पाकिस्तान के चुनाव
परिणामों से यह बात साफ हुई कि मुकाबला इतना काँटे का नहीं था, जितना समझा जा रहा था। साथ ही इमरान खान की कोई आँधी भी
नहीं थी। उन्हें नए होने का फायदा मिला, जैसे दिल्ली में आम आदमी पार्टी को मिला था। जनता नए को यह सोचकर मौका
देती है कि सबको देख लिया, एकबार इन्हें भी देख लेते
हैं। ईमानदारी और न्याय की आदर्श कल्पनाओं को लेकर जब कोई सामने आता है तो मन कहता
है कि क्या पता इसके पास जादू हो। इमरान की सफलता में जनता की इस भावना के अलावा
सेना का समर्थन भी शामिल है।
पाकिस्तान के धर्म-राज्य
की प्रतीक वहाँ की सेना है, जो जनता को यह बताती है कि हमारी बदौलत आप बचे हैं।
सेना ने नवाज शरीफ के खिलाफ माहौल बनाया। यह काम पिछले तीन-चार साल से चल रहा था। पाकिस्तान
के इतिहास में यह पहला मौका था, जब सेना ने खुलकर चुनाव में हिस्सा लिया और नवाज
शरीफ का विरोध और इमरान खान का समर्थन किया। वह खुद पार्टी नहीं थी, पर इमरान खान
उसकी पार्टी थे। देश के मीडिया का काफी बड़ा हिस्सा उसके प्रभाव में है। नवाज शरीफ
ने देश के सत्ता प्रतिष्ठान से पंगा ले लिया था, जिसमें अब न्यायपालिका भी शामिल है।