उन्नाव दुष्कर्म कांड ने
देश की पुलिस और न्याय-व्यवस्था के साथ-साथ राजनीति की दयनीय स्थिति को भी उजागर किया है।
भारतीय जनता पार्टी ने विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को बर्खास्त करने में काफी देर
की। रायबरेली में दुर्घटना नहीं हुई होती तो शायद यह कार्रवाई भी नहीं हुई होती। सेंगर
ने राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से की, फिर सपा में गए। पत्नी को बसपा में भेजा,
खुद बीजेपी में आए। उनके निकट सम्बंधी सभी पार्टियों में हैं। खुद चुनाव जीतते
हैं, बल्कि जिसपर हाथ रख देते हैं, वह भी जीतता है। राजनीति के सामंती स्वरूप की
बेहतरीन मिसाल।
उन्नाव ही नहीं देश के
सभी इलाकों की यही कहानी है। चुनावों में जीतकर आने वाले सांसदों में करोड़पति और
आपराधिक मामलों से घिरे सदस्यों की संख्या लगातार बढ़ी है। चुनावों पर नजर रखने
वाली शोध संस्था ‘एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म’ (एडीआर) ने सत्रहवीं लोकसभा के
चुनाव परिणाम के बाद जो रिपोर्ट जारी की, उसके अनुसार आपराधिक मामलों में फँसे
सांसदों की संख्या दस साल में 44 प्रतिशत बढ़ी है। इसबार चुन कर आए 542 में 233
सांसदों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे लंबित है। इनमें से 159 के खिलाफ गंभीर आपराधिक
मामले हैं। राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय 25 राजनीतिक दलों में से छह दलों के शत
प्रतिशत सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं। करोड़पति सांसदों की संख्या 2009 में
58 प्रतिशत थी जो 2019 में 88 प्रतिशत हो गई।