Monday, August 14, 2023

वोटर का भरोसा तोड़ रही है संसदीय बहस


संसद के मॉनसून-सत्र में अपने प्रदर्शन को लेकर सत्तारूढ़ पक्ष और विपक्ष संभव है संतुष्ट हों, पर संसदीय-कर्म की दृष्टि से मॉनसून सत्र बहुत सकारात्मक संदेश छोड़कर नहीं गया। सत्र शुरू होने के पहले लगता था कि मणिपुर का मुद्दा बहुत बड़ा है, बेरोजगारी, गरीबी और महंगाई वगैरह पर भी सरकार को घेरने में विपक्ष सफल होगा। पर लगता नहीं कि इसमें सफलता मिल पाई। बल्कि लगता है कि मणिपुर को लेकर पैदा हुई तपन अब धीरे-धीरे कम होती जा रही है। राज्यसभा में 11 अगस्त को इस विषय पर चर्चा की बात कही गई थी, पर वह भी नहीं हुई। राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने अपने समापन भाषण में कहा कि सदन में मणिपुर पर चर्चा की जा सकती थी।

विपक्ष ने मणिपुर पर चर्चा कराने के बजाय प्रधानमंत्री के वक्तव्य पर जो अतिशय जोर दिया, उससे हासिल क्या हुआ? अविश्वास-प्रस्ताव का जवाब देते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा, विपक्ष का पसंदीदा नारा है, मोदी तेरी कब्र खुदेगी। ये मुझे कोसते हैं, जो मेरे लिए वरदान है। 20 साल में क्या कुछ नहीं किया, पर मेरा भला ही होता गया। मैं इसे भगवान का आशीर्वाद मानता हूं कि ईश्वर ने विपक्ष को सुझाया और वे प्रस्ताव लेकर आए।

मोदी की बात का जो भी मतलब हो, पर यदि विपक्ष को अपने अविश्वास-प्रस्ताव के प्रदर्शन से संतोष है, तो अलग बात है। अन्यथा लगता है कि अतिशय मोदी-विरोध की रणनीति से मोदी को ही लाभ होगा। अविश्वास-प्रस्ताव पर बहस के दौरान राजनीति के तमाम गड़े मुर्दे उखाड़े गए और बहस का स्तर लगातार गिरता चला गया। । दोनों सदनों में शोर मणिपुर को लेकर शोर, पर बातें किन्हीं दूसरे विषयों की हुईं। आप खुद सोचिए इनका राजनीतिक लाभ किसे मिला?

Sunday, August 13, 2023

संसदीय बहस ने मंदी कर दी मणिपुर की तपिश


संसद के मॉनसून-सत्र का समापन लगभग उसी अंदाज़ में हुआ, जिसकी आशा थी। सत्र के पहले सबसे बड़ा मुद्दा मणिपुर का समझा जा रहा था, पर दोनों सदनों में इस विषय पर चर्चा नहीं हो पाई। विपक्ष प्रधानमंत्री के वक्तव्य पर अड़ गया, जो अविश्वास-प्रस्ताव में ही संभव था। पर अविश्वास-प्रस्ताव ने मणिपुर की तुर्शी को ठंडा कर दिया। बहस के दौरान राजनीति के तमाम गड़े मुर्दे उखाड़े गए, पर मणिपुर की परिस्थिति पर रोशनी नहीं पड़ी। इसे लेकर दोनों सदनों में शोर हुआ, चर्चा नहीं हुई। अविश्वास प्रस्ताव के करीब दो घंटे लंबे जवाब में जब प्रधानमंत्री मणिपुर-प्रसंग पर आए, तब तक विरोधी दल सदन से बहिर्गमन कर चुके थे। प्रस्ताव पर मतदान की जरूरत भी नहीं पड़ी। विरोधी दलों की गैर-मौजूदगी में वह ध्वनिमत से नामंजूर हो गया। यह सत्र, संसदीय बहस के क्रमशः बढ़ते पराभव का अच्छा उदाहरण है।

कुछ बेहद महत्वपूर्ण विधेयक इस सत्र में बगैर किसी बहस के पास हो गए। इससे पता लगता है कि राजनीति गंभीर मसलों में कितनी दिलचस्पी है। सत्र की समापन बैठकों का भी विरोधी गठबंधन ने बहिष्कार किया। यह बहिष्कार अधीर रंजन चौधरी के निलंबन और मणिपुर पर चर्चा नहीं हो पाने के विरोध में किया गया। सत्र के दौरान राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा, संजय सिंह और रिंकू सिंह और लोकसभा में कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी का निलंबन हुआ। आम आदमी पार्टी के संजय सिंह का निलंबन केवल सत्र के समापन तक का था, पर उसे बढ़ा दिया गया है। और कुछ हुआ हो या ना हुआ हो, इस सत्र ने 2024 के लिए प्रचार के कुछ मुद्दे, मसले, नारे और जुमले दे दिए हैं। यह भी स्पष्ट हुआ की विरोधी एकता में बीजद, वाईएसआर कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के शामिल होने की संभावनाएं नहीं हैं।

