रतन टाटा के करीबी सूत्रों के अनुसार सम्भवतः वे इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाएंगे। रतन टाटा देश के सम्मानित उद्योगपति हैं और उनके संस्थान की देश की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका है। वे चाहते हैं कि यह देश बनाना रिपब्लिक न बनने पाए। यानी यहाँ ताकतवर लोग जो मन में आए वह न करा पाएं। वास्तव में एक सभ्हय और सुसंस्कृत देश के रूप में हमारी साख का सवाल है।
मेरे विचार से अदालत के सामने जब यह मामला जाएगा, तब अनेक मामले अपने-आप आ जाएंगे। टाटा ने सवाल उठाया है कि जो टैपिंग जाँच के लिए हुई थी, वह सार्वजनिक रूप से जारी क्यों हो गई। इसका मतलब यह है कि कुछ दूसरे लोग भी इससे जुड़े हैं। उनका उद्देश्य जन-हित नहीं है। किसी का हित है। हालांकि अक्सर लोकतंत्र में बातें इसी तरह सामने आती हैं, पर यह पता लगाना भी हमारा ही काम है कि कोई क्यों लीक करा रहा है।
पत्रकार के रूप में मेरे मन में अनेक सवाल हैं। उन्हें मैं नीचे लिख रहा हूँ। इस चर्चा को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है, क्योंकि यहीं से हमारे सवालों के जवाब मिलेंगे।
1. राजनेताओं, सरकारी अधिकारियों और उद्योगपतियों से संवाद किए बगैर पत्रकार काम नहीं कर सकते। पर इस संवाद या सम्पर्क की मर्यादा रेखा कैसे तय होगी। पत्रकार किसके हित में काम करेगा, यह कैसे तय होता है।
2. जिन पत्रकारों की बातचीत के टेप हमने सुने क्या उनके लेखन और प्रसारण में हमने कभी पीआर एजेंसियों के कर्ता-धर्ताओं के बारे में भी कुछ पढ़ा या सुना है। आखिरकार ये लोग उनसे बात इसीलिए करते थे ताकि कुछ जन-हित में जानकारी उनसे मिले।
3. इन टेपों के सम्पादित अंश हमने पढ़े। इनके अलावा इन टेपों में और क्या है।
4. टेलीफोन टैपिंग यों तो अनैतिक है, पर सार्वजनिक हित में उसकी अनुमति है। जिस टैपिंग के विवरण हम पढ़ रहे हैं, क्या अब उसके विवरण सार्वजनिक करने की माँग की जा सकती है।
5. हाल में टेलीफोन सेवाओं का निजीकरण हुआ है। अब टैपिंग का हथियार निजी क्षेत्र के पास भी है। इसके दुरुपयोग को रोकने की क्या व्यवस्था है। क्या जनता को उस व्यवस्था की जानकारी है।
6. भंडाफोड़ू पत्रकार क्या किसी जानकारी को हासिल करने के बाद आगा-पीछा सोचते है। क्या किसी भी सूचना को सार्वजनिक करना ठीक है। खासतौर से सूचना अब खरीदने और बेचने का माल या जिंस बन गई है तो उसके दुरुपयोग के बारे में कौन सोचेगा।
नीचे मैं कुछ लिंक दे रहा हूँ। इसमें लेख हैं। हूट पर चल रही बहस पढ़ने लायक है। सम्बद्ध पत्रकारों का पक्ष है। साथ ही बरखा दत्त के कुछ कार्यक्रमों के लिंक हैं। आप इन्हें देखें और विचार-विमर्श करें।
- हिन्दू में लेख
- वीर सांघवी की वैबसाइट
- मीडिया साइट द हूट
- IBN Live : Karan Thapar Show
- Ratan Tata: Leaked tapes a smokescreen for real 2G scam- November 26, 2010
- Is it legitimate to hold up Parliament over 2G scam? - | November 23, 2010
- Congress’ CVC conundrum, BJP’s Karnataka compulsion - | November 22, 2010
- Centre cannot act on CAG report alone, says Kapil Sibal - | November 19, 2010
- 2G scam: Is PM’s silence in Parliament counter-productive?- | November 18, 2010
- Does the 2G scam go well beyond Raja? - | November 16, 2010
- CAG report: Is telecom giant Telenor alarmed? - | November 16, 2010
- Does India live in a Scam Raj? - | November 15, 2010
- Is corruption in our roots? - | November 14, 2010
- Raja and the Congress crown of thorns- | May 4, 2010
- The phone-tapping debate in Lok Sabha- | April 29, 2010
- Is phone tapping India’s worst kept secret? | April 26, 2010
- Can Congress dump Raja? - | October 26, 2009
- Sunil Mittal ‘s call for transparency - | October 14, 2009
- Team Manmohan gets to work - | May 28, 2009
- Scindia: ‘It is a very important assignment’- | May 28, 2009
