किसान आंदोलन से जुड़ा गतिरोध टूटने का नाम नहीं ले रहा है। सरकार और किसान दोनों अपनी बात पर अड़े हैं। सहमति बनाने की जिम्मेदारी दोनों की है। जब आप आमने-सामने बैठकर बात करते हैं, गतिरोध तभी टूटता है। पर कई दौर की वार्ता के बाद भी बात वहीं की वहीं है। किसानों का कहना है कि बात तो करने को हम तैयार हैं, पर पहले आप तीन कानूनों को वापस लें। उन्होंने अपने आंदोलन का विस्तार करने की घोषणा की है, जिसमें हाइवे जाम करना, रेलगाड़ियों को रोकना और टोल प्लाजा पर कब्जा करने का कार्यक्रम भी शामिल है। फिलहाल किसानों का तांता लगा हुआ है, एक वापस जाता है, तो दस नए आते हैं।
केंद्र सरकार ने किसानों को लिखित रूप से देने का आश्वासन किया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रहेगा। सरकार ने कानून में बदलाव की पेशकश की है, ताकि सरकारी और प्राइवेट मंडियों के बीच समानता रहे। बाहर से आने वाले व्यापारियों पर भी शुल्क लगाने की बात मान ली गई है। व्यापारियों का पंजीकरण होगा और विवाद खड़े होने पर अदालत जाने का अवसर रहेगा। पर किसानों की एक ही माँग है कि तीनों कानूनों को वापस लो।