Wednesday, February 21, 2024

मोदी-यात्रा और खाड़ी देशों में भारत की बढ़ती साख


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने भारत और पश्चिम एशिया के परंपरागत रिश्तों को न केवल बरकरार रखा, बल्कि और बेहतर बनाया. पश्चिम एशिया की उनकी ताज़ा यात्रा के ठीक पहले क़तर में भारत के आठ पूर्व नौसैनिक अधिकारियों की रिहाई से इस बात की पुष्टि हुई है कि इन देशों के साथ उनके मजबूत निजी रिश्ते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 फरवरी को अबूधाबी में बोचासनवासी श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बीएपीएस) के मंदिर का उद्घाटन किया. यह मंदिर दुनिया भर में इस संस्था के बनाए एक हज़ार मंदिरों और 3,850 केंद्रों में से एक है.

2015 के बाद से प्रधानमंत्री का यूएई का यह सातवाँ दौरा है. 2015 में भी करीब 34 साल के अंतराल के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की वह पहली यूएई यात्रा थी. मोदी से पहले इंदिरा गांधी 1981 में यूएई गई थीं. यूएई के अलावा भारत के सऊदी अरब, ओमान, क़तर, बहरीन और कुवैत के साथ भी रिश्ते मज़बूत हुए हैं.

Wednesday, February 14, 2024

पाकिस्तान का राजनीतिक-घटनाक्रम और भारत


पाकिस्तान में पिछले हफ्ते हुए चुनाव के बाद आए परिणामों ने किसी एक पार्टी की सरकार का रास्ता नहीं खोला है और घूम-फिरकर गठबंधन सरकार बन रही है, जो सेना के सहारे काम करेगी. इस चुनाव ने इस बात की ओर इशारा किया है कि भले ही इमरान खान को फौरी तौर पर हाशिए पर डाल दिया गया है, पर वे उन्हें हमेशा के लिए राजनीति से बाहर नहीं किया जा सकता. उनकी वापसी भी संभव है. 

बहरहाल अब राष्ट्रपति की जिम्मेदारी है कि मतदान के बाद 21 दिन के भीतर यानी 29 फरवरी तक वे क़ौमी असेंबली का इजलास बुलाएं. पहले भी तीन बार प्रधानमंत्री पद पर काम कर चुके नवाज़ शरीफ ने बजाय खुद प्रधानमंत्री बनने के अपने भाई शहबाज़ शरीफ का नाम इस पद के लिए आगे बढ़ाया है. शहबाज़ शरीफ अभी तक बहुत प्रभावशाली नहीं रहे हैं. नवाज़ शरीफ भी बने, तो वे उतने प्रभावशाली नहीं होंगे, जितने कभी होते थे.

नवाज़ शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नून) को चुनाव में वैसी सफलता नहीं मिली, जिसका दावा उनकी तरफ से किया गया था. अलबत्ता उनकी पार्टी संभवतः पंजाब में अपनी सरकार बना लेगी.

इस चुनाव को लेकर कई तरह की शिकायतें हैं. मतदान के दिन इंटरनेट पर रोक लगने से पूरी व्यवस्था ठप हो गई. उसके बाद सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्मों को ठप किए जाने की खबरें मिलीं. कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी और बैलट पेपरों के साथ गड़बड़ी की शिकायतें भी हैं.

Wednesday, February 7, 2024

इमरान को सज़ा और पाकिस्तान के खानापूरी चुनाव


मंगलवार 30 जनवरी को पाकिस्तान की एक विशेष अदालत ने साइफर मामले में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को दस साल जेल की सजा सुनाई. उसके अगले ही दिन एक और अदालत ने उन्हें और उनकी पत्नी बुशरा बीबी को तोशाखाना मामले में 14 साल कैद की सजा सुना दी.

इतना ही काफी नहीं था. शनिवार को एक अदालत ने इमरान और बुशरा बीबी की शादी को गैर इस्लामिक करार दिया. इमरान खान इसके पहले आरोप लगा चुके हैं देश की सेना ने मेरे पास संदेश भेजा था कि तीन साल के लिए राजनीति छोड़ दूँ, तो शादी बच जाएगी. इमरान और बुशरा बीबी को इस मामले में सात साल सजा सुनाई गई है.