22 विधेयक पास

सत्र की अंतिम बैठक में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने कहा कि इस दौरान सदन की 17 बैठकें हुईं, जो कुल 44 घंटे और 13 मिनट तक चलीं। सदन की सकल उत्पादकता 45 फीसदी रही। इस दौरान सरकार ने 20 विधेयक पेश किए और 22 विधेयकों को पास किया गया। इनमें से 10 विधेयक एक घंटे से भी कम की चर्चा के बाद पास हो गए। राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़ ने अपने समापन भाषण में कहा कि मेरी अपीलों का असर काफी सदस्यों पर नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि इस कारण सदन के 50 घंटे 21 मिनट बेकार हो गए। सदन की उत्पादकता 55 प्रतिशत रही। सदन में नियमों के उल्लंघन और अपमानजनक आचरण का हवाला देकर आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा को विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट आने तक निलंबित कर दिया गया। सदन ने इसी पार्टी के संजय सिंह का निलंबन भी विशेषाधिकार समिति की सिफारिशें आने तक बढ़ा दिया है।

Saturday, August 12, 2023

नागरिक हैं ‘भारत के भाग्य विधाता’


आज़ादी के सपने-03

अगस्त का यह महीना चालीस के दशक की तीन तारीखों के लिए खासतौर से याद किया जाता है. सन 1942 की 9 अगस्त से शुरू हुआ ‘अंग्रेजो, भारत छोड़ो’ आंदोलन 15 अगस्त 1947 को अपनी तार्किक परिणति पर पहुँचा था. भारत आज़ाद हुआ.

1942 से 1947 के बीच 1945 के अगस्त की दो तारीखें मानवता के इतिहास की क्रूरतम घटनाओं के लिए याद की जाती हैं. 6 अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा शहर पर एटम बम गिराया गया. फिर भी जापान ने हार नहीं मानी तो 9 अगस्त को नगासाकी शहर पर बम गिराया गया.

इन दो बमों ने विश्व युद्ध रोक दिया. इस साल दुनिया उस बमबारी की 78वीं सालगिरह मना रही है. इन दो घटनाओं ने वैश्विक नागरिक-समुदाय के सामने कई सवाल खड़े किए थे. राष्ट्रों के हित क्या नागरिकों के हित भी होते हैं?

नागरिकों की ताकत

जापान के नागरिकों को श्रेय जाता है कि उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध की पराजय और विध्वंस का सामना करते हुए पिछले 77 साल में एक नए देश की रचना कर दी. वह दुनिया की तीसरे नम्बर की अर्थव्यवस्था है. भले ही चीन उससे बड़ी अर्थव्यवस्था है, पर तकनीकी गुणवत्ता में चीन उसके करीब नहीं हैं.

भारत और जापान की संसदें दो तरह के अनुभवों से गुजर रही हैं. जापान की संसद पिछले 76 साल के इतिहास का सबसे लंबा विमर्श कर रही है, वहीं हमारी संसद में शोर है. यह राजनीति है और इसकी ताली भी दो हाथ से बजती है. एक नेता की, दूसरी जनता की.

शोर ही सही, पर क्या हमारे विमर्श में गम्भीरता है? क्या हम भविष्य को लेकर सचेत हैं? हम माने कौन? देश के संविधान की उद्देशिका का पहला वाक्य है: ‘हम, भारत के लोग…और अंतिम वाक्य है: ‘,अपनी संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतदद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं.’  कौन हैं भारत के वे लोग, जिन्होंने संविधान को आत्मार्पितकिया है?

भारत भाग्य विधाता

रघुवीर सहाय की कविता है:- राष्ट्रगीत में भला कौन वह/ भारत भाग्य विधाता है/ फटा सुथन्ना पहने जिसका/ गुन हरचरना गाता है. कविता की अंतिम पंक्तियाँ हैं:- कौन-कौन है वह जन-गण-मन/ अधिनायक वह महाबली/ डरा हुआ मन बेमन जिसका/ बाजा रोज़ बजाता है.

वह भारत भाग्य विधाता इस देश की जनता है. क्या उसे जागी हुई जनता कहना चाहिए? जागने का मतलब आवेश और तैश नहीं है. अभी हम या तो खामोशी देखते हैं या भावावेश. दोनों ही गलत हैं. सही क्या है, यह सोचने का समय आज है. आप सोचें कि 9 और 15 अगस्त की दो क्रांतियों का क्या हुआ.

15 अगस्त, 1947 को जवाहर लाल नेहरू ने कहा, ‘इतिहास के प्रारंभ से ही भारत ने अपनी अनंत खोज आरंभ की थी. अनगिनत सदियां उसके उद्यम, अपार सफलताओं और असफलताओं से भरी हैं…हम आज दुर्भाग्य की एक अवधि पूरी करते हैं. आज भारत ने अपने आप को फिर पहचाना है.’

