लोकसभा चुनावों के परिणामों पर भारतीय-विशेषज्ञों की तरह विदेशियों की निगाहें भी लगी हुई हैं. वे समझना चाहते हैं कि देश में गठबंधन-सरकार बनने से क्या फर्क पड़ेगा. इससे क्या विदेश-नीति पर कोई असर पड़ेगा? क्या देश के आर्थिक-सुधार कार्यक्रमों में रुकावट आएगी? पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा वगैरह.
न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है, नरेंद्र मोदी के सत्ता के
बीते 10 सालों में कई पल हैरत से भरे थे लेकिन जो हैरत
मंगलवार की सुबह मिली वो बीते 10 सालों से बिल्कुल अलग थी क्योंकि
नरेंद्र मोदी को तीसरा टर्म तो मिल गया, लेकिन उनकी
पार्टी बहुमत नहीं ला पाई. इसके साथ ही 2014 के
बाद पहली बार नरेंद्र मोदी की वह छवि मिट गई कि 'वे
अजेय' हैं.
वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा है, भारत के मतदाताओं ने
नरेंद्र मोदी की लीडरशिप पर अप्रत्याशित अस्वीकृति दिखाई है. दशकों के सबसे मज़बूत
नेता के रूप में पेश किए जा रहे मोदी की छवि को इस जनादेश ने ध्वस्त कर दिया है. उनकी
अजेय छवि भी ख़त्म की है.
इस तरह की टिप्पणियों की इन अखबारों से उम्मीद भी थी, क्योंकि पिछले दस साल से ये मोदी सरकार के सबसे बड़े आलोचकों में शामिल रहे हैं. पर महत्वपूर्ण सवाल दूसरे हैं. सवाल यह है कि चुनाव के बाद हुए राजनीतिक-बदलाव का भविष्य पर असर कैसा होगा. सरकार को किसी नई नीति पर चलने या बनाने की जरूरत नहीं है, पर क्या वह आसानी से फैसले कर पाएगी?