Saturday, June 17, 2017

जस्टिस पीएन भगवती: जहांगीरी न्याय के पक्षधर

जस्टिस भगवती का सबसे बड़ा योगदान जनहित याचिकाएं हैं, जिन्हें उन्होंने परिभाषित किया थाजनता के बीच देश की न्याय-व्यवस्था की जो साख बनी है, उसे बनाने में जस्टिस पीएन भगवती जैसे न्यायविदों की बड़ी भूमिका है. वे ऐसे दौर में न्यायाधीश रहे जब देश को जबर्दस्त अंतर्विरोधों के बीच से गुजरना पड़ा. इसके छींटे भी उनपर पड़े. पर उनकी मंशा और न्याय-प्रियता पर किसी को कभी संदेह नहीं रहा.

भारतीय इतिहास में जिस तरह आम आदमी को जहांगीर ने न्याय की घंटियां बजाने का अधिकार दिया था, उसी तरह जस्टिस भगवती ने न्याय के दरवाजे हरेक के लिए खोले. उन्होंने सामान्य नागरिक को सार्वजनिक हित में देश की सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाने की पैरोकारी की और जो अंततः अधिकार बना. 

इस वजह से याद रहेंगे भगवती
व्यवस्था को पारदर्शी बनाने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार  के बारे में उनकी सुस्पष्ट राय थी. सन् 1990 में आकाशवाणी पर डॉ राजेंद्र प्रसाद पर दिया गया व्याख्यान जिसने सुना है, उसे वे काफी देर तक याद रखेंगे. अलबत्ता उनका सबसे बड़ा योगदान जनहित याचिकाएं हैं, जिन्हें उन्होंने परिभाषित किया था. उनके दौर में लोक-अदालतों ने त्वरित-न्याय की अवधारणा को बढ़ाया.


सत्तर और अस्सी के दशक भारत में न्यायिक सक्रियता के थे. इस दौर में हमारी अदालतों ने सार्वजनिक हित में कई बड़े फैसले किए. दिसंबर, 1979 में कपिला हिंगोरानी ने बिहार की जेलों में कैद विचाराधीन कैदियों की दशा को लेकर एक याचिका दायर की. इस याचिका के कारण बिहार की जेलों से 40,000 ऐसे कैदी रिहा हुए, जिनके मामले विचाराधीन थे.
अदालतों की न्यायिक सक्रियता की वह शुरुआत थी.

सन् 1981 में एसपी गुप्ता बनाम भारतीय संघ के केस में सात जजों की बेंच में जस्टिस भगवती भी एक जज थे. उन्होंने अपना जो फैसला लिखा उसमें दूसरी बातों के अलावा यह लिखा कि यह अदालत सार्वजनिक हित में मामले को उठाने के लिए यह अदालत औपचारिक याचिका का इंतजार नहीं करेगी, बल्कि यदि कोई व्यक्ति केवल एक चिट्ठी भी लिख देगा तो उसे सार्वजनिक हित में याचिका मान लेगी.
इस फैसले ने पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन को परिभाषित कर दिया. बड़ी बात यह है कि इस व्यवस्था में भारी न्यायिक शुल्क को जमा किए बगैर सुनवाई हो सकती है. अस्सी के दशक के पहले तक न्याय के दरवाजे केवल उसके लिए ही खुले थे, जो किसी सार्वजनिक कृत्य से प्रभावित होता हो.


कोई तीसरा व्यक्ति सार्वजनिक हित के मामले को लेकर भी अदालत में नहीं जा सकता था. उस दौर मे जस्टिस पीएन भगवती और जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर जैसे न्यायाधीशों को न्याय के दरवाजे सबके लिए खोलने का श्रेय जाता है.


इस वजह से हुई थी आलोचना
जस्टिस भगवती को पीआईएल और लोक अदालतों के लिए तारीफ मिली तो इमर्जेंसी के दौर में इंदिरा गांधी की तारीफ और उनकी नीतियों के समर्थन की वजह से काफी आलोचना का सामना भी करना पड़ा. सन् 1976 के एडीएम जबलपुर मामले में सुप्रीम कोर्ट के जिन चार सदस्यों ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को नामंजूर कर दिया था, उसमें एक जज वे भी थे. एचआर खन्ना अकेले जज थे, जिन्होंने सरकार के खिलाफ फैसला सुनाया.


भगवती पर ढुलमुल होने का आरोप था. इमर्जेंसी में उन्होंने इंदिरा गांधी की तारीफ की, जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद आलोचना. और जब इंदिरा की वापसी हुई तो उनकी फिर से तारीफ कर दी. शायद उन्हें अपनी गलती मानने में देर नहीं लगती थी. सन् 1976 के बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में उन्होंने अपनी गलती सन् 2011 में जाकर मान ली.


देश की न्यायिक व्यवस्था को लेकर उनकी राय काफी खुली हुई थी. जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम व्यवस्था के पक्ष में वे नहीं थे. एक इंटरव्यू के जवाब में उन्होंने कहा, ‘मैं इसके पक्ष में नहीं हूं. मुझे हकीकत तो नहीं मालूम, लेकिन अफवाहों पर ध्यान दें तो कॉलेजियम में रखे जाने वाले न्यायाधीशों के बीच मोल-भाव होता है. लोग न्यायाधीशों की नियुक्ति के तरीके में भरोसा खोते जा रहे हैं. लिहाजा, इसे बदलना जरूरी हो गया है.’

