अगले लोकसभा चुनाव में यूपी, बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र के अलावा दक्षिण के पाँचों राज्यों में गठबंधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। ज्यादातर राज्यों में तस्वीर अभी तक साफ नहीं है। इस लिहाज से उत्तर प्रदेश पहला राज्य है, जहाँ गठबंधन की योजना सामने आई है। देखना यह है कि यह गठबंधन क्या के चंद्रशेखर राव द्वारा प्रस्तावित फेडरल फ्रंट का हिस्सा बनेगा, जिसे ममता बनर्जी और नवीन पटनायक का समर्थन हासिल है। सीटों की संख्या के लिहाज से यूपी में सबसे बड़ा मुकाबला है।
Sunday, January 13, 2019
गठबंधन राजनीति के नए दौर का आग़ाज़
अगले लोकसभा चुनाव में यूपी, बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र के अलावा दक्षिण के पाँचों राज्यों में गठबंधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। ज्यादातर राज्यों में तस्वीर अभी तक साफ नहीं है। इस लिहाज से उत्तर प्रदेश पहला राज्य है, जहाँ गठबंधन की योजना सामने आई है। देखना यह है कि यह गठबंधन क्या के चंद्रशेखर राव द्वारा प्रस्तावित फेडरल फ्रंट का हिस्सा बनेगा, जिसे ममता बनर्जी और नवीन पटनायक का समर्थन हासिल है। सीटों की संख्या के लिहाज से यूपी में सबसे बड़ा मुकाबला है।
Saturday, January 12, 2019
गेमचेंजर भले न हो, नैरेटिव चेंजर तो है
आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित करने वाला संविधान
संशोधन विधेयक संसद में जितनी तेजी से पास हुआ, उसकी कल्पना तीन दिन पहले किसी को
नहीं थी। कांग्रेस समेत दूसरे विरोधी दलों ने इस आरक्षण को लेकर सरकार की आलोचना
की, पर इसे पास करने में मदद भी की। यह विधेयक कुछ उसी अंदाज में पास हुआ, जैसे अगस्त
2013 में खाद्य सुरक्षा विधेयक पास हुआ था। लेफ्ट से राइट तक के पक्षियों-विपक्षियों
में उसे गले लगाने की ऐसी होड़ लगी जैसे अपना बच्चा हो। आलोचना की भी तो ईर्ष्या
भाव से, जैसे दुश्मन ले गया जलेबी का थाल। तकरीबन हरेक दल ने इसे ‘चुनाव सुरक्षा
विधेयक’ मानकर ही अपने विचार व्यक्त किए।
तकरीबन वैसा ही यह 124 वाँ संविधान संशोधन ‘चुनाव आरक्षण
विधेयक’ साबित हुआ। भारतीय राजनीति किस कदर गरीबों की हितैषी है, इसका पता ऐसे
मौकों पर लगता है। चुनाव करीब हों, तो खासतौर से। राज्यसभा में जब यह विधेयक पास
हो रहा था केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विरोधियों पर तंज मारा, आप इसे
लाने के समय पर सवाल उठा रहे हैं, तो मैं बता दूं कि क्रिकेट में छक्का स्लॉग
ओवर में लगता है। आपको इसी पर परेशानी है तो ये पहला छक्का नहीं है। और भी छक्के
आने वाले हैं।
क्या कहानी बदलेगी?
इस छक्केबाजी से क्या राजनीति की कहानी बदलेगी? क्या बीजेपी
की आस्तीन में कुछ और नाटकीय घोषणाएं छिपी हैं? सच यह है कि भूमि
अधिग्रहण और खाद्य सुरक्षा विधेयक 2014 के चुनाव में कांग्रेस को कुछ दे नहीं पाए,
बल्कि पार्टी को इतिहास की सबसे बड़ी हार हाथ लगी। कांग्रेस उस दौर में विलेन और
मोदी नए नैरेटिव के नायक बनकर उभरे थे। पर इसबार कहानी बदली हुई है। इसीलिए सवाल
है कि मोदी सरकार के वायदों पर जनता भरोसा करेगी भी या नहीं? पार्टी की राजनीतिक दिशा का संकेत इस आरक्षण
विधेयक से जरूर मिला है। पर रविशंकर प्रसाद ने जिन शेष छक्कों की बात कही है, उन्हें
लेकर अभी कयास हैं।
Friday, January 11, 2019
क्या आरक्षण बीजेपी की नैया पार लगाएगा?
