Friday, July 3, 2015

‘व्यापम’ यानी भ्रष्टाचार का नंगा नाच

जिस तरह सन 2010 में टू-जी मामले ने यूपीए सरकार की अलोकप्रियता की बुनियाद डाली थी, लगभग उसी तरह मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला भारतीय जनता पार्टी के गले की हड्डी बनेगा. लगता यह है कि अगले कुछ दिनों में शिवराज सिंह चौहान सरकार के लिए यह खतरे का संदेश लेकर आ रहा है. इसमें व्यक्तिगत रूप से वे भी घिरे हैं. और अब जितना इस मामले को दबाने की कोशिश होगी, उतना ही यह उभर कर आएगा. कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों इसे राजनीतिक समस्या मानकर चल रहे हैं, जबकि यह केस देश की सड़ती प्रशासनिक व्यवस्था और भ्रष्ट राजनीति की पोल खोल रहा है. हैरत है कि हमारा हाहाकारी मीडिया अभी तक इस हल्के ढंग से ले रहा है. यह मामला दूसरी बार सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर आया है और लगता है कि यहाँ से यह निर्णायक मोड़ लेगा.


इस मामले में अब तक तकरीबन दो हजार गिरफ्तारियाँ हो चुकी हैं. गिरफ्तार लोगों में पूर्व मंत्री, सरकारी अफसर, अभिभावक और छात्र शामिल हैं. सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि मामले से जुड़े आरोपियों, गवाहों और ह्विसिल ब्लोवरों की मौत हो रही हैं. मरने वालों की संख्या 25 से 43 के बीच बताई जा रही है. कुछ का अनुमान है कि डेढ़ सौ से ज्यादा ऐसे लोग मर चुके हैं. लगातार होती मौतों का इशारा क्या है? इस मामले को दबाने की कोशिश कौन कर रहा है? यदि राजनीतिक दबाव नहीं है तो है क्या? मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर दबाव बनाते हुए कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है कि उसकी निगरानी में मामले की सीबीआई से जांच की जाए.

दिग्विजय सिंह की दिलचस्पी राजनीति में है, पर जनता की दिलचस्पी खुले भ्रष्टाचार का भांडा फोड़ने में है.
बेशक घोटाले की आँच भाजपा सरकार पर आएगी, पर इसमें कांग्रेस से जुड़े लोग भी शामिल हैं. व्यापम घोटाले ने शिक्षा, खासकर व्यावसायिक शिक्षा और प्रतियोगिता परीक्षाओं में गहरे तक बैठी बेईमानी का पर्दाफाश किया है. यह राष्ट्रीय प्रतिभा के साथ विश्वासघात है और खुल्लम-खुल्ला अंधेर है. ऐसे मामले केवल मध्य प्रदेश तक सीमित भी नहीं हैं. सत्ताधारियों का यह देश-व्यापी अंधेर है और इसका जल्द से जल्द निपटारा होना चाहिए. साफ बात है कि घोटाले प्रादेशिक पुलिस का विशेष दल इसकी व्यापकता को देखते हुए जाँच नहीं कर पाएगा. इस मामले में पुलिस, सिविल सेवा एवं न्यायपालिका के बड़े अधिकारियों और राजनेताओं का हाथ दिखाई पड़ रहा है, जो व्यवस्था के पेचों का फायदा उठाकर मामले को टालते चले जा रहे हैं.


जिस व्यवस्था पर आरोप है, उसके अधीन इस मामले की जाँच कैसे होगी? इसके लिए स्वतंत्र जाँच एजेंसी होनी चाहिए, जो हर तरह के सरकारी दबाव से मुक्त हो. यह मामला अंततः अन्ना आंदोलन की इस माँग को सही साबित करेगा कि जाँच एजेंसियों को सरकारी दबाव के बाहर होना चाहिए. इसके साथ ही देश में गवाहों और ह्विसिल ब्लोवरों की सुरक्षा को लेकर भी कड़े कदम उठाने की जरूरत भी रेखांकित होगी. एक ओर हम सत्येन्द्र दुबे, एस मंजुनाथ और यशवंत सोनावणे जैसे लोगों की हत्याओं की खबरें सुनते हैं तो दूसरी ओर ऐसे मामलों में गवाहों के संरक्षण की व्यवस्था तक नहीं है. हाल में आसाराम बापू के प्रकरण में भी गवाहों की मौत से ऐसे ही सवाल खड़े हुए हैं. देशभर में हीरे, कोयले, पत्थर, रेत और तमाम तरह की प्राकृतिक सम्पदा से जुड़ी खानों का कारोबार जिस तरह माफियाओं के हाथों में है. जिस देश में शिक्षा का कारोबार अपराधियों के हाथ में चला जाए उस देश के भविष्य की कल्पना की जा सकती है. इन अपराधियों के हाथ इतने लम्बे हैं कि पूरी राज-व्यवस्था उनके सामने नत-मस्तक है.

