Tuesday, May 17, 2011

टॉप गोज़ टु बॉटम

अखबार के मास्टहैड का इस्तेमाल अब इतने तरीकों से होने लगा है कि कुछ लोगों के लिए यह दिलचस्पी का विषय नहीं रह गया है। फिर भी 14 मई के टेलीग्राफ के पहले सफे ने ध्यान खींचा है। इसमें मास्टहैड अखबार की छत से उतर कर फर्श पर चला गया है।

अखबार के ब्रैंड बनने पर तमाम बातें हैं। पत्रकारों और सम्पादकों, खबरों और विश्लेषणों से ज्यादा महत्वपूर्ण है ब्रैंड। बाकी उत्पादों की बात करें तो ब्रैंड माने प्रोडक्ट की गुणवत्ता की मोहर। अखबार इस माने में हमेशा ब्रैंड थे। उन्हें पढ़ा ही इसीलिए जाता था कि उनकी पहचान थी। लेफ्ट या राइट। कंज़र्वेटिव या लिबरल। कांग्रेसी या संघी। दृष्टिकोण या पॉइंट ऑफ व्यू, खबरों को पेश करने का सलीका, तरीका वगैरह-वगैरह। एक हिसाब से देखें तो अखबारों ने ही सारी दुनिया को ब्रैंड का महत्व समझाया। दुनिया भर की खबरों को एक पर्चे पर छाप दो तो वह अखबार नहीं बनता। सिर्फ मास्टहैड लगा देने से वह अखबार बन जाता है। और इस तरह वह सिर्फ मालिक की ही नहीं पाठक की धरोहर भी होती है। बहरहाल...

हाल में बड़ी संख्या में अखबारों ने अपने मास्टहैड के साथ खेला है। हिन्दी में नवभारत टाइम्स तो लाल रंग में अंग्रेजी के तीन अक्षरों के आधार पर खुद को यंग इंडिया का अखबार घोषित कर चुका है। ऐसे में टेलीग्राफ ने अपने मास्टहैड के मार्फत नई सरकार का स्वागत किया है। अच्छा-बुरा उसके पाठक जानें, पर बाकी अखबार दफ्तरों में कुलबुलाहट ज़रूर होगी कि इसने तो मार लिया मैदान, अब इससे बेहतर क्या करें गुरू।

क्या कोई बता सकता है कि इसका मतलब कुछ अलग सा करने के अलावा और क्या हो सकता है?

3 comments:

  1. akhbaar bhi rajneeti ka sikaar ho ge hai

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  2. यह सिर्फ़ ध्यान आकर्षित करने का एक प्रयास है प्रमोद जी ! असल में मास्ट हेड के साथ दायें, बाएं और बीच के प्रयोग तो हो ही चुके थे सिर्फ़ नीचे लगाने की ही गुन्जाईश बची थी, सो टेलीग्राफ ने यही कर लिया. सड़क पर बहुत से लोग विचित्र हुलिया बना कर भीड़ से अलग दिखने की भौंडी कोशिशें करते ही रहते हैं. देश में अभी भी ऐसे विश्वसनीय अख़बार हैं जिनका न सिर्फ़ मास्ट हेड बिल्कुल सादा है बल्कि समूचा अख़बार भी सादा और सस्ता दिखता है, लेकिन उनकी सामाग्री वज़नदार और भरोसे की है! ऐसे अख़बारों को कभी कुछ भी उलटफेर करने की ज़रूरत ही नही पड़ती.

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  3. सारे कार्टून चरित्र प्रकृति के बंधे-बंधाए नियमों को तोड़ते हैं और बच्चों का खूब ध्यान आकर्षित करते हैं। ध्यान खींचने के लिए ही नियम तोड़े जाते हैं, बच्चे भी ऐसा करते हैं, मगर कई बार इस चक्कर में पिट भी जाते हैं।

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