हाल में देशभर में एकसाथ चुनाव कराने की मुहिम जब चल रही थी, तब उसका विरोध करने वालों का कहना था कि देश की विविधता और संघीय-संरचना को देखते हुए एकसाथ चुनाव कराना ठीक नहीं होगा. इससे क्षेत्रीय विविधता को ठेस लगेगी. वास्तव में पूर्वोत्तर के राज्यों की जो समस्याएं हैं, वे दक्षिण भारत में अनुपस्थित हैं. दक्षिण भारत के मसले पश्चिम में गौण हैं. भौगोलिक-सांस्कृतिक परिस्थितियाँ फर्क होने के कारण हरेक क्षेत्र की जरूरतें अलग-अलग हैं. पर क्या इन इलाकों की राजनीति अपने क्षेत्र की विशेषता को परिलक्षित करती है?
Wednesday, October 31, 2018
जनता के मसले कहाँ हैं इस चुनाव में?
हाल में देशभर में एकसाथ चुनाव कराने की मुहिम जब चल रही थी, तब उसका विरोध करने वालों का कहना था कि देश की विविधता और संघीय-संरचना को देखते हुए एकसाथ चुनाव कराना ठीक नहीं होगा. इससे क्षेत्रीय विविधता को ठेस लगेगी. वास्तव में पूर्वोत्तर के राज्यों की जो समस्याएं हैं, वे दक्षिण भारत में अनुपस्थित हैं. दक्षिण भारत के मसले पश्चिम में गौण हैं. भौगोलिक-सांस्कृतिक परिस्थितियाँ फर्क होने के कारण हरेक क्षेत्र की जरूरतें अलग-अलग हैं. पर क्या इन इलाकों की राजनीति अपने क्षेत्र की विशेषता को परिलक्षित करती है?
Tuesday, October 30, 2018
ऐसे तो नहीं रुकेगा मंदिर का राजनीतिकरण
अयोध्या मामले का राजनीतिकरण इस हद तक हो चुका
है कि अब मंदिर बने तब और न बने तब भी उसका फायदा बीजेपी को मिलेगा। यह बात उन लोगों को समझ में नहीं आ रही थी, जो अदालत में इसकी सुनवाई में विलंब कराने की
कोशिश कर रहे थे। अब इस मामले के राजनीतिक निहितार्थों को देखें और इंतजार
करें कि क्या होने वाला है। मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि
इस मसले पर अगली सुनवाई जनवरी 2019 में एक उचित पीठ के समक्ष होगी। यह सुनवाई इलाहाबाद
हाईकोर्ट के 2010 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं के समूह पर होगी। हाईकोर्ट
ने विवादित स्थल को तीन भागों रामलला, निर्मोही
अखाड़ा व मुस्लिम वादियों में बांटा था।
गौर करें, तो पाएंगे कि मंदिर मसले पर बीजेपी
को अपनी पहलकदमी के मुकाबले मंदिर-विरोधी राजनीति का लाभ ज्यादा मिला है। मंदिर
समर्थकों को कानूनी तरीके से जल्द मंदिर बनने की उम्मीद थी, जो फिलहाल पूरी होती
नजर नहीं आ रही है। यानी कि अब वे एक नया आंदोलन शुरू करेंगे। इस आंदोलन का असर
पाँच राज्यों के और लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा। बेशक बीजेपी के नेताओं पर भी दबाव है,
पर इससे उन्हें नुकसान क्या होगा? वे कहेंगे हमारे हाथ मजबूत करो। बीजेपी
मंदिर मसले को चुनाव का मुद्दा नहीं बना रही थी, तो अब बनाएगी।
क्या अध्यादेश आएगा?
बीजेपी के भीतर से आवाजें आ रहीं हैं कि सरकार
अध्यादेश या बिल लाकर मंदिर बनाए। सरसंघ चालक मोहन
भागवत कह चुके हैं कि सरकार को कानून बनाना चाहिए। सुब्रमण्यम स्वामी ने इस माँग
का स्वागत किया है। संघ के अलावा विश्व हिंदू परिषद और शिवसेना की भी यही राय है।
अध्यादेश या विधेयक से क्या मंदिर बन जाएगा? राज्यसभा में क्या
पर्याप्त समर्थन मिलेगा? नहीं मिला तब भी पार्टी यह कह सकती है कि
हमने कोशिश तो की । बिल पास भी हो जाए, तो सुप्रीम कोर्ट से भी
रुक सकता है। यह सब इतना आसान नहीं है, जितना समझाया जा रहा है। इसका हल सभी पक्षों के बीच समझौते से ही निकल सकता है।
Saturday, October 27, 2018
क्यों मचा फिर से मंदिर का शोर?
