इमरान खान की गिरफ्तारी, उसके बाद हुई हिंसा, अफरा-तफरी और फिर सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इमरान खान की रिहाई होने के बावजूद स्थिति सामान्य नहीं हुई है, बल्कि कलह और ज्यादा खुलकर सामने आ गई है. देश की सेना, राजनीति और न्यायपालिका तीनों आरोपों के घेरे में हैं. सोमवार को सत्तारूढ़ पीडीएम के कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट बाहर धरना दिया और संसद ने अदालत की भूमिका की जाँच के लिए एक कमेटी बनाने का प्रस्ताव पास किया है.
पाकिस्तान को इस वात्याचक्र से बाहर निकालने के
लिए नए सिरे से अपनी शुरुआत करनी होगी. यह शुरुआत कैसे होगी और इसकी पहल कौन
करेगा, कहना मुश्किल है. पिछले 76 साल में वहाँ जो कुछ हुआ है, वह इसके लिए
जिम्मेदार है. स्वतंत्रता के बाद से वहाँ जो व्यवस्था कायम की गई है, वह सेना,
सुरक्षा और युद्ध पर केंद्रित है. अब पहिया उल्टा घुमाना भी आसान नहीं है.
इरादा क्या है?
यह स्थिति न तो एक दिन में बनी है और न कोई एक
व्यक्ति इसके लिए जिम्मेदार है. वहाँ के अवाम और राजनीति को विचार करना चाहिए कि
पाकिस्तान की विचारधारा क्या है? वे चाहते क्या हैं?
इमरान खान लोकतंत्र और भ्रष्टाचार की बातें कर
ज़रूर रहे हैं, पर उनके पास भी इस बीमारी का कोई इलाज़ नहीं है. वे धार्मिक नारों
का इस्तेमाल कर रहे हैं. इनके सहारे वे एकबार को सत्ता में वापस आ भी जाएंगे, तो
देश को संकट से बार किस तरह निकालेंगे, यह स्पष्ट नहीं है.
इमरान खान ने राजनीति में अपने विरोधियों को चोर-डाकू बताकर प्रवेश किया था. उन्होंने 2016 में पनामा पेपर्स ने देश के राजनेताओं की कारगुजारियों का पर्दाफाश किया. इसके सहारे इमरान ने सेना की मदद से नवाज़ शरीफ को जेल का रास्ता दिखाने में कामयाबी हासिल की, पर आज वे वैसे ही आरोपों के कठघरे में हैं. उन्हें लेकर दस्तावेजी सबूत भी हैं. सिर्फ आंदोलन और हंगामे की मदद से वे कैसे बचेंगे?