Wednesday, February 7, 2024

इमरान को सज़ा और पाकिस्तान के खानापूरी चुनाव


मंगलवार 30 जनवरी को पाकिस्तान की एक विशेष अदालत ने साइफर मामले में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को दस साल जेल की सजा सुनाई. उसके अगले ही दिन एक और अदालत ने उन्हें और उनकी पत्नी बुशरा बीबी को तोशाखाना मामले में 14 साल कैद की सजा सुना दी.

इतना ही काफी नहीं था. शनिवार को एक अदालत ने इमरान और बुशरा बीबी की शादी को गैर इस्लामिक करार दिया. इमरान खान इसके पहले आरोप लगा चुके हैं देश की सेना ने मेरे पास संदेश भेजा था कि तीन साल के लिए राजनीति छोड़ दूँ, तो शादी बच जाएगी. इमरान और बुशरा बीबी को इस मामले में सात साल सजा सुनाई गई है.

इंतक़ाम की आग

इन सज़ाओं के पीछे प्रतिशोध की गंध आती है. साबित यह भी हो रहा है कि पाकिस्तान क एस्टेब्लिशमेंट (यानी सेना) बहुत ताकतवर है. सारी व्यवस्थाएं उसके अधीन हैं. इन बातों के राजनीतिक निहितार्थ अब इसी महीने की 8 तारीख को हो रहे चुनाव में भी देखने को मिलेंगे.

स्वतंत्रता के बाद से पाकिस्तान में जो चंद चुनाव हुए हैं, उनकी साख कभी नहीं रही, पर इसबार के चुनाव अबतक के सबसे दाग़दार चुनाव माने जा रहे हैं. बहरहाल अब सवाल दो हैं. इसबार बनी सरकार क्या पाँच साल चलेगी? क्या वह सेना के दबाव और हस्तक्षेप से मुक्त होगी?

दक्षिण एशिया का आर्थिक प्रगति, शांति और स्थिरता के लिहाज से पाकिस्तान की प्राशासनिक-व्यवस्था की बहुत बड़ी भूमिका है. यह देखते हुए भी कि वेस्टर्न डिस्टर्बेंस के साथ युद्ध के बादल अरब सागर के ऊपर मंडरा रहे हैं.   

इमरान इन चुनावों में भाग लेने से अयोग्य घोषित किए जा चुके हैं. उनके अनेक पुराने सहयोगी पार्टी छोड़कर जा चुके हैं. फिर भी माना जाता है कि जनता के एक तबके की हमदर्दी इमरान खान के साथ है.

उनकी टूटी-फूटी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के प्रत्याशी तकनीकी कारणों से पार्टी के चुनाव चिह्न बैट की जगह निर्दलीय के रूप में अलग-अलग चिह्नों जैसे कि केतली, बैंगन, बकरी और चिमटे वगैरह पर चुनाव लड़ रहे हैं.

पार्टी के आंतरिक चुनाव नहीं हो पाने के कारण चुनाव आयोग ने उन्हें यह सजा दी है. अब वोटर इनका साथ दे और इनमें से कुछ लोग जीत भी जाएं तब भी पीटीआई को कुछ नहीं मिलने वाला है. दूसरी तरफ सरकार बनाने के लिए सांसदों की ज़रूरत पड़ी, तो इन्हें खरीदना सबसे आसान होगा.  

सामंतों का प्रभुत्व

पाकिस्तान की राजनीति में जमींदारों और सामंतों का कब्ज़ा है. पिछले कुछ वर्षों में आम जनता का रुझान राजनीति की ओर बढ़ा है. पिछले दो साल में इमरान खान के समर्थन में जिस तरह से भीड़ उमड़ी, उससे लगा कि राजनीति अब ग्रासरूट की तरफ मुड़ रही है.

ऐसी राजनीति में भी खतरे होते हैं. अपने समर्थकों को नियंत्रण में रखने की जिम्मेदारी नेताओं की होती है, जो इमरान खान भी नहीं कर पाए. इमरान खान और उनकी पार्टी के बाहर रहने के कारण इस चुनाव में वैसी प्रतिस्पर्धा देखने को नहीं मिलेगी, जो आज के माहौल में संभव थी.

दूसरी तरफ देश की राजनीतिक स्थिति का आलम यह है कि पिछले गुरुवार को ही यह स्पष्ट हुआ कि चुनाव 8 को ही होंगे. पूरा देश अजब अनिश्चय का सामना कर रहा है. खैबर पख्तूनख्वा और बलोचिस्तान में कानून और व्यवस्था की स्थिति खराब है. माना जा रहा था कि वहाँ चुनाव टल जाएंगे.

अब चुनाव आयोग ने कहा है कि पूरे देश में एकसाथ चुनाव होंगे. सेना ने भी कहा है कि हम चुनाव-व्यवस्था को सुरक्षा प्रदान करेंगे. इससे लग रहा है कि चुनाव होंगे. परिणाम क्या होगा, यह अब देखना होगा. उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण होगा, यह देखना की सरकार किस तरह काम करती है और कब तक बनी रहती है.

