Sunday, December 4, 2016

कहीं उल्टा न पड़े ममता का तैश और तमाशा

ममता बनर्जी की छवि तैश में रहने वाली नेता की है। मूलतः वे स्ट्रीट फाइटर हैं। उन्हें इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने वाम मोर्चा के मजबूत गढ़ को गिरा कर दिखा दिया। और यही तथ्य उन्हें लगातार उत्तेजित बनाकर रखता है। वाम मोर्चा अब सत्ता से बाहर है, पर ममता स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स की साख बनाए रखने के लिए उन्हें कुछ न कुछ करते रहना पड़ता है। केंद्र सरकार के नोटबंदी कार्यक्रम ने उन्हें इसका मौका दिया है।

नोटबंदी का विरोध करते-करते ममता ने मूल समस्या को पीछे करके खुद को समस्या के रूप में पेश करना शुरू कर दिया है। यानी पहले सरकार ने नोटबंदी का कदम उठाया, जो ममता की नजर में जन-विरोधी है। चूंकि ममता ने इस कदम का विरोध किया, जिसके कारण मोदी सरकार ने ममता की जान लेने का फैसला किया है। इतना ही नहीं केंद्र सरकार राज्य के मामलों में हस्तक्षेप करने लगी है और सेना का इस्तेमाल कर रही है। लगभग इसी अंदाज में कुछ महीने पहले अरविंद केजरीवाल ने मोदी पर आरोप लगाया था, 'वह इतने बौखलाए हुए हैं कि मेरी हत्या तक करवा सकते हैं।' और यह भी कि मोदी मुझसे घबराता है।
पिछले दो हफ्ते से ममता बनर्जी दिल्ली-केंद्रित राजनीति में सक्रिय हैं। नोटबंदी की घोषणा होने के फौरन बाद उन्होंने अपने साथ दो-तीन दलों के नेताओं को लिया और राष्ट्रपति भवन तक मार्च किया। उसके बाद जंतर-मंतर पर रैली की जिसमें कुछ और दल साथ में आए। यहाँ तक यह राजनीतिक आंदोलन था। इसके बाद उन्होंने अपने विमान को उतरने में देरी और बंगाल में सेना की एक एक्सरसाइज़ को लेकर जो हंगामा खड़ा किया है, वह सामान्य राजनीति से ज्यादा है।
कोलकाता हवाई अड्डे पर बुधवार की रात एक निजी एयरलाइंस के विमान की लैंडिंग में विलंब हुआ। आरोप है कि आधे घंटे से अधिक समय तक विमान शहर के आसमान में चक्कर लगाता रहा। हवाई अड्डे से यातायात नियंत्रक ने उनके विमान को उतरने की अनुमति नहीं दी। ऐसा अकसर होता है, क्योंकि हवाई अड्डों पर यातायात बढ़ता जा रहा है। बहरहाल इस विमान में ममता बनर्जी थीं। बताया जाता है कि इसमें ज्यादा देर के लिए ईंधन नहीं बचा था। यह भी आरोप है, जबकि विमान कम्पनी का कहना है कि विमान के उतरने के बाद भी उसमें काफी ईंधन था।
राज्य के शहरी विकास मंत्री फरहत हकीम भी ममता बनर्जी के साथ उसी विमान में थे। उन्होंने बाद में कहा, 'यह और कुछ नहीं, हमारी मुख्यमंत्री की हत्या का षड्यंत्र था, क्योंकि उन्होंने नोटबंदी के खिलाफ आवाज उठाई है और जन-विरोधी निर्णय के खिलाफ जनांदोलन के लिए देश का दौरा कर रही हैं।' यह काफी दूर की कौड़ी थी, पर कोलकाता में काम करती है। उन्हें यह समझना चाहिए कि उस विमान का चालक किसी आत्मघाती दस्ते का सदस्य नहीं था, जो उनकी जान देने के लिए अपनी जान देता।
विमान प्रकरण चल ही रहा था कि कुछ टोल प्लाजा पर सेना की एक्सरसाइज़ को लेकर ममता ने हंगामा खड़ा कर दिया। उनका कहना है कि केंद्र सरकार ने हमारे खिलाफ सेना तैनात कर दी। उन्होंने सचिवालय में ही डेरा डाल दिया। साथ ही कहा, यह बहुत गंभीर स्थिति है आपातकाल से भी खराब। ममता ने इस मामले में सेना की आलोचना नहीं की, बल्कि केंद्र सरकार और नरेंद्र मोदी पर हमला बोला। इसके पीछे की राजनीति साफ झलकती है, पर ममता की खासियत है कि वे आगे बढ़ने के बाद पीछे नहीं हटतीं। गलत को वे और ज्यादा जोर देकर सच साबित करने की कोशिश में लग जाती हैं।  
सेना ऐसा अभ्यास नियमित रूप से करती रहती है। एक रक्षा प्रवक्ता ने कहा कि सेना साल में दो बार देशभर में ऐसा अभ्यास करती है। इसका उद्देश्य यह पता लगाना होता है कि सड़कों पर ट्रैफिक कितना है। इस तथ्य की जानकारी इसलिए जरूरी है कि आपातकाल में सेना के वाहनों को सड़कों पर से गुजरना पड़े तो उन्हें कितना समय लगेगा। सेना ने कोलकाता पुलिस और प्रशासन को सही समय पर इसकी जानकारी भी दी थी। बल्कि पुलिस ने सेना से कहा था कि 28 को बंद होने के कारण उस दिन यह काम नहीं किया जाए।
