही खरीदा है.
रफाह पर हमले
अब एक नज़र पश्चिम एशिया की स्थिति पर डालें. पिछले
साल 7 अक्तूबर को हमास के हमलों के बाद से शुरू हुई इसराइली कार्रवाई में मरने
वालों की संख्या करीब तीस हजार के आसपास पहुँच रही है.
शुरू में इसराइली सेना ने उत्तरी गज़ा पर हमला
बोला था. इसके बाद उसने मध्यवर्ती और दक्षिणी इलाकों में कार्रवाई शुरू की है. अब
इसराइली सेना दक्षिण के रफाह इलाके पर ज़मीनी हमला बोलने जा रही है.
गत 7 जनवरी को इसराइल ने घोषणा की कि हमने
उत्तर में हमास की ताकत को ध्वस्त कर दिया है. इस गज़ा पट्टी में रहने वाले करीब
बीस लाख फलस्तीनी अपने घरों को छोड़कर भाग गए हैं. इन्होंने रफाह में शरण ली है.
यह संख्या पूरी आबादी की करीब 85 फीसदी है.
गज़ा पट्टी पूरी तरह तबाह हो चुकी है. अब जो
कुछ भी बचा-खुचा है, वह दक्षिण में है. इसराइली सेना ने लेबनान में हिज़्बुल्ला के
ठिकानों पर भी हमले किए हैं. इसके अलावा सीरिया में उन ठिकानों पर हमले बोले हैं,
जहाँ ईरान-समर्थित ग्रुप सक्रिय हैं. इस दौरान ईरान-समर्थित समूहों ने इराक़ और
सीरिया में अमेरिकी सैनिक ठिकानों को निशाना बनाया है और यमन के हूती बागियों ने
लाल सागर में इसराइल के व्यापारिक पोतों पर हमले किए हैं.
नेतन्याहू की धमकी
सब कह रहे हैं कि समस्या का स्थायी समाधान होना
चाहिए, पर कैसे और कब, यह बताने की स्थिति में कोई नहीं है. इसराइल के
प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने कहा है कि हम अंतरराष्ट्रीय दबाव में आकर
अपनी कार्रवाई नहीं रोकेंगे. हम हमास को पूरी तरह खत्म कर देंगे और फलस्तीन को
बनने नहीं देंगे. जो लोग हमारे रफाह ऑपरेशन से रोकना चाहते हैं वे चाहते हैं कि हम
लड़ाई में हार जाएं. फलस्तीन बनने का मतलब है आतंकवाद की विजय.
उनकी इस बात से लगता यह है कि लड़ाई रुकने के
बाद भी गज़ा पट्टी में फलस्तीनियों की सरकार नहीं बन सकेगी, क्योंकि इसराइल वहाँ
अपनी उपस्थिति बनाकर रहेगा. दूसरी तरफ उनके इस कड़े रुख की प्रतिक्रिया में
फलस्तीनियों के बीच हमास की पैठ बढ़ती जा रही है. यानी कि पश्चिमी किनारे में भी
उग्र-विरोध जन्म लेगा.
इस बीच दक्षिण अफ्रीका ने अंतरराष्ट्रीय
न्यायालय (आईसीजे) से प्रार्थना की है कि इसराइली सेना को रफाह में प्रवेश करने से
रोका जाए, पर अदालत ने कुछ भी करने से इनकार कर दिया है.
दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में
युद्धविराम के लिए एक और प्रस्ताव लाने की कोशिश की जा रही है, जिसपर अमेरिका के
वीटो की पूरी संभावना है. पर अब संकेत मिल रहे हैं कि अमेरिका इस प्रस्ताव के जवाब
में एक और प्रस्ताव लाएगा, जिसमें अस्थायी युद्धविराम की बात होगी. इसका मतलब है
कि स्थिति में बदलाव होगा.
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