- Team Manmohan: Suspense over - | May 27, 2009
- Portfolios distributed: Team Manmohan ready- | May 27, 2009
- Clear mandate, unclear portfolios - | May 26, 2009
- Does the new Cabinet offer hope?- | May 23, 2009
- Battle for portfolis: Cong-DMK talks fail-| May 21, 2009
- New Team Manmohan: Who’ll be in? -| May 20, 2009
- Allies Vs Congress: Jostling begins -| May 20, 2009
- Mamata’s Left hook - | May 20, 2009
- The Cabinet Buzz - | May 19, 2009
- Barkha Dutt on the political developments of cabinet formation - | May 26, 2009
- Barkha Dutt on the political developments of cabinet formation - | May 21, 2009
- Barkha Dutt on the political developments of cabinet formation - | May 21, 2009
रतन टाटा के करीबी सूत्रों के अनुसार सम्भवतः वे इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाएंगे। रतन टाटा देश के सम्मानित उद्योगपति हैं और उनके संस्थान की देश की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका है। वे चाहते हैं कि यह देश बनाना रिपब्लिक न बनने पाए। यानी यहाँ ताकतवर लोग जो मन में आए वह न करा पाएं। वास्तव में एक सभ्हय और सुसंस्कृत देश के रूप में हमारी साख का सवाल है।
मेरे विचार से अदालत के सामने जब यह मामला जाएगा, तब अनेक मामले अपने-आप आ जाएंगे। टाटा ने सवाल उठाया है कि जो टैपिंग जाँच के लिए हुई थी, वह सार्वजनिक रूप से जारी क्यों हो गई। इसका मतलब यह है कि कुछ दूसरे लोग भी इससे जुड़े हैं। उनका उद्देश्य जन-हित नहीं है। किसी का हित है। हालांकि अक्सर लोकतंत्र में बातें इसी तरह सामने आती हैं, पर यह पता लगाना भी हमारा ही काम है कि कोई क्यों लीक करा रहा है।
पत्रकार के रूप में मेरे मन में अनेक सवाल हैं। उन्हें मैं नीचे लिख रहा हूँ। इस चर्चा को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है, क्योंकि यहीं से हमारे सवालों के जवाब मिलेंगे।
1. राजनेताओं, सरकारी अधिकारियों और उद्योगपतियों से संवाद किए बगैर पत्रकार काम नहीं कर सकते। पर इस संवाद या सम्पर्क की मर्यादा रेखा कैसे तय होगी। पत्रकार किसके हित में काम करेगा, यह कैसे तय होता है।
2. जिन पत्रकारों की बातचीत के टेप हमने सुने क्या उनके लेखन और प्रसारण में हमने कभी पीआर एजेंसियों के कर्ता-धर्ताओं के बारे में भी कुछ पढ़ा या सुना है। आखिरकार ये लोग उनसे बात इसीलिए करते थे ताकि कुछ जन-हित में जानकारी उनसे मिले।
3. इन टेपों के सम्पादित अंश हमने पढ़े। इनके अलावा इन टेपों में और क्या है।
4. टेलीफोन टैपिंग यों तो अनैतिक है, पर सार्वजनिक हित में उसकी अनुमति है। जिस टैपिंग के विवरण हम पढ़ रहे हैं, क्या अब उसके विवरण सार्वजनिक करने की माँग की जा सकती है।
5. हाल में टेलीफोन सेवाओं का निजीकरण हुआ है। अब टैपिंग का हथियार निजी क्षेत्र के पास भी है। इसके दुरुपयोग को रोकने की क्या व्यवस्था है। क्या जनता को उस व्यवस्था की जानकारी है।
6. भंडाफोड़ू पत्रकार क्या किसी जानकारी को हासिल करने के बाद आगा-पीछा सोचते है। क्या किसी भी सूचना को सार्वजनिक करना ठीक है। खासतौर से सूचना अब खरीदने और बेचने का माल या जिंस बन गई है तो उसके दुरुपयोग के बारे में कौन सोचेगा।
नीचे मैं कुछ लिंक दे रहा हूँ। इसमें लेख हैं। हूट पर चल रही बहस पढ़ने लायक है। सम्बद्ध पत्रकारों का पक्ष है। साथ ही बरखा दत्त के कुछ कार्यक्रमों के लिंक हैं। आप इन्हें देखें और विचार-विमर्श करें।
मेरे विचार से अदालत के सामने जब यह मामला जाएगा, तब अनेक मामले अपने-आप आ जाएंगे। टाटा ने सवाल उठाया है कि जो टैपिंग जाँच के लिए हुई थी, वह सार्वजनिक रूप से जारी क्यों हो गई। इसका मतलब यह है कि कुछ दूसरे लोग भी इससे जुड़े हैं। उनका उद्देश्य जन-हित नहीं है। किसी का हित है। हालांकि अक्सर लोकतंत्र में बातें इसी तरह सामने आती हैं, पर यह पता लगाना भी हमारा ही काम है कि कोई क्यों लीक करा रहा है।