इमरान को सज़ा

साइफर मामले में विशेष अदालत का गठन जितनी तेजी से हुआ और जिस तेजी से इस मुकदमे को चलाया गया, उससे यह पहले ही स्पष्ट होने लगा था कि इसमें इमरान को सजा होगी.

यह बात ध्यान देने वाली है कि इस्लामाबाद हाईकोर्ट इसके पहले दो बार इस मुकदमे को फिर से सुनने का आदेश दे चुकी है. अब तीसरी बार भी प्रक्रिया को लेकर आपत्तियाँ हैं और संभव है कि इसबार फिर से इसके खिलाफ अपील हो.

दोनों सजाएं पाकिस्तान में हो रहे 8 फरवरी के आम चुनाव के एक हफ्ते पहले सुनाई गई हैं. इसमें किसी किस्म का संदेह नहीं कि इन सजाओं की प्रकृति आपराधिक से ज्यादा राजनीतिक हैं.

इनकी तुलना अतीत में ज़ुल्फिकार अली भुट्टो और नवाज़ शरीफ जैसे राजनेताओं को दी गई सजाओं से की जा सकती है. इनसे यह भी स्पष्ट है कि पाकिस्तान में सेना का वर्चस्व कायम है और किसी भी किस्म के असैनिक सत्ता-परिवर्तन में उसकी सबसे बड़ी भूमिका है.

शरीफ को माफी

इमरान खान के खिलाफ चल रहे मुकदमों के मुकाबले पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के लिए इस वक्त अदालतें नरमी बरत रही हैं. जनवरी के पहले सप्ताह में देश के सुप्रीम कोर्ट ने 6-1 के बहुमत से छह साल पुराने अपने उस फैसले को पलट दिया, जिसके तहत उन्हें चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया गया था.

मंगलवार को विशेष अदालत के न्यायाधीश अबुल हसनत मुहम्मद जुल्करनैन ने इमरान और शाह महमूद कुरैशी को अदियाला जेल में आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत सजा सुनाई. जज ने फैसला सुनाने से पहले पक्षों को अपनी अंतिम दलीलें देने का समय भी नहीं दिया.

हालांकि इमरान की ओर से इन सभी फैसलों को ऊपरी अदालतों में चुनौती दी जाएगी, पर अतीत के अनुभव बताते हैं कि उनकी राह आसान नहीं है. हाँ, इतना ज़रूर कहा जाएगा कि जिस राह से इमरान खान सत्ता में आए, उसी राह से उन्हें जाना भी पड़ा.

साइफर केस

इमरान खान को 10 अप्रैल, 2022 को विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से प्रधानमंत्री पद से हटा दिया गया था. इससे दो हफ्ते पहले, 27 मार्च को इमरान खान ने इस्लामाबाद में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ की रैली में अपने समर्थकों के सामने एक कागज लहराया था, जिसमें दावा किया गया था कि यह 'साइफर' था जिसमें उन्हें सत्ता से बाहर करने की जानकारी थी.

सामान्य राजनयिक पोस्ट या पत्र के विपरीत, यह साइफर कोड की भाषा में लिखा जाता है. कोड भाषा में साइफर लिखना और इन कोड को डिकोड करना किसी आम आदमी का काम नहीं बल्कि संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों का काम है.

बैठक के बाद इमरान खान ने एक अन्य भाषण में दावा किया कि तत्कालीन अमेरिकी सहायक सचिव डोनाल्ड लू ने अमेरिका में पाकिस्तानी राजदूत असद मजीद खान से कहा था कि इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास हुआ, तो वे पाकिस्तान को माफ कर देंगे.

अमेरिकी साज़िश

इमरान खान ने जोर देकर कहा कि डोनाल्ड लू उनकी सरकार को गिराने की अमेरिकी साजिश का हिस्सा थे. हालांकि, अमेरिकी विदेश कार्यालय ने इन सभी आरोपों से इनकार किया.

इमरान खान इसके पहले भी कई बार पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा को इस 'साजिश' का मुख्य किरदार बता चुके हैं. इमरान खान की कुर्सी छिन जाने के बाद पाकिस्तान की संघीय जांच एजेंसी ने उनके और शाह महमूद कुरैशी के खिलाफ आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था.

इसके बाद 19 जुलाई 2023 को तत्कालीन प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की गठबंधन सरकार ने आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत जाँच का आदेश दिया और इमरान खान को 29 अगस्त गिरफ्तार कर लिया गया.

