Sunday, May 22, 2016

और कितनी फज़ीहत लिखी है कांग्रेस की किस्मत में?

पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने अपने एक ट्वीट में कहा कि बड़ी सर्जरी की जरूरत है। उन्होंने कहीं यह भी कहा कि गांधी परिवार की वंशज प्रियंका गांधी के राजनीति में आने से कांग्रेसजन को बेहद खुशी होगी। उनमें जननेता के तौर पर उभरने की क्षमता है। अखबारों में उनका यह बयान भी छपा है कि ये चुनाव परिणाम पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व की विफलता को परिलक्षित नहीं करते। तीनों बातें अंतर्विरोधी हैं। तीनों को एकसाथ मिलाकर पढ़ें तो लगता है कि पार्टी के अंतर्विरोधों के खुलने की घड़ी आ रही है। नए और पुराने नेतृत्व का टकराव नजर आने लगा है। समय रहते इसे सँभाला नहीं गया तो असंतोष खुलकर सामने आएगा।

Saturday, May 21, 2016

बीजेपी के प्रभा मंडल का विस्तार

इस चुनाव को बंगाल में ममता दीदी की विस्मयकारी और जयललिताअम्मा की अविश्वसनीय जीत के कारण याद रखा जाएगा। पर इन चुनाव परिणामों की बड़ी तस्वीर है बीजेपी के राष्ट्रीय फुटप्रिंट का विस्तार। उसके लिए पूर्वोत्तर का प्रवेश द्वार खुल गया है। वह असम की जीत को देशभर में प्रचारित करेगी। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पूरे परिणाम आने के पहले ही इस बात को जाहिर भी कर दिया। असम के बाद पार्टी ने बंगाल में पहले से ज्यादा मजबूती के साथ पैर जमाए हैं। और केरल में उसने प्रतीकात्मक, पर प्रभावशाली प्रवेश किया है।

Friday, May 20, 2016

असम में कांग्रेस का 'सेल्फ गोल'

केरल में 'एंटी इनकम्बैंसी' थी, पर असम में कांग्रेस का सेल्फ गोल भी था. गुरुवार को चुनाव का ट्रेंड आने के थोड़ी देर बाद ही राहुल गांधी के दफ्तर ने ट्वीट किया, हम विनम्रता के साथ जनता के फैसले को स्वीकार करते हैं. चुनाव जीतने वाले दलों को मेरी शुभकामनाएं. एक और ट्वीट में उन्होंने कहा, पार्टी लोगों का भरोसा जीतने तक कड़ी मेहनत करती रहेगी. इस औपचारिक सदाशयता को अलग रखते हुए सवाल पूछें कि अब पार्टी के सामने विकल्प क्या हैं? वह ऐसा क्या करेगी, जिससे लोगों का भरोसा दोबारा जीता जा सके. पाँच राज्यों की विधानसभाओं के परिणामों का निहितार्थ अगले साल होने वाले चुनावों में नजर आएगा. 

Wednesday, May 18, 2016

बीजेपी को मिलेगा 'पैन इंडिया' इमेज बनाने का मौका

बीजेपी के पास पूरे भारत में पकड़ बनाने का मौक़ा

  • 6 घंटे पहले
पाँच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव परिणाम दोनों मुख्य राजनीतिक दलों के लिए बड़े संदेश लेकर आएंगे. इनसे पता लगेगा कि प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने की 'बीजेपी की महत्वाकांक्षा' और घटते प्रभाव के 'कांग्रेसी ख़तरे' कितने वास्तविक हैं.
ये क्षेत्रीय चुनाव हैं. इनका आपस में कोई रिश्ता नहीं है, पर इनके भीतर छिपा राष्ट्रीय संदेश भी होगा. दोनों पार्टियों को इन परिणामों के मद्देनजर कुछ बड़े फैसले करने होंगे. शायद कांग्रेस अब राहुल गांधी को पार्टी का पूर्ण अध्यक्ष घोषित कर दे.
नरेंद्र मोदी के समर्थकImage copyrightEPA
पिछले साल बिहार में बीजेपी की पराजय का कोई संदेश था तो असम में जीत का संदेश भी होगा. इससे बीजेपी को 'पैन इंडिया' छवि बनाने का मौका मिलेगा.
अलबत्ता यह देखना होगा कि दोनों पार्टियाँ इन परिणामों को लेकर किस तरह दिल्ली वापस आएंगी और अपने समर्थकों को क्या संदेश देंगी. ये परिणाम अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को भी प्रभावित करेंगे. खासतौर से उत्तर प्रदेश को.
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इन परिणामों से क्षेत्रीय राजनीति के बदलते समीकरणों पर भी रोशनी पड़ेगी. दो महत्वपूर्ण महिला क्षत्रपों का भविष्य भी इन चुनावों से जुड़ा है. फिलहाल 'दीदी' की राजनीति उठान पर और 'अम्मा' की ढलान पर जाती नज़र आती है.
इस बात का संकेत भी मिलेगा कि 34 साल तक वाममोर्चे का गढ़ रहा पश्चिम बंगाल क्या 'वाम मुक्त भारत' का नया मुहावरा भी देगा? यह सवाल उठेगा कि वामपंथी पार्टियों की राष्ट्रीय अपील घटते-घटते हिन्द महासागर के तट से क्यों जा लगी है?
इन परिणामों में जो नई बातें जाहिर होंगी, उनमें सबसे महत्वपूर्ण है भारतीय जनता पार्टी का चार राज्यों में प्रदर्शन. असम में यदि उसे पूर्ण बहुमत मिला या वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी तो यह एक नई शुरूआत होगी.
यह सफलता उसे असम की जटिल जातीय और क्षेत्रीय संरचना और 'अपने-पराए' पर केंद्रित राजनीति के कारण मिलेगी. यह शेर की सवारी है, आसान नहीं. पिछले तीन दशक से असम किसी न किसी प्रकार के आंदोलनों से घिरा है. बीजेपी के लिए यह एक अवसर साबित हो सकता है और काँटों का ताज भी.


Tuesday, May 17, 2016

चुनावी चंदे की पारदर्शिता का सवाल

बीजेपी और कांग्रेस तमाम मुद्दों पर एक दूसरे के विरोधी हैं, पर विदेशी चंदे को लेकर एक दूसरे से सहमत हैं. ये दोनों पार्टियाँ विदेशी चंदा लेती हैं, जो कानूनन उन्हें नहीं लेना चाहिए. इसी तरह राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर रखने के मामले में भी दोनों दलों की राय एक है. हाल की कुछ घटनाएं चेतावनी दे रहीं हैं कि चुनावी चंदे की व्यवस्था को पारदर्शी बनाने का समय आ गया है.

भारत की चुनाव व्यवस्था दुनिया में काले पैसे से चलने वाली सबसे बड़ी व्यवस्था है. जिस व्यवस्था की बुनियाद में ही काला धन हो उससे सकारात्मक बदलाव की उम्मीद कैसे की जा सकती है? दो साल पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने विदेशी कम्पनी वेदांता से चुनावी चंदा लेने के लिए दो राष्ट्रीय पार्टियों कांग्रेस और बीजेपी को दोषी पाया था. 28 मार्च, 2014 को अदालत ने फ़ैसले पर अमल के लिए चुनाव आयोग को छह महीने की वक़्त दिया.