Monday, May 11, 2020

कोरोना की अफरातफरी में करोड़ों शिशु खतरे में


हाल में एक छोटी सी खबर पढ़ने को मिली कि कोविड-19 को देखते हुए 25 मार्च से माताओं और दो साल तक के बच्चों की ठप पड़ी टीकाकरण स्कीम फिर से शुरू हो गई है। पूरे देश में अभी सामान्य व्यवस्था कायम हुई नहीं है, इसलिए कहना मुश्किल है कि देशभर का क्या हाल हैं, पर इतना जाहिर है कि कोरोना वायरस के कारण छोटे बच्चों का टीकाकरण प्रभावित हुआ है। इस दौरान अप्रेल के अंतिम सप्ताह में हमने वैश्विक टीकाकरण सप्ताह भी मनाया, पर टीकाकरण की गाड़ी ठप पड़ी रही। कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में भारत का सकारात्मक पहलू है हमारा अनिवार्य टीकाकरण कार्यक्रम। माना जा रहा कि भारत के लोगों में कई प्रकार के रोगों की प्रतिरोधक शक्ति है। कम से कम 20 ऐसे रोग हैं, जिन्हें टीके की मदद से रोका जा सकता है।
इन दिनों हम कोरोना के खिलाफ जिन आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं की भूमिका की प्रशंसा कर रहे हैं, वे हमारे मातृ एवं शिशु कार्यक्रम की ध्वजवाहक हैं। उनकी तारीफ के साथ यह बताना भी जरूरी है कि कोविड-19 की अफरातफरी ने टीकाकरण कार्यक्रम को धक्का पहुँचाया है। केवल टीकाकरण की बात ही नहीं है। कोरोना के खिलाफ लड़ाई के इस दौर में जल्दबाजी, असावधानी या प्राथमिकताओं के निर्धारण में बरती गई नासमझी में सामान्य स्वास्थ्य की जो अनदेखी हुई है, अब उसकी तरफ भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
स्वास्थ्य सेवाओं पर लॉकडाउन
लॉकडाउन के साथ-साथ अचानक दूसरी स्वास्थ्य सेवाओं की तरफ से हमारा ध्यान हट गया। ऐसे में कैंसर, हृदय, लिवर और किडनी और दूसरी बीमारियों से परेशान रोगियों के लिए आवश्यक सुविधाओं में कमी आ गई। कोविड-19 लिए विशेष अस्पतालों की व्यवस्थाओं को स्थापित करने के कारण अस्पतालों की ओपीडी सेवाएं बंद हो गईं। डायलिसिस और कीमोथिरैपी जैसी जरूरी चिकित्सा सुविधाएं भी प्रभावित हुईं। केवल स्वास्थ्य सुविधाएं ही नहीं दुनियाभर के बच्चों की पढ़ाई को नुकसान पहुँचा है। इन दिनों बच्चे और किशोर किस मनोदशा से गुजर रहे हैं, इसका अनुमान लगाना काफी मुश्किल है।

Sunday, May 10, 2020

शराब की मारामारी क्यों?


कोरोना संकट और लॉकडाउन के बीच कई राज्यों में शराब की बिक्री शुरू होने से एक नया संकट पैदा हो गया। हजारों-लाखों की संख्या में लोग शराब खरीदने के लिए निकल पड़े। चालीस दिन के लॉकआउट के बाद बिक्री शुरू होने और भविष्य के अनिश्चय को देखते हुए इस भीड़ का निकलना अस्वाभाविक नहीं था। लगभग ऐसी ही स्थिति लॉकडाउन शुरू होने के ठीक पहले जरूरी वस्तुओं के बाजारों की थी। मार्च के अंतिम सप्ताह में दिल्ली में प्रवासी मजदूरों के बाहर निकल आने से भी ऐसी ही स्थिति पैदा हुई थी। अनिश्चय और भ्रामक सूचनाओं के कारण ऐसी अफरातफरी जन्म लेती है। प्रवासी मजदूरों की परेशानी और सामान्य उपभोक्ताओं की घरेलू सामान की खरीदारी समझ में आती है, शराबियों की अफरातफरी का मतलब क्या है?

Monday, May 4, 2020

कब बनेगी सामाजिक बीमारियों की वैक्सीन?


इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक के अंत और तीसरे दशक की शुरुआत में ऐसे दौर में कोरोना वायरस ने दस्तक दी है, जब दुनिया अपनी तकनीकी उपलब्धियों पर इतरा रही है। इतराना शब्द ज्यादा कठोर लगता हो, तो कहा जा सकता है कि वह अपने ऐशो-आराम के चक्कर में प्रकृति की उपेक्षा कर रही है। कोरोना प्रसंग ने मनुष्य जाति के विकास और प्रकृति के साथ उसके अंतर्विरोधों को एकबारगी उघाड़ा है। इस घटनाक्रम में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के संदेश छिपे हैं।
कोरोना के अचानक हुए आक्रमण के करीब साढ़े तीन महीने के भीतर दुनिया के वैज्ञानिकों ने मनुष्य जाति की रक्षा के उपकरणों को खोजना शुरू कर दिया है। इसमें उन्हें सफलता भी मिली है, वहीं वैश्विक सुरक्षाकी एक नई अवधारणा सामने आ रही है, जिसका संदेश है कि इनसान की सुरक्षा के लिए एटम बमों और मिसाइलों से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं वैक्सीन और औषधियाँ। और उससे भी ज्यादा जरूरी है प्रकृति के साथ तादात्म्य बनाकर जीने की शैली, जिसे हम भूलते जा रहे हैं।

Sunday, May 3, 2020

कोरोना-युद्ध के सबक


लॉकडाउन दो हफ्ते के लिए बढ़ा दिया गया। या आप कह सकते हैं कि हटा लिया गया, पर कोरोना वायरस के कारण देश के अलग-अलग इलाकों में प्रतिबंध लगाए गए हैं। सिर्फ समझने की बात है कि गिलास आधा भरा है या आधा खाली है। कोरोना के खिलाफ वैश्विक लड़ाई को देखें, तो वहाँ भी यही बात लागू होती है। सवाल है कि क्या हम हालात से निराश हैं? कत्तई नहीं। यह एक नई चुनौती है, जिसपर हमें जीत हासिल करनी है। हमारे पास आशा या निराशा के विकल्प नहीं हैं। सकारात्मक सोच अकेला एक विकल्प है।
वैश्विक दृष्टि से हटकर देखें, तो भारत से संदर्भ में हमारे पास संतोष के अनेक कारण हैं। चीन को अलग कर दें, तो शेष विश्व में करीब 34 लाख लोग कोरोना के शिकार हुए हैं। इनमें से दो लाख 40 हजार के आसपास लोगों की मौत हुई है। इस दौरान भारत में करीब 37 हजार लोगो कोरोना के शिकार हुए हैं और 1200 के आसपास लोगों की इसके कारण मृत्यु हुई है। एक भी व्यक्ति की मौत दुखदायी है, पर तुलना करें। भारत की आबादी करीब एक अरब 30 करोड़ है, जिसमें 37 हजार को यह बीमारी लगी है। समूचे यूरोप और अमेरिका की आबादी भारत से कम ही होगी, पर बीमार होने वालों और मरने वालों की संख्या का अंतर आप देख सकते हैं।

इस अंतर के अनेक कारण हैं। कुछ लोग कहते हैं कि अमेरिका और यूरोप में टेस्ट ज्यादा होते हैं। भारत में कम होते हैं। हो सकता है कि बीमारों की संख्या ज्यादा हो। यह तर्क भी पक्का नहीं है। यह तर्क तीन-चार हफ्ते पहले उछाला गया था। तब भारत में प्रति 10 लाख (मिलियन) लोगों में करीब सवा सौ टेस्ट हो रहे थे। शनिवार को यह औसत 708 था। यह सम्पूर्ण भारत का औसत है, दिल्ली में तो यह 2400 के आसपास है। हम जब औसत निकालते हैं, तो समूचे भारत की जनसंख्या के आधार पर निकालते हैं, जबकि देश के एक बड़े इलाके में वायरस का प्रभाव है ही नहीं। 

Monday, April 27, 2020

पेट्रो-डॉलर सिस्टम को ध्वस्त करने पर उतारू कोरोना


कोरोना वायरस अभी उभार पर है। शायद इसका उभार रोकने में हम जल्द कामयाब हो जाएं। पर उसके बाद क्या होगा? इस असर का जायजा लेने के लिए कुछ देर के लिए तेल बाजार की ओर चलें। सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुल अज़ीज़ बिन सलमान ने गत 13 अप्रेल को कहा कि काफी विचार-विमर्श के बाद तेल उत्पादन और उपभोग करने वाले देशों ने प्रति दिन करीब 97 लाख बैरल प्रतिदिन की तेल आपूर्ति कम करने का फैसला किया है।
इस फैसले के बाद हालांकि ब्रेंट क्रूड बाजार में तेल की गिरती कीमतें कुछ देर के लिए सुधरीं, पर  वैश्विक स्तर पर असमंजस कायम है। दो हफ्ते पहले ये कीमतें 22 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे पहुँच गई थीं। इस गिरावट को रूस ने अपना उत्पादन और बढ़ाकर तेजी दी। इस प्रतियोगिता से तेल बाजार में वस्तुतः आग लग गई। इन पंक्तियों के लिखे जाते समय ब्रेंट क्रूड की कीमत 28 डॉलर के आसपास थी और अमेरिकी बाजारों में तेल 15 डॉलर के आसपास आने की खबरें थीं। इस कीमत पर इस उद्योग की तबाही निश्चित है। इस खेल में वेनेजुएला जैसे देश तबाह हो चुके हैं, जो पेट्रोलियम-सम्पदा के लिहाज से खासे समृद्ध थे।