चंद्रयान-3 को लेकर एक पोस्ट मैंने फेसबुक पर बुधवार 16 अगस्त को लगाई तो मेरे मित्र संजय श्रीवास्तव ने लिखा कि चंद्रयान-1 ने चंद्रयान-3 के मुकाबले कम समय लगाया, ऐसा क्यों? साइंस का मेरा ज्ञान सीमित है, जिज्ञासा ज्यादा है। इधर-उधर से पढ़कर मैं जो जान पाता हूँ, उसे ही शेयर करता हूँ। चंद्रयान पर आने से पहले मैं एक निजी अनुभव से शुरुआत करूँगा।
सत्तर के दशक में जब मैंने सबसे पहले लखनऊ के ‘स्वतंत्र
भारत’ में काम करना शुरू किया, तब पहले दिन ही मुझे चीफ
सब एडिटर वीरेंद्र सिंह के साथ लगा दिया गया। मेरी राय में वीरेंद्र सिंह निश्चित
रूप से अपने दौर के सबसे काबिल पत्रकारों में से एक थे। कई कारणों से उनकी प्रतिभा
को सामने आने का मौका मिला नहीं। अलबत्ता जो लोग पुराने जमाने की ‘नवनीत’ में पुस्तक सार पढ़ते रहे हैं, उनकी जानकारी के लिए बता दूँ कि बड़ी
संख्या में पुस्तक सार वीरेंद्र सिंह ने लिखे थे।
मुझे सबसे पहले मिड शिफ्ट में काम करने का मौका
मिला, जिसमें तीन से रात के नौ बजे तक काम होता था। वीरेंद्र सिंह ने मुझे स्पेस
से जुड़ी पीटीआई की एक खबर पकड़ा दी। खबर काफी लंबी थी और मैंने पूरी खबर बना दी। वह
खबर अखबार के आखिरी पेज पर टॉप बॉक्स के रूप में छपी। अपने लिखे अक्षर पहली बार खबर
के रूप में देखकर जो खुशी मिलती है, वह खासतौर से पत्रकार दोस्तों को बताने की
जरूरत नहीं।
बहरहाल अंतरिक्ष से मेरी दोस्ती की वह शुरुआत
थी। मुझे पहली बार यह भी समझ में आया कि हिंदी की पत्रकारिता, मुकाबले अंग्रेजी की
पत्रकारिता के, ज्यादा चुनौती भरी क्यों है। नीचे इस आलेख में आप एपोजी और पेरिजी
कक्षाओं का जिक्र पढ़ेंगे। मैं अंग्रेजी का पत्रकार होता, तो कॉपी को अपर लोअर (अंग्रेजी
के पत्रकार जानते हैं कि यह क्या है) करके छुट्टी कर लेता, पर मुझे एपोजी और
पेरिजी को समझना पड़ा। और वह इंटरनेट का ज़माना नहीं था। बहरहाल।
हल्का और भारी पेलोड
संजय के सवाल के सिलसिले में जो जानकारी मैं हासिल कर पाया हूँ, उसके आधार पर मैं कह सकता हूँ कि ऐसा कई कारणों से हो सकता है। चंद्रयान-1 का पेलोड बहुत हल्का था। वह इंपैक्टर था। उसे तो चंद्रमा से टकराना भर था। चंद्रयान-2 उसकी तुलना में काफी भारी थी और चंद्रयान-3 और ज्यादा भारी है। ऐसे में पृथ्वी और चंद्रमा की कक्षा में दायरा बढ़ाने और घटाने की प्रक्रिया चलती है, जिसमें काफी सावधानी बरतनी होती है। चंद्रयान-1 को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करने के बाद दायरा छोटा करने में समय लगा। चंद्रयान-2 अंतिम कुछ सेकंडों में अपनी स्पीड को काबू में नहीं रख पाया।