असर करे या न करे, पर राहुल गांधी के लिए ‘सहारा’ का तीर चलाना मजबूरी बन गया था. दो हफ्ते पहले वे घोषणा कर
चुके थे कि उनके पास ऐसी जानकारी है, जो भूचाल पैदा कर देगी. उसे छिपाकर रखना उनके
लिए संभव नहीं था.
देर से दी गई इस जानकारी से अब कोई भूचाल तो पैदा नहीं होगा, पर
राजनीति का कलंकित चेहरा जरूर सामने आएगा. जिन दस्तावेजों का जिक्र किया जा रहा
है, उनमें कांग्रेस को परेशान करने वाली बातें भी हैं.
अलबत्ता इन आरोपों-प्रत्यारोपों के कारण राजनीतिक दलों के चंदे में पारदर्शिता की माँग को अब और
बल मिलेगा.
राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ वही आरोप दोहराए
जिन्हें लेकर प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. राहुल ने इनकम
टैक्स विभाग के दस्तावेजों का हवाला देते हुए पीएम मोदी पर आरोप लगाया कि उन्होंने
सहारा और बिड़ला कंपनी से कई बार करोड़ों रुपये लिए.
राहुल ने नोटबंदी को आम लोगों
के खिलाफ बताते हुए कहा कि इसका मकसद विजय माल्या जैसे 'चोरों' का कर्ज माफ करना था.
उनके इस बयान से राजनीति की गंध आ रही है, नोटबंदी के कारण पैदा हुई जनता की
परेशानी नहीं.
अब यह साफ है कि कांग्रेस ने सिर्फ इस बयान की खातिर संसद के शीत
सत्र को धुल जाने दिया.
हाल में प्रशांत भूषण ने एक इंटरव्यू में जानकारी दी थी कि सन 2013 में कोयला
खानों के मामले को लेकर आदित्य बिड़ला समूह की कंपनी के दफ्तर पर सीबीआई ने छापा
मारा था.
इस छापे में 25 करोड़ रुपए की नकदी के अलावा बिड़ला ग्रुप के सीईओ के
कंप्यूटर में दर्ज कुछ जानकारियाँ भी सीबीआई के हाथ लगीं. कुछ दस्तावेजों से
अनुमान लगाया गया कि किसी पर्यावरण परियोजना को लेकर रकम दी गई. वह मामला यूपीए
सरकार के खिलाफ जाता है.
इन्हीं जानकारियों में एक जानकारी यह थी, ‘गुजरात सीएम- रु 25 करोड़. 12 पेड़.13?’
सीबीआई ने इन कागजात के आधार पर किसी के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं कराई, बल्कि इन
दस्तावेजों को आयकर विभाग को सौंप दिया.
आयकर विभाग ने इसपर विस्तार से जाँच की.
उन दिनों यूपीए की केंद्र सरकार थी. आयकर विभाग ने कंपनी के सीईओ से पूछताछ की.
उनका कहना था कि हाँ मैंने यह लिखा था, पर यहाँ गुजरात सीएम का मतलब था-गुजरात
एल्कली एंड केमिकल्स. बहरहाल आयकर विभाग ने निष्कर्ष निकाला कि सीईओ झूठ बोल रहे
हैं.
दूसरा मामला है सहारा दस्तावेजों का. सहारा के नोएडा
दफ्तर पर छापा 22 नवंबर 2014 को पड़ा. इसमें 137 करोड़ रुपए की नकदी पकड़ी गई. साथ
में बड़ी तादाद में कागजात मिले, जिनसे जाहिर होता था कि अनेक वरिष्ठ राजनेताओं को
पैसा देने की पेशकश की गई थी या दिया गया था.
एक दस्तावेज में सहारा समूह को मिले
धन और अलग-अलग तारीखों में अलग-अलग लोगों को दी गई रकम का विवरण था. इनमें कुछ
मुख्यमंत्रियों को पैसा देने की बात थी, जिनमें से एक कांग्रेस से भी संबंधित हैं.
यह पैसा 2013 और मार्च 2014 के बीच दिया गया.
प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में इन दस्तावेजों के
आधार पर याचिका दायर की है. उनका कहना है कि ऐसे मामलों की जाँच सरकार के अधीन
रहने वाली एजेंसियाँ करेंगी तो उनसे कुछ उम्मीद नहीं की जा सकती है.
वे इसके लिए
एसआईटी बनाने की माँग कर रहे हैं. सहारा दस्तावेजों से यह पता नहीं लगता कि यह
धनराशि किस काम के लिए दी गई है. यह किसी किस्म का राजनीतिक चंदा है या कुछ और? अलबत्ता जिन दस्तावेजों का उल्लेख हो रहा है उनमें
कांग्रेस के कुछ नेताओं के नाम भी हैं.
इन दस्तावेजों के सहारे कॉरपोरेट सेक्टर और राजनीति के रिश्तों के एक अँधेरे
कोने पर रोशनी पड़ने की संभावना जरूर पैदा हुई है. इसकी कालिमा से कांग्रेस पहले
से पुती पड़ी है.
सीबीआई और आयकर विभाग के भंडारों में तमाम किस्म के कागजात पड़े
हैं. पर राहुल गांधी ने ऐसे कागजात के आधार पर आरोप लगाया है, जिनकी वैधानिकता को
लेकर अदालत आश्वस्त नहीं है.
सवाल है कि इन आरोपों को लगाकर क्या राहुल गांधी
अगस्ता-वेस्टलैंड मामले के कागजों को भी वैधानिकता प्रदान नहीं कर रहे हैं?
यह
मामला हमारे पूरे सिस्टम से जुड़ने जा रहा है. सहारा-बिड़ला दस्तावेजों के मामले से जुड़ी सुनवाई से वरिष्ठ न्यायाधीश जेएस खेहर ने खुद को अलग कर
लिया है, क्योंकि प्रशांत भूषण ने अदालत की कार्यप्रणाली को लेकर कुछ सवाल किए थे.
No comments:
Post a Comment