एक धारणा है कि लद्दाख में चीनी आक्रामकता के कारण भारत ने अमेरिका का दामन पकड़ा है। यदि चीन का खतरा नहीं होता, तो भारत अपनी विदेश-नीति को संतुलित बनाकर रखता और अमेरिकी झुकाव से बचा रहता। क्या आप इस बात से सहमत हैं? इस बीच एक आलेख मुझे ऐसा पढ़ने को मिला, जिसमें कहा गया है कि चीन ने भारत को अमेरिकी खेमे में जाने के लिए जान-बूझकर धकेला है, ताकि दुनिया में फिर से दो ध्रुव तैयार हों। भारत के रहने से दो ध्रुव ठीक से बन नहीं पा रहे थे और चीन के खेमे में भारत के जाने की संभावनाएं थी नहीं।
इंडियन एक्सप्रेस में श्रीजित शशिधरन ने लिखा है कि लद्दाख में चीनी गतिविधियों की तुलना इतिहास की एक और घटना से की जा सकती है, जिसे ‘सेवन ईयर्स वॉर’ के नाम से याद किया जाता है, जिसके कारण दुनिया की राजनीति में बड़ा बदलाव आया। 1756 से 1763 के बीच फ्रांस और इंग्लैंड के बीच वह युद्ध एक तरह से वैश्विक चौधराहट के लिए हुआ था। क्या भारत-चीन टकराव के निहितार्थ उतने ही बड़े हैं? शशिधरन के अनुसार चीन की कामना है कि उसका और रूस का गठबंधन बने और दुनिया सीधे-सीधे फिर से दो ध्रुवों के बीच बँटे। उसकी इच्छा यह भी है कि भारत किसी न किसी तरह से अमेरिका के खेमे में जाए।