इस भाषण के दो साल बाद 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में भीमराव आंबेडकर ने कहा, ‘राजनीतिक लोकतंत्र तबतक विफल है, जबतक उसके आधार में सामाजिक लोकतंत्र नहीं हो.’ इस सामाजिक-लोकतंत्र के केंद्र में है भारतीय जनता, जो जागती है, तो बहुत कुछ बदल जाता है.

Friday, August 11, 2023

ग्रामीण-विकास और खेती की चुनौतियाँ


 आज़ादी के सपने-02

भारत सरकार ने गत 20 जुलाई को चावल के निर्यात को लेकर एक बड़ा फैसला किया. गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गई. भारत के इस फ़ैसले के पीछे कारण है आने वाले त्योहार के मौसम में बढ़ने वाली घरेलू माँग और क़ीमतों पर नियंत्रण रखना.

भारत के इस फैसले से दुनिया भर के खाद्य बाज़ार में चावल के दाम बढ़ने की आशंका है. भारत आज दुनिया में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है. चावल के वैश्विक बाजार में भारत की हिस्सेदारी 42 प्रतिशत है. विश्व व्यापार में साढ़े चार करोड़ टन चावल की बिक्री होती है, जिसमें 2.2 करोड़ टन भारतीय चावल होता है.

आत्मनिर्भर भारत

निर्यात-प्रतिबंधों का दुनिया की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा, वह विचार का अलग विषय है. हमें केवल इस बात को रेखांकित करना है कि खाद्यान्न के मामले में अब हम आत्मनिर्भर हैं. भारत 140 से अधिक देशों को चावल निर्यात करता है.

इस परिस्थिति की तुलना करें साठ के दशक से जब भारत को विदेशी खाद्य सहायता पर निर्भर रहना पड़ा था. पीएल-480 समझौते के तहत, भारत ने अमेरिका से गेहूं का आयात किया. उसके तहत ऐसे गेहूँ को स्वीकार करना पड़ा, जो जानवरों को खिलाने लायक था.

भारत के प्राण उसके गाँवों में बसते हैं. देश का विकास तभी होगा, जब गाँवों का विकास होगा. गाँवों के साथ भारतीय खेती का वास्ता है. कृषि और ग्रामीण विकास के भारतीय कार्यक्रमों की लंबी कहानी है. इसमें पंचायती-राज और 73वें संविधान संशोधन की भी भूमिका है.

पंचायती राज

जनवरी 2019 तक की जानकारी के अनुसार देश में 630 जिला पंचायतें, 6614 ब्लॉक पंचायतें और 2,53,163 ग्राम पंचायतें हैं। इनमें 30 लाख से अधिक पंचायत प्रतिनिधि हैं. इनके पास कुछ वित्तीय अधिकार भी हैं. 2021-26 की अवधि के लिए बने 15वें वित्त आयोग ने ग्रामीण निकायों के लिए 2,36,805 करोड़ की धनराशि के आबंटन की सिफारिश की है.

Thursday, August 10, 2023

एक नज़र करवट बदलते पाकिस्तान पर

पाकिस्तान से आई चार खबरों ने इस हफ्ते ध्यान खींचा है. पहली है पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को तोशाखाना मामले में मिली तीन तीन साल की कैद की सज़ा, गिरफ्तारी पाँच साल तक चुनाव लड़ने पर रोक. प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ की घोषणा कि नेशनल असेंबली 9 अगस्त को भंग कर दी जाएगी. इन दो खबरों से पहले शहबाज़ शरीफ का भारत से बातचीत की पहल से जुड़ा एक और बयान, तीसरी खबर है.

चौथी खबर राजनीति के बजाय, खेल के मैदान से है. पाकिस्तान सरकार ने इस साल भारत में अक्तूबर-नवंबर में हो रही एकदिनी क्रिकेट की विश्वकप प्रतियोगिता में अपनी टीम को भेजने की अनुमति दे दी है. इन दिनों चेन्नई में हो रही हॉकी की एशिया चैंपियन ट्रॉफी प्रतियोगिता में भी पाकिस्तान की टीम खेल रही है. खेल की खबरें भी बदलाव का संदेश दे रही हैं. सरकार ने जाते-जाते क्रिकेट का फैसला कुछ सोचकर किया है.    

नेशनल असेंबली को अपने समय से तीन दिन पहले भंग करने का मतलब है कि अब चुनाव 9 नवंबर तक कराने होंगे. संसद अपना कार्यकाल पूरा करती, तो नियमानुसार 12 अक्तूबर तक कराने होते. सरकार चुनाव कराने के लिए थोड़ा ज्यादा समय चाहती है.

इमरान गिरफ्तार

सनसनी के लिहाज से ज्यादा बड़ी खबर है इमरान खान को दी गई तीन साल की सज़ा. लगता यह है कि उनकी गति नवाज़ शरीफ जैसी होने वाली है. उन्हें चुनाव की राजनीति से बाहर किया जा रहा है. वे सेना की मदद से बढ़े थे और सेना ही उन्हें निपटा रही है. अलबत्ता उनकी पार्टी तहरीके इंसाफ पाकिस्तान की लोकप्रियता में कमी दिखाई पड़ती नहीं है.