Friday, June 7, 2024

मोदी 3.0 की विदेश और रक्षा-नीति पर वैश्विक-दृष्टि

 


लोकसभा चुनावों के परिणामों पर भारतीय-विशेषज्ञों की तरह विदेशियों की निगाहें भी लगी हुई हैं. वे समझना चाहते हैं कि देश में गठबंधन-सरकार बनने से क्या फर्क पड़ेगा. इससे क्या विदेश-नीति पर कोई असर पड़ेगा? क्या देश के आर्थिक-सुधार कार्यक्रमों में रुकावट आएगी? पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा वगैरह.

न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है, नरेंद्र मोदी के सत्ता के बीते 10 सालों में कई पल हैरत से भरे थे लेकिन जो हैरत मंगलवार की सुबह मिली वो बीते 10 सालों से बिल्कुल अलग थी क्योंकि नरेंद्र मोदी को तीसरा टर्म तो मिल गया, लेकिन उनकी पार्टी बहुमत नहीं ला पाई. इसके साथ ही 2014 के बाद पहली बार नरेंद्र मोदी की वह छवि मिट गई कि 'वे अजेय' हैं.

वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा है, भारत के मतदाताओं ने नरेंद्र मोदी की लीडरशिप पर अप्रत्याशित अस्वीकृति दिखाई है. दशकों के सबसे मज़बूत नेता के रूप में पेश किए जा रहे मोदी की छवि को इस जनादेश ने ध्वस्त कर दिया है. उनकी अजेय छवि भी ख़त्म की है.

इस तरह की टिप्पणियों की इन अखबारों से उम्मीद भी थी, क्योंकि पिछले दस साल से ये मोदी सरकार के सबसे बड़े आलोचकों में शामिल रहे हैं. पर महत्वपूर्ण सवाल दूसरे हैं. सवाल यह है कि चुनाव के बाद हुए राजनीतिक-बदलाव का भविष्य पर असर कैसा होगा. सरकार को किसी नई नीति पर चलने या बनाने की जरूरत नहीं है, पर क्या वह आसानी से फैसले कर पाएगी

Thursday, June 6, 2024

बीजेपी के नाम ‘अमृतकाल’ पहला कटु-संदेश


भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एनडीए 400 पारनहीं कर पाई, यह उसकी विफलता है, पर व्यावहारिक सच यह भी है कि उसे सरकार बनाने लायक स्पष्ट बहुमत मिल गया है. जवाहर लाल नेहरू की तरह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार लगातार तीसरी बार बनेगी.  

दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन ने बीजेपी की अपराजेयता को एक झटके में ध्वस्त किया है. इससे पार्टी और उसके नेतृत्व का रसूख कम होगा. अमृतकाल का यह कड़वा अनुभव है. चुनाव-प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी की रैलियों और बयानों से यह संकेत मिल भी रहा था कि उन्हें नेपथ्य से आवाजें सुनाई पड़ रही हैं. 

पहली नज़र में जो भी परिणाम आए हैं, उनके अनुसार केंद्र में एनडीए की सरकार बन जाएगी, पर इस जीत में भी कई किस्म की हार छिपी है. दूसरी तरफ कांग्रेस के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन अपनी सफलता से खुश भले ही हो ले, पर इसमें उसकी  विफलता छिपी है. 295+ का उनका दावा भी सही साबित नहीं हुआ. और बीजेपी के पास अगले पाँच साल के लिए राजदंड आ गया है.

मतदाता का असमंजस

इस चुनाव में बीजेपी किसी सकारात्मक संदेश को जनता तक पहुँचाने में कामयाब नहीं हुई, पर इंडिया गठबंधन ने जिस नकारात्मक आधार पर चुनाव जीतने की रणनीति बनाई थी, वह भी कामयाब नहीं हुई. उनका अभियान नरेंद्र मोदी हटाओ तक ही सीमित था. उन्होंने खुद जीत हासिल नहीं कि, बस मोदी के नेतृत्व को नुकसान पहुँचाया है.  

खबरें हैं कि वे भी जुगाड़ लगा कर सरकार बनाने का प्रयास कर रहे हं, पर इससे उन्हें बदनामी ही मिलेगी. ये चुनाव-परिणाम मतदाता की उम्मीदों से ज्यादा उसके असमंजस को व्यक्त कर रहे हैं.

प्रकट होने लगे गठबंधन-राजनीति के शुरुआती लक्षण


नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं और उसके साथ ही गठबंधन की राजनीति के लक्षण भी प्रकट होने लगे हैं। चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार, चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और एकनाथ शिंदे ने सरकार को अपना समर्थन दे दिया है, साथ ही अपनी-अपनी माँगों की सूची भी आगे कर दी है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार ज्यादातर नेता कम से कम एक कैबिनेट मंत्री का पद और दूसरी चीजें माँग रहे हैं। चंद्रबाबू नायडू संभवतः लोकसभा अध्यक्ष का पद भी माँग रहे हैं। ऐसी बातों की पुष्टि नहीं हो पाती है, पर ये बातें सहज सी लगती हैं। बहरहाल अंततः समझौते होंगे, क्योंकि गठबंधनों में ऐसा होता ही है। बीजेपी लोकसभा अध्यक्ष पद अपने हाथ में ही रखना चाहेगी, क्योंकि इस व्यवस्था में अध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