इंतक़ाम की आग

इन सज़ाओं के पीछे प्रतिशोध की गंध आती है. साबित यह भी हो रहा है कि पाकिस्तान क एस्टेब्लिशमेंट (यानी सेना) बहुत ताकतवर है. सारी व्यवस्थाएं उसके अधीन हैं. इन बातों के राजनीतिक निहितार्थ अब इसी महीने की 8 तारीख को हो रहे चुनाव में भी देखने को मिलेंगे.

स्वतंत्रता के बाद से पाकिस्तान में जो चंद चुनाव हुए हैं, उनकी साख कभी नहीं रही, पर इसबार के चुनाव अबतक के सबसे दाग़दार चुनाव माने जा रहे हैं. बहरहाल अब सवाल दो हैं. इसबार बनी सरकार क्या पाँच साल चलेगी? क्या वह सेना के दबाव और हस्तक्षेप से मुक्त होगी?

Tuesday, February 6, 2024

आत्मावलोकन भी जरूरी है


भारत और ‘भारतीय राष्ट्रवाद’ इन दिनों बहस का विषय है। उसकी पृष्ठभूमि को समझने के लिए ऐतिहासिक परिस्थितियों को समझने की जरूरत  भी होगी। भारतेंदु का नवंबर 1884 में बलिया के ददरी मेले में आर्य देशोपकारिणी सभा में दिया गया  एक भाषण है, जिसे पढ़ना चाहिए। बाद में यह नवोदिता हरिश्चंद्र चंद्रिका जि. 11 नं. 3,3 दिसम्बर 1884 में प्रकाशित भी हुआ। पढ़ने के साथ उस संदर्भ पर भी नजर डालें, जिसके कारण मैं इसे पढ़ने का सुझाव दे रहा हूँ। 

प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी ने सोमवार को संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस का जवाब देते हुए कहा कि नेहरू जी और इंदिरा गांधी का भारत के लोगों के लिए नज़रिया अच्छा नहीं था।  1959 में जवाहरलाल नेहरू के स्वतंत्रता दिवस भाषण को याद करते हुए उन्होंने कहा. 'नेहरू ने लालकिले से कहा था कि भारतीयों को कड़ी मेहनत करने की आदत नहीं है। इंदिरा गांधी के एक उद्धरण को पढ़ते हुए उन्होंने कहा, 'दुर्भाग्य से, हमारी आदत है कि जब कोई शुभ काम पूरा होने वाला होता है तह हम लापरवाह हो जाते हैं, जब कोई कठिनाई आती है, तो हम लापरवाह हो जाते हैं. कभी-कभी ऐसा लगता है कि पूरा देश विफल हो गया है। ऐसा लगता है जैसे हमने पराजय की भावना को अपना लिया है।' 

नरेंद्र मोदी ने जिन दोनों वक्तव्यों का उल्लेख किया है, उन्हें गौर से पढ़ें, तो आप पाएंगे कि उनके पीछे आत्मावलोकन की मनोकामना है, अपमानित करने की इच्छा नहीं है। लोगों को प्रेरित करने के लिए आत्ममंथन की जरूरत भी होती है। नरेंद्र मोदी का यह बयान राजनीतिक है और इसके पीछे उद्देश्य कांग्रेस की आलोचना  करना है। उसकी राजनीति को छोड़ दें, और यह देखें कि हमारे नेताओं ने देश के लोगों को अपने कार्य-व्यवहार पर ध्यान देने की सलाह कब-कब दी है। बहरहाल मुझे भारतेंदु हरिश्चंद्र का एक भाषण याद आता है, जो 1884 में बलिया के ददरी मेले में उन्होंने दिया था। इस भाषण में उन्होंने अपने देशवासियों की कुछ खामियों की ओर इशारा किया है। उनका उद्देश्य देशवासियों को लताड़ना नहीं था, बल्कि यह बताने का था कि देश की उन्नति के लिए उन्हें क्या करने की जरूरत है। उस भाषण को पढ़ें : 

भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?

