पिछले हफ्ते जब
भारत और नेपाल के बीच सीमा को लेकर विवाद खड़ा हुआ, उसके ठीक पहले
भारत-चीन सीमा पर कुछ ऐसी घटनाएं हुईं हैं,
जिनसे लगता है सब
कुछ अनायास नहीं हुआ है। मई के पहले हफ्ते में दोनों देशों की सेनाओं के बीच
पैंगांग त्सो के इलाके में झड़पें हुईं थीं। उसके बाद दोनों देशों की सेनाओं के
स्थानीय कमांडरों के बीच बातचीत के कई दौर हो चुके हैं, पर लगता है कि तनाव खत्म नहीं हो पाया है। सूत्र बता रहे
हैं कि लद्दाख क्षेत्र में चीनी सैनिक गलवान घाटी के दक्षिण पूर्व में, भारतीय सीमा के तीन किलोमीटर भीतर तक आ गए हैं। इतना ही
नहीं चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के उस पार भी अपने सैनिकों की संख्या
बढ़ा दी है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार सैटेलाइट चित्रों से इस बात की पुष्टि हुई
है कि टैंक, तोपें और बख्तरबंद गाड़ियाँ चीनी सीमा के भीतर भारतीय ठिकानों के काफी
करीब तैनात की गई हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि पिछले साल ही तैयार हुआ
दरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्दी मार्ग सीधे-सीधे चीनी निशाने पर आ गया है।
गलवान क्षेत्र
में वास्तविक नियंत्रण रेखा और चीनी दावे की रेखा में कोई बड़ा अंतर नहीं है। मोटे
तौर पर यह जमावड़ा चीनी सीमा के भीतर है। पर खबरें हैं कि चीनी सैनिक एलएसी के तीन
किलोमीटर भीतर तक आ गए थे। चाइनीज क्लेम लाइन (सीसीएल) को पार करने के पीछे चीन की
क्या योजना हो सकती है? शायद चीन को भारतीय सीमा
के भीतर हो रहे निर्माण कार्यों पर आपत्ति है। यह भी सच है कि इस क्षेत्र में
ज्यादातर टकराव इन्हीं दिनों में होता है, क्योंकि गर्मियाँ शुरू
होने के बाद सैनिकों की गतिविधियाँ तेज होती हैं। गलतफहमी में भी गश्ती दल रास्ते
से भटक जाते हैं, पर निश्चित रूप से चीन के आक्रामक राजनय का यह
समय है। इसलिए सवाल पैदा हो रहा है कि आने वाले समय में कोई बड़ा टकराव होगा? क्या यह एक नए शीतयुद्ध की शुरुआत है?