भारतीय जनता पार्टी के
लिए ‘राम मंदिर’ एक औजार है, जिसका इस्तेमाल जरूरत के हिसाब से
होता है। कभी लगता है कि वह इस भारी हथौड़े का इस्तेमाल नहीं करना चाहती और कभी
इसे फिर से उठा लेती है। पिछले लोकसभा चुनाव में लगता था कि इस मसले से पार्टी ने किनाराकशी कर ली है।
और अब लग रहा है कि वह इसे बड़ा मुद्दा बनाएगी। सुप्रीम कोर्ट में 29 अक्तूबर से
इस मामले पर सुनवाई शुरू हो रही है। उधर चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में मंदिर
भी मुद्दा बन गया है।
पिछले हफ्ते पुणे के
श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर में पूजा करने आए संघ-प्रमुख मोहन भागवत ने कहा
कि अयोध्या में शीघ्र मंदिर निर्माण होगा। बताते हैं कि संघ प्रमुख खासतौर से ‘राम-मंदिर और
राम-राज्य’ मनोकामना
की पूर्ति के लिए अभिषेक करके गए हैं। इससे पहले वे राम मंदिर पर कानून बनाने की सलाह सरकार
को दे चुके हैं।
मंदिर को लेकर उत्साह
उधर छत्तीसगढ़ में
चुनाव प्रचार के लिए आए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, अयोध्या
में जल्द बनेगा भव्य राम मंदिर। इसकी शुरुआत हो चुकी है। पिछले कुछ समय से अचानक अध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर मंदिर
बनाने की मुहिम में उतरे हैं। साम-दाम-दंड हर तरह से कोशिशें चल रहीं हैं। पिछले
डेढ़ सौ साल से ज़्यादा समय में कम से कम नौ बड़ी कोशिशें मंदिर-मस्जिद मसले के
समाधान के लिए हुईं और परिणाम कुछ नहीं निकला।
Monday, October 22, 2018
आजाद हिन्द की टोपी पहन, कांग्रेस पर वार कर गए मोदी
इसे नरेंद्र मोदी की कुशल ‘व्यावहारिक राजनीति’ कहें या नाटक, पर वे हर उस मौके का इस्तेमाल करते हैं, जो भावनात्मक रूप से फायदा पहुँचाता है. निशाने पर नेहरू-गांधी ‘परिवार’ हो तो वे उसेखास अहमियत देते हैं. रविवार 21 अक्तूबर को लालकिले से तिरंगा फहराकर उन्होंने कई निशानों पर तीर चलाए हैं.
'आजाद हिंद फौज' की 75वीं जयंती के मौके पर 21 अक्टूबर को लालकिले में हुए समारोह में मोदीजी की उपस्थिति की योजना शायद अचानक बनी. वरना यह लम्बी योजना भी हो सकती थी. ट्विटर पर एक वीडियो संदेश में उन्होंने कहा था कि मैं इस समारोह में शामिल होऊँगा.
कांग्रेस पर वार
इस ध्वजारोहण समारोह में मोदी ने नेताजी के योगदान को याद करने में जितने शब्दों का इस्तेमाल किया, उनसे कहीं कम शब्द उन्होंने कांग्रेस पर वार करने में लगाए, पर जो भी कहा वह काफी साबित हुआ.
उन्होंने कहा, एक परिवार की खातिर देश के अनेक सपूतों के योगदान को भुलाया गया. चाहे सरदार पटेल हो या बाबा साहब आम्बेडकर. नेताजी के योगदान को भी भुलाने की कोशिश हुई. आजादी के बाद अगर देश को पटेल और बोस का नेतृत्व मिलता तो बात ही कुछ और होती.