मोदी सरकार ने चुनाव के ठीक पहले ‘आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों’ के लिए आरक्षण का प्रस्ताव पास करके राजनीतिक धमाका
किया है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि सवर्ण हिन्दू जातियों के बीच पार्टी का
जनाधार हाल में कमजोर हो रहा था। पिछले दिनों अजा-जजा एक्ट में संशोधन के कारण यह
वर्ग पार्टी से नाराज था। मध्य प्रदेश में इसका असर खासतौर से देखने को मिला। एक
नया दल सपाक्स खड़ा हो गया। ‘वोट फॉर नोटा’ का नारा दिया गया। आंदोलन
की गूँज उत्तर भारत के दूसरे राज्यों में भी सुनी गई। सवाल है कि क्या सरकार का यह
फैसला इसी रोष को कम करने लिए है या कुछ और है? सरकार इस बहाने क्या आरक्षण
पर बहस को शुरू करना चाहती है? लाख टके का सवाल यह है कि क्या इससे भाजपा के पक्ष में लहरें
पैदा होंगी?
Monday, January 7, 2019
राफेल से जुड़े वाजिब सवाल
दुनिया में रक्षा-उपकरणों का सबसे बड़ा आयातक भारत है.
हमारी साठ फीसदी से ज्यादा रक्षा-सामग्री विदेशी है. स्वदेशी रक्षा-उद्योग के पिछड़ने
की जिम्मेदारी राजनीति पर भी है. सार्वजनिक रक्षा-उद्योगों ने निजी क्षेत्र को
दबाकर रखा. सरकारी नीतियों ने इस इजारेदारी को बढ़ावा दिया. सन 1962 में चीनी हमले
के बाद से देश का रक्षा-व्यय बढ़ा और आयात भी. नौसेना ने स्वदेशी तकनीक का रास्ता
पकड़ा, पर वायुसेना ने विदेशी विमानों को पसंद किया. इस वजह से एचएफ-24 मरुत विमान
का कार्यक्रम फेल हुआ. हम इंजन के विकास पर निवेश नहीं कर पाए.
राजनीतिक शोर नहीं होता, तो शायद हम राफेल पर भी बात
नहीं करते. चुनाव करीब हैं, इसलिए यह शोर है. अरुण जेटली ने कहा है कि कांग्रेस उस घोटाले को गढ़ रही है, जो हुआ ही नहीं. शायद
कांग्रेस को
लगता है कि जितना मामले को उछालेंगे, लोगों को लगेगा कि कुछ न कुछ बात जरूर है. जरूरी
है कि इसकी राजनीति से बाहर निकलकर इसे समझा जाए.
Sunday, January 6, 2019
राजनीतिक फुटबॉल बना राफेल
कांग्रेस
पार्टी कह रही है कि राफेल मामले में घोटाला हुआ है और सरकार कह रही है कि
कांग्रेस ‘घोटाले को गढ़ने का काम’ कर रही है। ऐसा घोटाला, जो
हुआ ही नहीं। यह मामला रोचक हो गया है। शायद राफेल प्रकरण पर कांग्रेस की काफी
उम्मीदें टिकी हैं। पर क्या उसे सफलता मिलेगी?
शुक्रवार को रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने गोपनीयता का हवाला देते
हुए कुछ बातों की सफाई भी दी है। फिर भी लगता नहीं कि कांग्रेस इन स्पष्टीकरणों से
संतुष्ट है या होगी। संदेह जितना घना होगा, उतना उसे लाभ मिलेगा। उधर निर्मला सीतारमण ने कहा कि बोफोर्स के कारण
कांग्रेस सरकार चुनाव हारी थी और देशहित में हुए राफेल सौदे के कारण बीजेपी फिर से
जीत कर आएगी। क्या यह मामला केवल चुनाव जीतने या हारने का है? देश की सुरक्षा पर भी राजनीति!
राहुल
गांधी का कहना है कि इस मसले का ‘की पॉइंट’ है एचएएल के बजाय अम्बानी की फर्म को
ऑफसेट ठेका मिलना। उन्हें बताना चाहिए कि यह ‘की पॉइंट’ क्यों है? क्या
एचएएल ऑफसेट की लाइन में था? या अम्बानी को विमान बनाने का लाइसेंस मिल गया
है? क्या दोनों के बीच प्रतियोगिता थी? सवाल यह भी है कि रिलायंस को क्या मिला? 30,000
करोड़ का या छह-सात सौ करोड़ का ऑफसेट ठेका?
जैसा कि बुधवार को वित्तमंत्री अरुण
जेटली ने संसद में बताया था। मिला भी तो किसने दिया? सरकार ने या विमान कम्पनी दासो ने?
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