आज बड़े ही आनंद का दिन है कि इस छोटे से नगर बलिया में हम इतने मनुष्यों को बड़े उत्साह से एक स्थान पर देखते हैं। इस अभागे आलसी देश में जो कुछ हो जाय वही बहुत कुछ है। बनारस ऐसे-ऐसे बड़े नगरों में जब कुछ नहीं होता तो यह हम क्यों न कहैंगे कि बलिया में जो कुछ हमने देखा वह बहुत ही प्रशंसा के योग्य है। इस उत्साह का मूल कारण जो हमने खोजा तो प्रगट हो गया कि इस देश के भाग्य से आजकल यहाँ सारा समाज ही ऐसा एकत्र है। जहाँ राबर्ट्स साहब बहादुर ऐसे कलेक्टर हों वहाँ क्यों न ऐसा समाज हो। जिस देश और काल में ईश्वर ने अकबर को उत्पन्न किया था उसी में अबुल्‌फजल, बीरबल, टोडरमल को भी उत्पन्न किया। यहाँ राबर्ट्स साहब अकबर हैं तो मुंशी चतुर्भुज सहाय, मुंशी बिहारीलाल साहब आदि अबुल्‌फजल और टोडरमल हैं। हमारे हिंदुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं। यद्यपि फर्स्ट क्लास, सेकेंड क्लास आदि गाड़ी बहुत अच्छी-अच्छी और बड़े-बड़े महसूल की इस ट्रेन में लगी हैं पर बिना इंजिन ये सब नहीं चल सकतीं, वैसे ही हिन्दुस्तानी लोगों को कोई चलानेवाला हो तो ये क्या नहीं कर सकते। इनसे इतना कह दीजिए "का चुप साधि रहा बलवाना", फिर देखिए हनुमानजी को अपना बल कैसा याद आ जाता है। सो बल कौन दिलावै। या हिंदुस्तानी राजे महाराजे नवाब रईस या हाकिम। राजे-महाराजों को अपनी पूजा भोजन झूठी गप से छुट्टी नहीं। हाकिमों को कुछ तो सर्कारी काम घेरे रहता है, कुछ बॉल, घुड़दौड़, थिएटर, अखबार में समय गया। कुछ बचा भी तो उनको क्या गरज है कि हम गरीब गंदे काले आदमियों से मिलकर अपना अनमोल समय खोवैं। बस वही मसल हुई––'तुमें गैरों से कब फुरसत हम अपने गम से कब खाली। चलो बस हो चुका मिलना न हम खाली न तुम खाली।' तीन मेंढक एक के ऊपर एक बैठे थे। ऊपरवाले ने कहा 'जौक शौक', बीचवाला बोला 'गुम सुम', सब के नीचे वाला पुकारा 'गए हम'। सो हिन्दुस्तान की साधारण प्रजा की दशा यही है, गए हम।

Saturday, February 3, 2024

बजट में आर्थिक और राजनीतिक आत्मविश्वास की झलक


वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने जो अंतरिम बजट पेश किया है, उसमें बड़ी रूपांतरकारी और लोकलुभावन घोषणाएं भले ही नहीं है, पर भविष्य की आर्थिक दिशा और सरकार के राजनीतिक आत्मविश्वास का संकेत जरूर मिलता है.

बजट में नए कार्यक्रमों की घोषणाओं के मुकाबले इस बात को रेखांकित करने पर ज्यादा जोर दिया गया है कि पिछले दस वर्ष में अर्थव्यवस्था की दशा किस तरह से बदली है. देश में एफडीआई प्रवाह वर्ष 2014-2023 के दौरान 596 अरब अमेरिकी डॉलर का हुआ जो 2005-2014 के दौरान हुए एफडीआई प्रवाह का दोगुना है.

उन्होंने घोषणा की कि सरकार सदन के पटल पर अर्थव्‍यवस्‍था के बारे में श्वेत पत्र पेश करेगी, ताकि यह पता चले कि वर्ष 2014 तक हम कहां थे और अब कहां हैं. श्वेत पत्र का मकसद उन वर्षों के कुप्रबंधन से सबक सीखना है.