लद्दाख की सीमा पर चल रहे गतिरोध को तोड़ने के लिए गत 19 फरवरी को भारत और चीन के बीच कोर कमांडर स्तर की बातचीत का 19वाँ दौर भी पूरा हो गया, पर कोई नतीजा निकल कर नहीं आया. एजेंसी-रिपोर्टों के अनुसार पिछले साढ़े तीन साल से ज्यादा समय से चले आ रहे गतिरोध को खत्म करने का कोई रास्ता दिखाई नहीं पड़ा है.
निष्कर्ष यह है कि चीन इस समस्या को बनाए रखना चाहता है. उसकी गतिविधियाँ केवल उत्तरी सीमा तक सीमित नहीं हैं. वह हिंद महासागर में अपनी गतिविधियों को बढ़ा रहा है. दूसरी तरफ भारत लगातार विश्व-समुदाय का ध्यान चीनी-दादागीरी की ओर खींच रहा है.
पिछले दिनों जर्मनी
में म्यूनिख-संवाद के बाद भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर ने पिछले शुक्रवार को दिल्ली
के रायसीना-संवाद में कुछ ऐसी बातें कही हैं, जिनसे भारत की विदेश-नीति की
दीर्घकालीन-दिशा पर रोशनी पड़ती है. उन्होंने चीन की आलोचना की, भारत और रूस के
मज़बूत-रिश्तों की वजह को स्पष्ट किया और पश्चिमी देशों की रूस-नीति की आलोचना भी
की.
उन्होंने चीनी
दादागीरी की आलोचना करते हुए कहा कि देशों को अपने मित्र चुनने के रास्ते में चीन अड़ंगे
लगता है. भारत के सुरक्षा-गणित में वह अमेरिका की भूमिका नहीं चाहता. वह चाहता है
कि भारत-चीन रिश्तों में किसी तीसरे की कोई भूमिका नहीं रहे. उसे इस किस्म के ‘माइंड गेम्स’ की अनुमति नहीं मिलनी
चाहिए.
पश्चिमी देशों
की भूमिका
जयशंकर ने कहा कि भारत
वैश्विक-व्यवस्था में सेतु की भूमिका निभाता है. साथ ही उन्होंने कहा कि रूस को
चीनी पाले में धकेलने का काम पश्चिमी देशों ने ही किया है. उन्होंने ‘क्वॉड’ के संदर्भ में चीन की भूमिका की ओर इशारा करते हुए कहा
कि भारत किसी दूसरे देश को, जो हमारा प्रतिस्पर्धी भी है, अपनी नीतियों के संदर्भ
में वीटो की अनुमति नहीं देंगे.
जयशंकर के इस बयान के दो
दिन पहले बुधवार को भारत के रक्षा-सचिव गिरिधर अरमाने ने दिल्ली में हुए इंडस-एक्स
सम्मेलन में कहा कि चीन दादागीरी कर रहा है और भारतीय सेना सीमा पर उसका सामना कर
रही है. इस बात का अंदेशा है कि हमें 2020 जैसी ही स्थिति का सामना दोबारा करना
पड़ सकता है. इस वजह से हम हर वक्त सतर्क रहते हैं.
इससे पहले भारत-चीन के
बीच 19 फरवरी को चुशूल-मोल्डो बॉर्डर पॉइंट पर 21वें राउंड की कोर कमांडर-स्तर की
बातचीत. चार महीने बाद हुई इस बैठक में एक बार फिर से चीन ने तनाव कम करने की
देपसांग और डेमचोक के ट्रैक जंक्शन से सेना हटाने की भारत की मांग को ठुकरा दिया.
रूस-चीन
निकटता
जयशंकर ने रायसीना
संवाद में उनके एक पुराने वक्तव्य के संदर्भ में सवाल किया गया था कि भारत को
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट दिए जाने का एक ‘गैर-पश्चिमी’ पी-5 पावर विरोध कर
रही है. उनसे यह भी पूछा गया था कि यूक्रेन-युद्ध के बाद रूस और चीन के बीच बढ़ी
निकटता से क्या भारत की चिंता बढ़ी है, उन्होंने कहा, पश्चिमी देशों की यह गलती है
कि उन्होंने रूस को केवल एक ही विकल्प की धकेल दिया है.