ममता सरकार कह रही है कि हमने सेना को इस एक्सरसाइज़ की अनुमति नहीं दी। यह बात मान भी ली जाए, पर इसे सरकार को पीड़ित या प्रताड़ित करने की कार्रवाई कैसे कहेंगे? इसे ज्यादा से ज्यादा सरकारी व्यवस्थाओं के समन्वय में खामी मान सकते हैं। जबकि ममता सरकार इसे घृणित साजिश बता रही है। उन्होंने संघीय व्यवस्था के सवाल भी उठा दिए हैं। वे एक साथ कई चीजों को जोड़ रहीं हैं। उनकी पार्टी का कहना है कि केंद्र सरकार राज्य के मामलों में हस्तक्षेप कर रही है। उसने कोलकाता नगर निगम के राजस्व का पता लगाने के लिए इस एक्सरसाइज़ का सहारा लिया। अचानक लगने लगा है कि मोदी सरकार का निशाना केजरीवाल नहीं, ममता बनर्जी हैं।   
ममता की राजनीति पर नजर रखने वालों का कहना है कि कई मसलों को जोड़कर विरोध की लहर पैदा करना उनकी रणनीति रही है। सन 2006 से 2008 के बीच सिंगुर-नंदीग्राम आंदोलन के साथ उन्होंने कई तरह के मसलों को जोड़ा और वाममोर्चा के खिलाफ माहौल बनाया था। इसमें उन्होंने रिजवानुर रहमान मौत और सच्चर आयोग की रपट का सहारा लेकर मुसलमानों के बीच जगह बनाई।
उनके आरोप कितने ही बेदम हों, उन्हें वे पूरी ताकत से दोहराती हैं। साथ ही उसके पक्ष में समर्थन हासिल करने की कोशिश करती हैं। संसद में उन्हें सेना की एक्सरसाइज़ को लेकर बसपा और कांग्रेस का समर्थन मिल गया। इधर उनके विधायक कोलकाता में राजभवन तक जाकर अपना विरोध व्यक्त कर आए हैं। उनकी पार्टी जोरदार तरीके से कह रही है कि लोकतंत्र खतरे में है। सवाल यह है कि क्या उनकी इस रणनीति को राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन मिलेगा?  बंगाल में लोकप्रिय होने की कला क्या देशभर में भी सफल होगी?
हालांकि बंगाल में कांग्रेस और तृणमूल ने एक-दूसरे का विरोध किया है, पर इस मामले में दोनों साथ हैं। गुरुवार को कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में राहुल ने कहा कि मोदी टीआरपी की राजनीति कर रहे हैं। यानी मोदी चर्चा में बने रहने के लिए नोटबंदी जैसे कदम उठाते हैं। यानी जनता ने दिक्कतों के बावजूद नोटबंदी का विरोध नहीं किया है। राहुल इसे टीआरपी बटोरना कहते हैं। पर क्या यह कर्ज माफी जैसा लोक-लुभावन काम है?
ममता के विरोधी उन्हें जुनूनी, लड़ाका और विघ्नसंतोषी मानते हैं। सच है कि वे कोरी हवा बाजी से नहीं उभरी हैं। उनके जीवन में सादगी, ईमानदारी और साहस है। पर अब वे मुख्यमंत्री हैं, सिर्फ आंदोलनकारी राजनेता नहीं। यह बात उनकी जीवन शैली से मेल नहीं खाती। सेना की एक्सरसाइज़ सही तरीके से हुई या नहीं इसे लेकर उनकी आपत्तियाँ अपनी जगह हैं और नोटबंदी की राजनीति अपनी जगह। उन्होंने दोनों को जोड़ दिया है।
सेना की एक्सरसाइज़ केवल बंगाल में ही नहीं हुई, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर में हुई थी। कहीं और से शिकायत नहीं आई। इसके पहले यही एक्सरसाइज़ 26 सितम्बर से 1 अक्तूबर के बीच यूपी, झारखंड और बिहार में भी हुई है। वहाँ की सरकारों ने ऐसी कोई शिकायत नहीं कि फौजी बगावत हो गई है। ममता ने ऐसे ही शब्दों का इस्तेमाल किया है और केंद्र के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है। क्या वे अदालत का दरवाजा खटखटाएंगी?
विमान में ईंधन कम होने के मामले को भी उन्होंने नोटबंदी और नरेंद्र मोदी से जोड़ा है। तकरीबन यही रणनीति अरविंद केजरीवाल की है। हो सकता है कि यह रणनीति उन्हें लोकप्रिय बनाती हो, पर यह ज्यादा देर नहीं चलती और साख कम करती है। ममता बनर्जी यदि राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी नेता के रूप में उभरना चाहती हैं तो उन्हें अपनी साख का ख्याल भी रखना चाहिए। इस देश की जनता को केवल तैश और तमाशा ही पसंद नहीं है।



हरिभूमि में प्रकाशित

2 comments:

  1. the problem is that all 'opposition' leaders lack imagination, they continue to believe that such tricks can work against Modi

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  2. धरने व आंदोलन की राजनीति करने वाले नेताओं को ज़रा सी सफलता के मिलने के बाद हवा में उड़ान भरने लगते हैं और यह भूल जाते हैं कि ये राजनीति के अस्त्र सामायिक ही होते हैं , ममता हो या केजरी दोनों ही का अंत असामयिक ही होगा

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