पत्रकार के रूप में मेरे मन में अनेक सवाल हैं। उन्हें मैं नीचे लिख रहा हूँ। इस चर्चा को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है, क्योंकि यहीं से हमारे सवालों के जवाब मिलेंगे।
1. राजनेताओं, सरकारी अधिकारियों और उद्योगपतियों से संवाद किए बगैर पत्रकार काम नहीं कर सकते। पर इस संवाद या सम्पर्क की मर्यादा रेखा कैसे तय होगी। पत्रकार किसके हित में काम करेगा, यह कैसे तय होता है।
2. जिन पत्रकारों की बातचीत के टेप हमने सुने क्या उनके लेखन और प्रसारण में हमने कभी पीआर एजेंसियों के कर्ता-धर्ताओं के बारे में भी कुछ पढ़ा या सुना है। आखिरकार ये लोग उनसे बात इसीलिए करते थे ताकि कुछ जन-हित में जानकारी उनसे मिले।
3. इन टेपों के सम्पादित अंश हमने पढ़े। इनके अलावा इन टेपों में और क्या है।
4. टेलीफोन टैपिंग यों तो अनैतिक है, पर सार्वजनिक हित में उसकी अनुमति है। जिस टैपिंग के विवरण हम पढ़ रहे हैं, क्या अब उसके विवरण सार्वजनिक करने की माँग की जा सकती है।
5. हाल में टेलीफोन सेवाओं का निजीकरण हुआ है। अब टैपिंग का हथियार निजी क्षेत्र के पास भी है। इसके दुरुपयोग को रोकने की क्या व्यवस्था है। क्या जनता को उस व्यवस्था की जानकारी है।
6. भंडाफोड़ू पत्रकार क्या किसी जानकारी को हासिल करने के बाद आगा-पीछा सोचते है। क्या किसी भी सूचना को सार्वजनिक करना ठीक है। खासतौर से सूचना अब खरीदने और बेचने का माल या जिंस बन गई है तो उसके दुरुपयोग के बारे में कौन सोचेगा।
नीचे मैं कुछ लिंक दे रहा हूँ। इसमें लेख हैं। हूट पर चल रही बहस पढ़ने लायक है। सम्बद्ध पत्रकारों का पक्ष है। साथ ही बरखा दत्त के कुछ कार्यक्रमों के लिंक हैं। आप इन्हें देखें और विचार-विमर्श करें।
- हिन्दू में लेख
- वीर सांघवी की वैबसाइट
- मीडिया साइट द हूट
- IBN Live : Karan Thapar Show
- Ratan Tata: Leaked tapes a smokescreen for real 2G scam- November 26, 2010
- Is it legitimate to hold up Parliament over 2G scam? - | November 23, 2010
- Congress’ CVC conundrum, BJP’s Karnataka compulsion - | November 22, 2010
- Centre cannot act on CAG report alone, says Kapil Sibal - | November 19, 2010
- 2G scam: Is PM’s silence in Parliament counter-productive?- | November 18, 2010
- Does the 2G scam go well beyond Raja? - | November 16, 2010
- CAG report: Is telecom giant Telenor alarmed? - | November 16, 2010
- Does India live in a Scam Raj? - | November 15, 2010
- Is corruption in our roots? - | November 14, 2010
- Raja and the Congress crown of thorns- | May 4, 2010
- The phone-tapping debate in Lok Sabha- | April 29, 2010
- Is phone tapping India’s worst kept secret? | April 26, 2010
- Can Congress dump Raja? - | October 26, 2009
- Sunil Mittal ‘s call for transparency - | October 14, 2009
- Team Manmohan gets to work - | May 28, 2009
- Scindia: ‘It is a very important assignment’- | May 28, 2009
- Team Manmohan: Suspense over - | May 27, 2009
- Portfolios distributed: Team Manmohan ready- | May 27, 2009
- Clear mandate, unclear portfolios - | May 26, 2009
- Does the new Cabinet offer hope?- | May 23, 2009
- Battle for portfolis: Cong-DMK talks fail-| May 21, 2009
- New Team Manmohan: Who’ll be in? -| May 20, 2009
- Allies Vs Congress: Jostling begins -| May 20, 2009
- Mamata’s Left hook - | May 20, 2009
- The Cabinet Buzz - | May 19, 2009
- Barkha Dutt on the political developments of cabinet formation - | May 26, 2009
- Barkha Dutt on the political developments of cabinet formation - | May 21, 2009
- Barkha Dutt on the political developments of cabinet formation - | May 21, 2009
patrkaar jantaa hit me kaam karta hai... jo bhartiya sanvidhaan tay karta hai.