उन्होंने कहा कि पश्चिमी
देशों ने अपने दरवाज़े बंद करके रूस के पास केवल एक ही रास्ता छोड़ा है. रूस इस
प्रकार के दबाव को स्वीकार नहीं करेगा. उन्होंने यह भी कहा कि एशियाई देशों को रूस
को साथ लेकर चलना चाहिए. रूस बड़ी शक्ति है और वहां राज-काज एवं विदेश नीति तय
करने की एक अनोखी परंपरा रही है. ऐसी शक्तियां कभी भी केवल एक देश के साथ संबंध
रखने तक सीमित नहीं रख सकतीं.
हिंद महासागर
में चीन
हाल में घटित कुछ घटनाओं
पर नज़र डालें. खासतौर से चीन के इशारे पर मालदीव जैसे छोटे देश के नए राष्ट्रपति मोहम्मद
मुइज़्ज़ू के कड़वे बयानों और चीन के समुद्री अनुसंधान पोत जियांग यांग होंग-3 के मालदीव
पर ध्यान दें. एक तरफ पश्चिम एशिया में इसराइल और हमास का टकराव चल रहा है, वहीं अदन की खाड़ी और फारस की खाड़ी से लेकर उत्तरी अरब
सागर में चीन और पाकिस्तान की नौसेनाओं की गतिविधियाँ भी बढ़ रही हैं.
पिछले कुछ वर्षों में
चीन ने पाकिस्तानी नौसेना को खासतौर से उपकरणों और प्लेटफॉर्मों से सजाया है.
पाकिस्तानी नौसेना के आधुनिकीकरण में तुर्की की भूमिका भी है, पर सबसे बड़ा हाथ चीन का है. मालदीव इन दो देशों की ओर
ही हाथ बढ़ा रहा है.
सी गार्डियन-3
अभ्यास
नवंबर के दूसरे सप्ताह
में चीन और पाकिस्तान की नौसेनाओं ने अब तक का अपना सबसे बड़ा सी गार्डियन-3
नौसैनिक-अभ्यास किया. दोनों नौसेनाओं के अभ्यास सी गार्डियन-2023 का उद्घाटन 11
नवंबर को कराची स्थित पाकिस्तान नौसेना के डॉकयार्ड में किया गया. यह अभ्यास 17
नवंबर तक चला.
चीन के किंगदाओ नौसेना
बेस के कमांडर, रियर एडमिरल लियांग यांग और पाकिस्तान फ्लीट
के कमांडर वाइस एडमिरल मुहम्मद फैसल अब्बासी इस मौके पर पहुंचे थे. दोनों ने इस
साझा अभ्यास को नौसेनाओं के बीच गहरे सामरिक-संबंधों का प्रतीक बताया.
मालदीव में
बदलाव
मालदीव में जो चीनी
जहाज अब आया है, वैसे ही दो जहाज अतीत में श्रीलंका में भी आए थे, पर इस साल जनवरी
में श्रीलंका ने फैसला किया कि वह अगले एक साल तक ऐसे किसी पोत को अपने यहाँ रुकने
की अनुमति नहीं देगा, जिसका सैनिक और असैनिक इस्तेमाल हो सकता है.
मालदीव के राष्ट्रपति
मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने पिछले महीने चीन का दौरा किया था. 13
जनवरी को जब मुइज़्ज़ू पांच दिन की चीन यात्रा से स्वदेश लौटे तो उन्होंने
पत्रकारों के सवालों के जवाब के दौरान कहा, हम
भले ही छोटे देश हैं, लेकिन इससे किसी को हमें धमकाने का
लाइसेंस नहीं मिल जाता.
