आज़ादी के सपने-01
वैबसाइट आवाज़ द वॉयस में 6 से 14 अगस्त, 2023 को प्रकाशित नौ लेखों की सीरीज़ का पहला लेख
पिछले साल
इन्हीं दिनों जब हम अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे कर रहे थे, तब हमारे मन में
स्वतंत्रता के 100वें वर्ष की योजनाएं जन्म ले रही थीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
ने 15 अगस्त 2022 को लालकिले के प्राचीर से जो भाषण दिया, उसमें भविष्य के भारत की
परिकल्पना थी.
उन्होंने 2047
का खाका खींचा, जिसके
लिए अगले 25 वर्षों को ‘अमृत-काल’ बताते हुए कुछ संकल्पों और कुछ संभावनाओं का
जिक्र किया. एक देश जिसने अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे किए हैं, और जो 100 वर्ष की ओर बढ़ रहा है, उसकी
महत्वाकांक्षाओं और इरादों को उसमें पढ़ना होगा.
उसके पहले एक
नज़र उन वर्षों पर भी डालनी चाहिए, जिनसे गुज़र कर हम यहाँ तक आए हैं. 15 अगस्त,
1947 को जब हम स्वतंत्र हो रहे थे, तब हमने कुछ सपने देखे थे. पिछले 76 साल में कुछ
पूरे हुए और कुछ नहीं हुए.
सपना क्या
था?
उस भव्य
भारतवर्ष की पुनर्स्थापना, जो कभी वास्तव में सच था. नागरिकों की खुशहाली. क्या
हैं क्या हैं हमारी 76 साल की उपलब्धियाँ? और अगले 25 साल में ऐसा क्या हम कर पाएंगे,
जो हमें अपने सपनों को साकार करने में मददगार बने?
भारत के नीति
आयोग ने संयुक्त राष्ट्र मल्टी डायमेंशनल पोवर्टी इंडेक्स (एमपीआई) के आधार पर हाल
में जानकारी दी है कि मार्च 2021 को पूरे हुए पाँच वर्षों में देश में करीब 13.5
करोड़ लोग गरीबी की रेखा से ऊपर आए हैं.
इसके कुछ साल
परले संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम और ऑक्सफोर्ड गरीबी एवं मानव विकास पहल
(ओपीएचआई) के आँकड़ों के अनुसार 2005-06 से 2015-16 के दौरान भारत में 27.3 करोड़
लोग गरीबी के दायरे से बाहर निकले.
हम कहाँ हैं?
नॉमिनल जीडीपी के आधार पर इस समय भारत, दुनिया की पाँचवीं और पर्चेज़िंग पावर पैरिटी (पीपीपी) के आधार पर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. इक्कीसवीं सदी की शुरुआत से ही देश की औसत सालाना संवृद्धि 6 से 7 फीसदी की रही है. सन 2016 में नोटबंदी और 2017 में गुड्स एंड सर्विस टैक्स लागू होने के कारण और 2020 से 2022 तक कोविड के कारण अर्थव्यवस्था को झटके भी लगे हैं.