ReplyDeletetap prakaran se patrkaarita badnaam nahi hui hai... patrkarita bhala kaise badnaam ho sakati hai... sharmindagi bhare sawaal unse patrkaaron ya patrkarita sansthaano se puchhiye jisane ise har mod par becha hai... sawaal sirf Veer sanghavi, Barkha Dutt ya kisi neera radia ka nahi hai...... desh bhar me kukurmutte ki tarah faile patrkaaron se poochhiye har koi satta ya naukarsaahon ka dalaali kar raha hai...
telecommunication companies ka failaav abhi bahot hona hai... aur ye tabhi sambhav hai jab unhe nijikaran ka adhikaar diya jayega... zaroorat hai sarkaar ki transparent action ki.. public kal bhi dhagi ja rahi thi.. aage bhi dhagi jayegi...
aur ratan tata kya jaanch karayenge... agar tata ki chanch ho gayi to tata band ho jayegi... Neera radia ewm Pradeep Baizal ne milkar tata ko arabon rs ka faydaa pahunchaya hai....
main barkha ka paksh nahi le raha par shayad barkha galat nahi hai... main veer par bharosa nahi karta... kyunki unaki lekhani me maine kai aise mod dekhe hain janha wo janta ko apne tarike se samjhaane ki koshish karate hain.. patrkarita nahi...
ewm neera radia jaise dalaalo ko jo sarkaari tantra ko apani manmarzi se galat prayog kar rahi hai.. ko kanoon sazaa dilaane ki bahas honi chahiye...
Andher nagari chaupat raaja, take sher khaza.. take sher baaja.. wali kahani na hone paaye.. patrkarita ke mazboot stambh hone ke karan aapse anurodh hai.. 2G spectrum mamlaa bhatak raha hai... ise bhatakane se rokiye...
प्रमोद जोशी जी रतन टाटा जैसे लोगों को इस देश के विकाश से नहीं बल्कि इस देश और समाज से इंसानियत को ख़त्म करने वाले अपराधी के रूप में देखा जाना चाहिए.........इन लोगों ने इस देश के मंत्रियों जनप्रतिनिधियों को भ्रष्टाचार सिखाया और उन्हें अपने पैसों के बदौलत नचाकर इस देश को लूटा है ....अब समय आ गया है की इन उद्योगपतियों के कुकर्मों को जगजाहिर किया जाय और इनकी साडी संपत्ति को राष्ट्रिय संपत्ति घोषित कर इनको इससे बेदखल किया जाय .....इन्होने संपत्ति कुकर्म,तिकरम और इस देश और समाज का खून चूसकर बनाया है.......इन सभी उद्योगपतियों का ब्रेनमेपिंग और लाईडिटेक्टर टेस्ट होना चाहिए तथा दोषी साबित होने पर इनको जेल में भी सडाना चाहिए.....
ReplyDeleteरतन टाटा के बारे में आपकी यह राय बनने के पीछे के कारण क्या आप बता सकते हैं? आप यह भी सोचें कि देश की अर्थव्यवस्था का नक्शा कैसा होना चाहिए। आपकी राय महत्वपूर्ण है, पर प्रत्येक शब्द के पीछे उसके कारण भी होने चाहिए। क्या हम कारोबार विहीन समाज की कल्पना कर रहे हैं? उस समाज की सारी व्यवस्थाएं किस तरह की होंगी?
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