उन्होंने हिंद महासागर को लेकर कहा, यह समुद्र किसी
ख़ास देश का नहीं है. ये उन सभी देशों का है, जो
यहां और इसके आसपास बसे हैं. उन्होंने यह साफ नहीं किया कि वे किस देश की बात कर
रहे हैं, पर यह समझने में किसी को देर नहीं लगी कि उनका इशारा भारत की ओर है.
उन्होंने भारतीय सैनिकों को 15 मार्च तक देश
छोड़ने का अल्टीमेटम भी दिया. इसके तुरंत बाद खबरें आईं कि वह हिंद महासागर में
निगरानी के लिए तुर्की से ड्रोन खरीदना चाहता है.
प्रभाव-क्षेत्र
की स्पर्धा
न केवल मालदीव में, बल्कि
पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में भारत और चीन के बीच प्रभाव-क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा
है. बात केवल मुइज़्ज़ू की चीन-यात्रा तक सीमित नहीं है. हाल में चीन के युन्नान
प्रांत के कुनमिंग में हुए 'चाइना-इंडियन ओशन रीजन फ़ोरम ऑन
डेवलपमेंट कोऑपरेशन' के दूसरे सम्मेलन में मालदीव के
उप-राष्ट्रपति हुसैन मोहम्मद लतीफ़ ने हिस्सा लेकर चीन की भू-राजनीतिक योजनाओं के
साथ जाने का इरादा भी व्यक्त कर दिया था.
चीन का यह कार्यक्रम 2018 में लॉन्च किया गया
था. यह भारत के ‘इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (आयोरा)’ की जवाबी मुहिम है. ‘आयोरा’
भारत की पहल है, जिसे 1997 में हिंद महासागर से लगे 23
देशों के साथ मिलकर बनाया गया है.
चीन ने इस बात को कभी स्पष्ट नहीं किया कि हिंद
महासागर से बहुत दूर होने के बावजूद उसे ‘आयोरा’ के समांतर एक नए समूह की जरूरत
क्यों है. ज़ाहिर है कि वह इस इलाके पर अपना प्रभाव बनाकर रखना चाहता है. इस इलाके
पर ही नहीं, उसकी दिलचस्पी पूरी दुनिया में है.
मिलन-2024
हिंद महासागर में इन
दिनों भारतीय नौसेना का सबसे बड़ा बहुपक्षीय अभ्यास मिलन-2024 चल रहा है, जिसमें भाग
लेने के लिए 58 देशों को नौसेनाओं को निमंत्रित किया गया है. इसमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूके, कनाडा, जर्मनी, इटली, स्पेन और
फ्रांस के अलावा रूस की नौसेना भी शामिल है.
पड़ोस से बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका और
मालदीव के अलावा ईरान, इराक़, यूएई, ओमान जैसे देश भी हैं. थाईलैंड, इंडोनेशिया,
मलेशिया, वियतनाम, कंबोडिया, फिलीपींस दक्षिण कोरिया और जापान की नौसेनाएं भी
इसमें आई हैं.
यह अभ्यास भारत के ‘एक्ट
ईस्ट पॉलिसी’ और ‘सिक्योरिटी एंड
ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन-सागर’ जैसे अंतरराष्ट्रीय राजनयिक प्रयासों
के अनुरूप भी है. 1995 में शुरू किया गया यह द्विवार्षिक बहुपक्षीय-अभ्यास है.
मिलन 2024 इसका 12वाँ संस्करण है. भारत की ‘सागर’ पहल को 2015 में नरेंद्र मोदी ने
मॉरिशस में लॉन्च किया था. कोविड-19 के दौरान भारत ने ‘पड़ोसी पहले’ सिद्धांत के
आधार पर हिंद महासागर से जुड़े देशों तक दवाएं, ऑक्सीजन
और वैक्सीन पहुँचाई थी.
इसके अलावा भारत के ‘प्रोजेक्ट मौसम’ और
‘इंटीग्रेटेड कोस्टल सर्विलांस सिस्टम’ जैसे कार्यक्रम भी हैं. ये सभी कार्यक्रम
हिंद महासागर तक सीमित हैं, जबकि चीन लंबी दूरी पार करके इस इलाके
में आना चाहता है. ज़ाहिर है कि उसका उद्देश्य अपना दबदबा कायम करने का है.