अभिषेक मनु सिंघवी ने हालांकि बाद में कांग्रेस की तरफ से सफाई पेश की, पर मोदी का काम हो गया. मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने गांधी, आम्बेडकर, पटेल और लाल बहादुर शास्त्री जैसे लोकप्रिय नेताओं को पहले ही अंगीकार कर लिया है. अब आजाद हिन्द फौज की टोपी पहनी है.
'आजाद हिंद फौज' की 75वीं जयंती के मौके पर 21 अक्टूबर को लालकिले में हुए समारोह में मोदीजी की उपस्थिति की योजना शायद अचानक बनी. वरना यह लम्बी योजना भी हो सकती थी. ट्विटर पर एक वीडियो संदेश में उन्होंने कहा था कि मैं इस समारोह में शामिल होऊँगा.
कांग्रेस पर वार
इस ध्वजारोहण समारोह में मोदी ने नेताजी के योगदान को याद करने में जितने शब्दों का इस्तेमाल किया, उनसे कहीं कम शब्द उन्होंने कांग्रेस पर वार करने में लगाए, पर जो भी कहा वह काफी साबित हुआ.
उन्होंने कहा, एक परिवार की खातिर देश के अनेक सपूतों के योगदान को भुलाया गया. चाहे सरदार पटेल हो या बाबा साहब आम्बेडकर. नेताजी के योगदान को भी भुलाने की कोशिश हुई. आजादी के बाद अगर देश को पटेल और बोस का नेतृत्व मिलता तो बात ही कुछ और होती.
अभिषेक मनु सिंघवी ने हालांकि बाद में कांग्रेस की तरफ से सफाई पेश की, पर मोदी का काम हो गया. मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने गांधी, आम्बेडकर, पटेल और लाल बहादुर शास्त्री जैसे लोकप्रिय नेताओं को पहले ही अंगीकार कर लिया है. अब आजाद हिन्द फौज की टोपी पहनी है.
Sunday, October 21, 2018
सबरीमलाई का राजनीतिक संदेश
हाल में हुए अदालतों के दो फैसलों के सामाजिक निहितार्थों को समझने की जरूरत है। इनमें एक फैसला उत्तर भारत से जुड़ा है और दूसरा दक्षिण से, पर दोनों के पीछे आस्था से जुड़े प्रश्न हैं। पिछले कुछ समय में गुरमीत राम रहीम और आसाराम बापू को अदालतों ने सज़ाएं सुनाई। अब बाबा रामपाल को दो मामलों में उम्रकैद की सज़ा सुनाई है। तीनों मामले अपराधों से जुड़े है। पिछले साल अगस्त में जैसी हिंसा राम रहीम समर्थकों ने की, तकरीबन वैसी ही हिंसा उसके पहले मथुरा के जवाहर बाग की सैकड़ों एकड़ सरकारी जमीन पर कब्जा जमाए बैठे रामवृक्ष यादव और उनके हजारों समर्थकों और पुलिस के बीच हिंसक भिड़ंत में हुई थी। बहरहाल बाबा रामपाल प्रकरण में ऐसा नहीं हो पाया।
पिछले हफ्ते केरल के सबरीमलाई (या सबरीमाला) मंदिर में कपाट खुलने के बाद के घटनाक्रम ने देश का ध्यान खींचा है। 12वीं सदी में बने भगवान अयप्पा के इस मंदिर में परम्परा से 10-50 साल की उम्र की स्त्रियों के प्रवेश पर रोक है। हाल में कुछ सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रतिबंध को हटा दिया और सभी महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दे दी। केरल के परम्परागत समाज ने अदालत की इस अनुमति को धार्मिक मामलों में राज-व्यवस्था का अनुचित हस्तक्षेप माना।
पिछले हफ्ते केरल के सबरीमलाई (या सबरीमाला) मंदिर में कपाट खुलने के बाद के घटनाक्रम ने देश का ध्यान खींचा है। 12वीं सदी में बने भगवान अयप्पा के इस मंदिर में परम्परा से 10-50 साल की उम्र की स्त्रियों के प्रवेश पर रोक है। हाल में कुछ सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रतिबंध को हटा दिया और सभी महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दे दी। केरल के परम्परागत समाज ने अदालत की इस अनुमति को धार्मिक मामलों में राज-व्यवस्था का अनुचित हस्तक्षेप माना।
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