व्यावसायिक परीक्षा मंडल, मध्य प्रदेश यानी ‘व्यापम’ मेडिकल, इंजीनियरिंग, पुलिस, नापतोल इंस्पेक्टर आदि इत्यादि की प्रवेश परीक्षाएं लेता है. उसके बाद उनकी भरती होती है. यह व्यवस्था इसीलिए बनाई गई है ताकि सरकारी विभाग अनियमितता न बरतें और भर्ती की एक अलग व्यवस्था हो. पर इस व्यवस्था में ही छेद हैं. सन 2006 से इस संस्था के मार्फत होने वाली भर्तियों और प्रवेश परीक्षाओं को लेकर शिकायतें आ रहीं थीं. सन 2013 में एक मामला सामने आने के बाद जब प्याज की जैसी परतें खुलीं तब पता लगा कि काबिल छात्रों का गला दबाकर नाकाबिलों को भर्ती कराने का काम इतने बड़े स्तर पर है कि उसका ओर-छोर दिखाई नहीं पड़ता. पूरी व्यवस्था में नाकाबिल लोग पीछे के रास्ते प्रवेश कर चुके हैं. भविष्य की व्यवस्था कैसी होगी, आप इसका अनुमान लगा सकते हैं. पर केवल यही मामला नहीं है और न मध्य प्रदेश अकेला ऐसा राज्य है जहाँ ऐसा होता रहा होगा.

सन 2008 से 2013 के बीच प्रवेश परीक्षा में चुने जाने के बाद भर्ती हुए 2200 डॉक्टर, छात्र और दूसरे लोग संदेह के घेरे में हैं. करीब 3000 लोग आरोपी हैं. इनमें मुन्नाभाई टाइप छात्र, उनकी जगह परीक्षा देने वाले, मां-बाप, राजनेता, बिजनेसमैन और दलाल शामिल हैं. करीब 1800 के आसपास गिरफ्तारियाँ हुईं हैं. करीब 500-600 लोग फ़रार बताए जाते हैं. यह सिर्फ मेडिकल परीक्षा का मामला है. इंजीनियरी की प्रवेश परीक्षाओं के मामले तो खुलने बाकी हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विधानसभा में स्वीकार कर चुके हैं कि एक हजार अवैध भर्तियां हुईं हैं. जिन लोगों पर आरोप हैं, उनमें कई मंत्री, आईपीएस अधिकारी, राज्य पुलिस के अधिकारी, जज और हर रंगत के राजनेता और उनके रिश्तेदार हैं. पूरी व्यवस्था पर काबिज़ लोग मिलकर मलाई काट रहे थे. नाकाबिल छात्रों की जगह कोई और परीक्षा दे रहा था, परीक्षा कक्ष में खुलकर नकल कराई जा रही थी, पूरी कॉपी तक बाद में बदली जा रही थी. कहा जाता है कि 25 लाख से एक करोड़ रुपए के बीच एमबीबीएस की सीट बिक रही थी.

यह तस्वीर का एक पहलू है. दूसरा पहलू और ज्यादा भयावह है. यह है अपराध को छिपाने की कोशिश. इसके तहत अभियुक्तों, गवाहों और ह्विसिल ब्लोवरों की मौत. मामले की जाँच कर रही स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने अदालत में माना है कि 23 आरोपियों की मौत हुई है. पिछले हफ्ते हुई दो और मौतों को जोड़ दें तो यह संख्या 25 हो गई. पर गैर-सरकारी स्रोत कहते हैं कि ज्ञात मौतों 43 हैं. जो जिन्दा बचे हैं, वे लगातार दहशत में हैं किसके साथ कब, क्या हो जाए.

यह मामला केवल व्यावसायिक शिक्षा संस्थानों में भरती तक ही सीमित नहीं है, बल्कि राज्य सरकार की तकरीबन डेढ़ लाख नियुक्तियों से जुड़ा है, जिसके लिए एक करोड़ से ज्यादा लोगों ने अर्जी दी थी. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला 130 अध्यापकों की नियुक्ति में हुई गड़बड़ियों की वजह से जेल में हैं. यह मामला उससे कहीं बड़ा है. यदि हम अपराधियों को सज़ा नहीं दे पाए तो जनता के इस अंदेशे को बल मिलेगा कि ‘ऊपर बैठे सब लोग चोर हैं.’





1 comment:

  1. भ्रस्टाचार के हमाम में सब नंगे हैं , भा ज पा भी अलग नहीं है , यह भी वे सब तिकड़म अपना रही है जो कांग्रेस अपनाती रही है , जरुरत केवल अवसर की है , जिसको मिल गया वह ही इस गंगा में नहा लेता है ,यहाँ तक कि ' आप ' जैसी भी नहीं चूकती , एक ही सोच है न जाने फिर यह मौका मिले न मिले , और मिले तो कब मिले

    ReplyDelete