पाकिस्तान के अब तक के सेनाध्यक्ष
पाकिस्तान के नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति के बाद भारत में इस बात को
ज़ोर देकर कहा जा रहा है कि जनरल आमिर मुनीर पुलवामा कांड और कश्मीर में हुई भारत-विरोधी
गतिविधियों के मास्टरमाइंड रहे हैं. इससे क्या निष्कर्ष निकाला जाए कि वे
भारत-विरोधी हैं? यह बात तो पाकिस्तानी सेना के किसी भी जनरल के
बारे में कही जा सकती है.
अलबत्ता यह देखने की जरूरत है कि वे किन परिस्थितियों में सेनाध्यक्ष
बने हैं. परिस्थितियाँ भी उनके दृष्टिकोण को बनाने का काम करेंगी. भारत से जुड़ी
ज्यादातर नीतियों के पीछे पाकिस्तानी सेना का हाथ होता है, इसलिए भी उनका महत्व
है. सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति.
भारत-विरोध की नीति
पाक-राजनीति और सेना में कोई भी खुलेआम भारत के साथ दोस्ती की बात
कहने की सामर्थ्य नहीं रखता. पिछले 75 वर्षों में भारत-विरोध ही पाकिस्तानी
विचारधारा का केंद्र-बिंदु बन चुका है. शायद उन्हें इस सवाल से डर लगता है कि भारत
से दोस्ती हो सकती है, तो पाकिस्तान बनाने की जरूरत ही क्या थी?
आज के हालात में वहाँ का कोई भी राजनेता या फौजी जनरल खुद को भारत के
मित्र के रूप में पेश नहीं कर सकता. पर ऐसा संभव है कि कभी ऐतिहासिक कारणों से
पाकिस्तानी सत्ता-प्रतिष्ठान इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि भारत के साथ रिश्ते सामान्य
किए बगैर देश का हित नहीं है.
औपचारिक रूप से तो पाकिस्तानी राजनेता आज भी कहते हैं कि हम भारत के
साथ अच्छे रिश्ते रखना चाहते हैं, पर भारतीय नीतियों के कारण ऐसा नहीं हो पा रहा
है. भारतीय नीतियाँ यानी कश्मीर-नीति. पर वे भी कश्मीर को अलग रखकर बात करने को
तैयार नहीं हैं. सुलगता कश्मीर पाकिस्तानी-विचारधारा को प्रासंगिक बनाकर रखता है,
पर धीरे-धीरे पाकिस्तानी दुर्ग के कंगूरों में दरारें पड़ती जा रही हैं.
बीजेपी के रहते नहीं
इमरान खान ने पिछले हफ्ते ब्रिटेन के अखबार इंडिपेंडेंट से कहा है कि जब तक भारत में बीजेपी का शासन है, तब तक पाकिस्तान के रिश्ते भारत के साथ सुधरेंगे नहीं. यह राजनीतिक बयान है, जिसका कोई मतलब नहीं. बीजेपी के आने के पहले रिश्तों से कौन गुलाब की खुशबू आती थी? मुंबई हमला तो कांग्रेस-सरकार के दौर में हुआ था.