इस मामले में इमरान खान पर मुख्य आरोप यह था कि उन्होंने एक संवेदनशील राजनयिक दस्तावेज का इस्तेमाल राजनीतिक फायदे के लिए किया. विशेष अदालत ने 13 दिसंबर, 2023 को इस मामले में इमरान खान और शाह महमूद कुरैशी को दोषी ठहराया था. तब से मामले पर सुनवाई लगभग रोजाना चल रही थी।

तोशाखाना मामला

पिछले साल अगस्त में इस्लामाबाद की एक जिला अदालत ने तोशाखाना मामले में इमरान खान को दोषी ठहराया था और उन्हें तीन साल जेल और एक लाख जुर्माने की सजा सुनाई थी. फैसले के बाद इमरान खान को लाहौर स्थित उनके आवास से गिरफ्तार कर लिया गया.

बाद में इस्लामाबाद उच्च न्यायालय ने एक अपील के परिणामस्वरूप तोशाखाना मामले में इमरान खान की सजा को निलंबित कर दिया था. उसके बाद हाईकोर्ट के खंडपीठ ने ही सजा के निलंबन की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया. उस मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद इमरान खान को पाँच साल के लिए संसदीय राजनीति में भाग लेने से अयोग्य घोषित कर दिया गया था.

अल-कादिर ट्रस्ट

इमरान खान को पाकिस्तान में 'अल-कादिर ट्रस्ट करप्शन केस' नाम से एक और मामले का सामना करना पड़ रहा है. नेशनल एकाउंटेबलिटी ब्यूरो (नैब या एनएबी) ने अल कादिर ट्रस्ट मामले में पिछले साल मई में इमरान खान को इस्लामाबाद हाई कोर्ट परिसर से गिरफ्तार किया था. यह मामला साढ़े चार सौ कनाल से ज्यादा जमीन के दान से जुड़ा है जो बहरिया टाउन ने अल कादिर यूनिवर्सिटी को दी थी.

गठबंधन सरकार ने आरोप लगाया था कि यह मामला दान का नहीं बल्कि बहरिया टाउन के मालिक मलिक रियाज और इमरान खान की सरकार के बीच एक गुप्त समझौते का नतीजा था और तत्कालीन गठबंधन सरकार ने दावा किया था कि बहरिया टाउन के 19 करोड़ पाउंड या 60 अरब रुपये की राशि, जिसे यूनाइटेड किंगडम में फ़्रीज़ करने के बाद पाकिस्तानी सरकार को सौंप दिया गया था, बहरिया टाउन कराची के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मलिक रियाज़ पर 460 अरब रुपये बकाया है.

9 मई का मामला

पिछले साल 9 मई को इस्लामाबाद में इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद देशभर में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए थे. यह प्रदर्शन हिंसक दंगों में बदल गया था. प्रदर्शनकारियों ने सरकारी और फौजी इमारतों को नुकसान पहुंचाया था.

इसके बाद पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ से जुड़े दर्जनों कार्यकर्ताओं और नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. इन हिंसक विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए 100 से अधिक लोगों पर सैन्य अदालतों में मुकदमा चलाया जा रहा है.

इस मामले में इमरान खान का भी नाम आया था और उनसे जेल में पूछताछ भी की गई थी. इस मामले को लेकर खासतौर से सेना नाराज़ है, क्योंकि 9 मई को सेना के ठिकानों पर हमले किए गए थे.

सामंतवाद-परिवारवाद

पाकिस्तान की राजनीति पर जमींदारों और सामंतों का दबदबा है. 1970 के चुनाव में, इन बिचौलियों की ताकत टूटती दिखाई पड़ी और पीपीपी के मंच से संसद में मध्यम वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व संभव हुआ. उसी साल का चुनाव अंततः देश के टूटने और बांग्लादेश की स्थापना का कारण बना.

1977 के चुनाव में ज़ुल्फिकार अली भुट्टो को एक बार फिर बिचौलियों पर निर्भर रहना पड़ा. 1985 के आम चुनाव से लेकर 2018 तक कमोबेश यही स्थिति रही. अलबत्ता 2013 में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के मंच से नए चेहरों को आगे आने का मौका मिला, लेकिन 2018 के चुनावों में, पीटीआई ने फिर ऐसे लोगों पर ही भरोसा किया, जो अपनी निजी ताकत या छवि से चुनाव जीत सकते थे.

2018 में बीबीसी की एक रिपोर्ट में लाहौर के इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट एंड इकोनॉमिक ऑल्टरनेटिव्स ने इसे लेकर एक शोध किया था, जिसमें बताया गया था कि पिछले तीन दशकों से पंजाब में 400 परिवार ऐसे हैं जो नीतियां और कानून बनाते हैं.

इस शोध में इस बात को भी रेखांकित किया गया कि वंशानुगत राजनीति जमींदारों के वर्ग तक ही सीमित नहीं है, बल्कि राजनीति में आने वाले उद्योगपतियों और व्यापारियों ने भी अपने उत्तराधिकारियों को राजनीति से जोड़ा और देश में खानदानी परंपरा को कायम किया है.

आवाज़ द वॉयस में प्रकाशित

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