जासूसी पोत
यह अभ्यास जब चल रहा
था, उसी दौरान चीनी जासूसी पोत का इस इलाके में आना और उसे मालदीव में लंगर डालने
की अनुमति मिलना भारत के लिए चिंता का विषय है. माले में आने के पहले इस पोत ने
मालदीव के विशेष आर्थिक क्षेत्र में करीब एक महीने तक काम किया.
इस प्रकार के पोत
समुद्र के नीचे की तलहटी और सतह के बारे में कई तरह की जानकारियाँ एकत्र करते हैं.
इनमें उपग्रहों की ट्रैकिंग के उपकरण भी लगे होते हैं. इन सभी उपकरणों के सैनिक और
असैनिक दोनों तरह के इस्तेमाल होते हैं. उपग्रहों के अलावा ये मिसाइलों के
परीक्षणों और उनकी ट्रैजेक्टरी वगैरह के बारे में भी जानकारियाँ एकत्र करते हैं.
विशेषज्ञों का कहना है
कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पास चीनी सर्वेक्षण गतिविधियों का उद्देश्य
अमेरिकी नौसेना के 'फिश-हुक' सेंसर नेटवर्क
का पता लगाना है. जब कोई चीनी पनडुब्बी हिंद महासागर में प्रवेश करती है तो
नेटवर्क को अलार्म बजाने के लिए डिज़ाइन किया गया है. इस इलाके का उथला पानी
पनडुब्बियों का पता लगाने में आसान बनाता है.
आर्थिक-संकट
मालदीव अपने हितों के
लिए किसी की सहायता ले, इसमें आपत्ति की बात नहीं है, पर यदि वह किसी दूसरे के
हितों की रक्षा के लिए अपने कंधे का सहारा देने लगेगा, तो उसके कारण को समझना
होगा. देश की नई सरकार ने चीन के साथ रिश्ते बेहतर बनाने की कोशिश जरूर की है, पर
उसे आने वाले समय के आर्थिक-संकट का अनुमान भी है.
मालदीव बहुत छोटा देश
है, जिसके पास सिवाय पर्यटन के ऐसी कोई आर्थिक गतिविधि नहीं है, जिससे उसकी आय हो
सके. वह जरूरत की ज्यादातर चीजें बाहर से मँगाता है.
उसकी अर्थव्यवस्था इतना राजस्व नहीं जुटा पाती है, जिससे
अपना इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर सके. उसके लिए उसे कर्ज लेना पड़ रहा है.
ताजा रिपोर्टों के
अनुसार उसके ऊपर 4.038 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है, जिसकी वापसी उसे करनी है, जबकि
देश की सालाना आय ही 5.6 अरब डॉलर है. 2026 के साल में उसके सामने भुगतान का संकट
पैदा होने वाला है. उसके ऊपर चीन का 1.3 अरब डॉलर का कर्ज है.
वह चीन से राहत या छूट
पाने का प्रयास कर रहा है. इसी महीने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चेतावनी दी है
कि मालदीव के सामने भुगतान का संकट आने वाला है. ऐसा ही संकट पाकिस्तान और
श्रीलंका के सामने है. श्रीलंका ने इससे बचने के उपाय किए हैं, पर पाकिस्तान सरकार
मुद्राकोष से बात कर रही है, जिसने उसके सामने कड़ी शर्तें रखी हैं.
मुद्राकोष ने गत 7
फरवरी के वक्तव्य में यह स्पष्ट नहीं किया है कि मालदीव के सामने किस प्रकार का
संकट आने वाला है, पर इतना जरूर कहा है कि यदि देश की वित्तीय नीतियों में बदलाव
नहीं किया गया, तो उसके राजकोषीय घाटे और सार्वजनिक ऋण का स्तर बढ़ जाएगा.
No comments:
Post a Comment