दिल्ली में एनडीए और इंडिया की बैठकें हुई हैं। खबरें हैं कि कांग्रेस पार्टी किसी पर प्रधानमंत्री पद का चारा डाल रही है। बाहर से समर्थन देने के वायदे के साथ, पर ऐसी कौन सी मछली है, जो इस चारे पर मुँह मारेगी?  आप पूछ सकते हैं कि कांग्रेस के पास ही ऐसा कौन सा संख्या बल है, जो बाहर से समर्थन देकर किसी को प्रधानमंत्री बनवा देगा? और कांग्रेस ऐसी कौन सी परोपकारी पार्टी है, जो किसी को निस्वार्थ भाव से प्रधानमंत्री बना देगी? बेशक वजह तो देश बचाने की होगी, पर याद करें अतीत में कांग्रेस पार्टी के इस चारे के चक्कर में चौधरी चरण सिंह, एचडी देवेगौडा, इंद्र कुमार गुजराल और चंद्रशेखर जैसे राजनेता आ चुके हैं। उनकी तार्किक-परिणति क्या हुई, यह भी आपको पता है।  

गठबंधन राजनीति का टाइम शुरू होता है अब


नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं और उसके साथ ही गठबंधन की राजनीति के लक्षण भी प्रकट होने लगे हैं। चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार, चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और एकनाथ शिंदे ने सरकार को अपना समर्थन दे दिया है, साथ ही अपनी-अपनी माँगों की सूची भी आगे कर दी है। ज्यादातर कम से कम एक कैबिनेट मंत्री का पद और दूसरी चीजें माँग रहे हैं। चंद्रबाबू नायडू संभवतः लोकसभा अध्यक्ष का पद भी माँग रहे हैं। अंततः समझौते होंगे। बीजेपी लोकसभा अध्यक्ष पद अपने हाथ में ही रखना चाहेगी, क्योंकि इस व्यवस्था में अध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

दिल्ली में एनडीए और इंडिया की बैठकें हुई हैं। खबरें हैं कि कांग्रेस पार्टी किसी पर प्रधानमंत्री पद का चारा डाल रही है। बाहर से समर्थन देने के वायदे के साथ, पर ऐसी कौन सी मछली है, जो इस चारे पर मुँह मारेगी?  आप पूछ सकते हैं कि कांग्रेस के पास ही ऐसा कौन सा संख्या बल है, जो बाहर से समर्थन देकर किसी को प्रधानमंत्री बनवा देगा? और कांग्रेस ऐसी कौन सी परोपकारी पार्टी है, जो किसी को निस्वार्थ भाव से प्रधानमंत्री बना देगी? बेशक वजह तो देश बचाने की होगी, पर याद करें अतीत में कांग्रेस पार्टी के इस चारे के चक्कर में चौधरी चरण सिंह, एचडी देवेगौडा, इंद्र कुमार गुजराल और चंद्रशेखर जैसे राजनेता आ चुके हैं। उनकी तार्किक-परिणति क्या हुई, यह भी आपको पता है।  

Wednesday, June 5, 2024

हमारा लोकतंत्र और पश्चिमी-मनोकामनाएं

न्यूयॉर्क टाइम्स में भारत का मज़ाक उड़ाता कार्टून

यह आलेख 4 जून, 2024 को चुनाव-परिणाम आने के ठीक पहले प्रकाशित हुआ था।

लोकसभा चुनाव के परिणाम आज आने वाले हैं, पर उसके पहले एग्ज़िट पोल के परिणाम आ चुके हैं, जिन्हें लेकर देश के अलावा विदेश में भी प्रतिक्रिया हुई है. रायटर्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय एग्ज़िट-पोलों के परिणाम असमान (पैची) होते हैं.

भारतीय चुनाव के परिणामों को लेकर पश्चिमी देशों में खासी दिलचस्पी है. अमेरिका और यूरोप में भारतीय-लोकतंत्र को लेकर पहले से कड़वाहट है, पर पिछले दस साल में यह कड़वाहट बढ़ी है.

एग्ज़िट पोल से अनुमान लगता है कि देश में लगातार तीसरी बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने जा रही है. अंतिम परिणाम क्या होंगे, यह आज (4 जून को) स्पष्ट होगा, पर भारतीय लोकतंत्र को लेकर पश्चिमी देशों में जो सवाल खड़े किए जा रहे हैं, उनपर विचार करने का मौका आ रहा है.

पश्चिमी-चिंताएं 

2014 और 2019 में भी लोकसभा चुनावों के ठीक पहले पश्चिम के मुख्यधारा-मीडिया ने चिंता व्यक्त की थी. साफ है कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी नापसंद हैं, फिर भी उन्हें पसंद करना पड़ रहा है.

जैसे-जैसे भारत का वैश्विक-प्रभाव बढ़ेगा, पश्चिमी-प्रतिक्रिया भी बढ़ेगी. लोकतांत्रिक-रेटिंग करने वाली संस्थाएं भारत के रैंक को घटा रही हैं, विश्वविद्यालयों में भारतीय-लोकतंत्र को सेमिनार हो रहे हैं और भारतीय-मूल के अकादमीशियन चिंता-व्यक्त करते शोध-प्रबंध लिख रहे हैं.