फर्स्ट पोस्ट में प्रकाशित 

Friday, June 16, 2017

राष्ट्रपति चुनाव के पेचोख़म

राष्ट्रपति चुनाव में राजनीतिक शक्ति परीक्षण हो जाता है और गठबंधनों के दरवाजे भी खुलते और बंद होते हैं। गुरुवार को चुनाव की अधिसूचना जारी होने के साथ राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गईं हैं। अब अगले हफ्ते यह तय होगा कि मुकाबला किसके बीच होगा। और यह भी कि मुकाबला होगा भी या नहीं। सरकार ने विपक्ष की तरफ हाथ बढ़ाकर इस बात का संकेत किया है कि क्यों न हम मिलकर एक ही प्रत्याशी का नाम आगे बढ़ाएं।

बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह ने प्रत्याशी चयन के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है। समिति में वेंकैया नायडू, अरुण जेटली और राजनाथ सिंह शामिल हैं। यह समिति विपक्ष सहित ज्यादातर राजनीतिक दलों से बातचीत करेगी। बुधवार को बीजेपी की समिति की बैठक हुई, जिसमें तय हुआ कि एनडीए के प्रत्याशी के नाम का ऐलान 23 जून को किया जाएगा। शुक्रवार को यह समिति कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात करेगी। इसके बाद मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी के साथ बातचीत होगी।

अंतर्विरोधों की शिकार आम आदमी पार्टी

कुमार विश्वास और अरविंद केजरीवाल के बीच अविश्वास की अदृश्य दीवार अब नजर आने लगी है. पिछले शनिवार को राजस्थान के कार्यकर्ताओं की सभा में कुमार विश्वास ने जो कुछ कहा, वह पार्टी हाई कमान को तिलमिलाने भर के लिए काफी था. दिल्ली नगर निगम के चुनाव के बाद से कुमार विश्वास पार्टी के साथ अपने मतभेदों को व्यक्त कर रहे हैं. उन्होंने हाल में एक मीडिया इंटरव्यू में पार्टी के ट्वीट कल्चर पर भी टिप्पणी करते हुए कहा, जो लोग ट्विटर को देश समझते हैं, वे ही देश को ट्विटर समझते हैं.
हाल में पार्टी में हुए फेरबदल के बाद कुमार विश्वास को राजस्थान का प्रभार दिया गया है. वहाँ अगले साल विधानसभा चुनाव हैं. राजस्थान इकाई की पहली बैठक में घोषणा की गई कि पार्टी अरविन्द केजरीवाल के चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ेगी. बैठक में यह भी कहा गया कि पार्टी महारानी हटाओ अभियान के बजाय पानी, बिजली और बेहतर स्वास्थ्य जैसे मसलों को लेकर चुनाव लड़ेगी. दिल्ली का वर्चस्ववाद नहीं चलाया जाएगा. कार्यकर्ता ही प्रदेश के फैसलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे वगैरह.

Monday, June 12, 2017

मध्य एशिया में भारत

अस्ताना में जो डिप्लोमैटिक गेम शुरू हुआ है, उसके दीर्घकालीन निहितार्थ को समझने की कोशिश करनी चाहिए। भारत और पाकिस्तान दोनों अब शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य हैं। यह संगठन आर्थिक और क्षेत्रीय सहयोग के अलावा सामरिक संगठन भी है। कुछ साल पहले जब भारत ने रूस की मदद से इस संगठन में प्रवेश की तैयारी की थी, तब हमारा लक्ष्य मध्य एशिया से जुड़ने का था। इस बीच चीनी प्रयास से पाकिस्तान भी इसका सदस्य बन गया। अब भारत और पाकिस्तान दोनों देश एक साथ इस संगठन में शामिल हुए हैं। भारत को अब इसका सदस्य रहते हुए चीन और पाकिस्तान दोनों पर नजर रखनी होगी। दूसरी और इस संगठन में शामिल होने के बाद पाकिस्तान और चीन के साथ रिश्ते बेहतर होने की सम्भावनाएं भी हैं। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि आने वाला वक्त किस करवट बैठता है।  

मध्य एशिया के साथ जुड़ने में सबसे बड़ी बाधा पाकिस्तान है, जिसने अभी तक हमारे सारे जमीनी रास्ते रोक रखे हैं। अभी तक एससीओ का स्वरूप मध्य एशिया और चीन तक सीमित था, पर अब इसमें दक्षिण एशिया के दो देश पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल हो गए हैं। ईरान तथा अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य में सदस्य बनने की सम्भावनाएं हैं। इसके अलावा नेपाल और श्रीलंका इसके डायलॉग पार्टनर हैं। यह चीनी नेतृत्व की महत्वाकांक्षाओं का विस्तार भी है, जो ‘वन रोड-वन बैल्ट (ओबोर)’ के रूप में इस इलाके में उभर कर आ रहीं हैं।

Sunday, June 11, 2017

शाह ने जानबूझकर कहा गांधी को 'चतुर बनिया'

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के महात्मा गांधी  को चतुर बनिया बताने वाले बयान को कांग्रेस ने राष्ट्रीय अपमान बताकर उनसे माफी माँगने को कहा है. लगता नहीं कि अमित शाह ने यह बात अनायास या अनजाने में कही है. इसके बहाने उन्होंने कांग्रेस और गांधी दोनों पर प्रहार कर दिए. वे कहना चाहते थे कि राजनीतिक दल के रूप में कांग्रेस को भंग कर देना चाहिए था, जिसकी गांधी जैसे नेता ने सलाह दी थी. वस्तुतः यह कांग्रेस के प्रति हिकारत पैदा करने की कोशिश है.