Sunday, September 27, 2015

आरक्षण पर बहस का पिटारा फिर खुला

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण के बारे में जो राय व्यक्त की है उसका उद्देश्य यदि इस अवधारणा के राजनीतिक दुरुपयोग पर प्रहार करना है तो इससे ज्यादा गलत समय कोई और नहीं हो सकता था। हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने फौरन ही अपने आप को इस बयान से अलग कर लिया है, पर राजनीतिक स्तर पर जो नुकसान होना था, वह हो चुका। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी स्पष्ट किया है कि इस बयान का लक्ष्य मौजूदा आरक्षण नीति पर टिप्पणी करना नहीं है। पर उन्होंने जिस बात की ओर इशारा किया था उसका निहितार्थ फौरन सामने है। राजद सुप्रीमो लालू यादव ने फौरन ट्वीट किया, ‘तुम आरक्षण खत्म करने की कहते हो,हम इसे आबादी के अनुपात में बढ़ाएंगे। माई का दूध पिया है तो खत्म करके दिखाओ। किसकी कितनी ताकत है पता लग जाएगा।’
लालू यादव ने आबादी के अनुपात में आरक्षण का संकेत देकर इस बहस की भावी दिशा को भी निर्धारित कर दिया है। एक दशक पहले चली ओबीसी आरक्षण पर राष्ट्रीय बहस में हमारे पास कोई जनगणना के जातीय आँकड़े नहीं थे। मंडल आयोग ने 1931 की जनगणना के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि 52 प्रतिशत लोग ओबीसी वर्ग में आते हैं। इसके बाद नेशनल सैंपल सर्वे से पता लगा कि करीब 41 प्रतिशत लोग ओबीसी वर्ग में हैं। ओबीसी आरक्षण को जातीय आधार पर स्वीकार कर लेने के बाद यह स्वाभाविक माँग होगी कि यदि अजा-जजा आरक्षण जनसंख्या के आधार पर है तो फिर यही नियम ओबीसी पर लागू होना चाहिए। बिहार चुनाव में जो होगा सो होगा। मोहन भागवत चाहें या न चाहें, जातीय जनगणना के आँकड़े सामने आने के बाद बहस यों भी आगे बढ़ेगी। 

Friday, September 25, 2015

सायबर कानून में हड़बड़ी के खतरे

सरकार ने चौबीस घंटे के भीतर राष्ट्रीय एनक्रिप्शन (कूटलेखन) नीति का मसौदा वापस लेकर नया रिकॉर्ड कायम किया है। प्रस्तावित नीति की सोशल मीडिया पर हुई आलोचना को देखते हुए सरकार ने फौरन अपने कदम खींच लिए। प्रस्तावित दस्तावेज की भाषा को लेकर सरकार सांसत में आ गई थी। अंततः जिम्मेदारी दस्तावेज तैयार करने वालों पर डाल दी गई। सरकार के लिए सांसत की बात इसलिए थी कि यह मामला ठीक ऐसे मौके पर उठा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की सिलिकॉन वैली जाने वाले हैं। वे फेसबुक के मुख्यालय से सीधे लोगों के सवालों के जवाब देंगे। बहरहाल दस्तावेज को फौरन वापस लेने के सरकारी फैसले की तारीफ भी होनी चाहिए। इस बात को भी मान लिया जाना चाहिए कि एनक्रिप्शन नीति पर गहराई से विचार करने की जरूरत है, क्योंकि वैश्विक सुरक्षा को देखते हुए इसे यों ही छोड़ा नहीं जा सकता।

Thursday, September 24, 2015

बच्चे किताबें इसलिए नहीं पढ़ते क्योंकि माता-पिता ने पढ़ना छोड़ दिया

जार्डन सैपाइरो

आप अपने बच्चे को जैसा बनाना चाहते हैं पहले खुद वैसा बनिए। यह बात बच्चों के व्यवहार पर किए जाने वाले अध्ययनों से जाहिर होती है। माता-पिता की गतिविधियों और बच्चों में पढ़ने की ललक के बीच गहरा सम्बन्ध पाया गया है (स्कौलेस्टिक, 2013). उदाहरण के लिए, नियमित रूप से पढ़ने वाले बच्चों में 57% के माता-पिता ने अपने बच्चों के पढ़ने के लिए रोजाना अलग से समय निर्धारित किया हुआ है. इसके विपरीत अनियमित रूप से पढ़ने वाले बच्चों में सिर्फ 17% के माता-पिता ने ही ऐसी व्यवस्था की है. आशुतोष उपाध्याय ने जॉर्डन सैपाइरो के इस लेख का अनुवाद करके भेजा है, जो पठनीय है

यह एक सांस्कृतिक मान्यता है कि आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बच्चों को किताबों से दूर कर रहे हैं. मैं जब दूसरे विश्वविद्यालयी प्राध्यापकों से मिलता हूं तो वे अक्सर शिकायत करते हैं कि विद्यार्थी अब पढ़ते नहीं हैं क्योंकि उनकी आंखें हर वक्त उनके फोन से चिपकी रहती हैं. टेक्नोफोब (टेक्नोलॉजी से भयभीत रहने वाले) जमात के लोग सोचते हैं कि हम एक ऐसी पीढ़ी को तैयार कर रहे हैं जो साहित्य की कीमत नहीं समझती. नए और पुराने के बीच ध्रुवीकरण जारी है. संभव है यह धारणा किसी स्क्रीन-विरोधी मानस की बची-खुची भड़ास हो जो टेलीविजन के स्वर्णकाल की परिधि से बाहर नहीं निकल पाता. यह पिटी-पिटाई मनगढ़ंत कहानी भी हो सकती है जो तकनीकी साम्राज्यवाद के खिलाफ संग्राम में किताबों की हार पर छाती कूट-कूट कर कह रही है- कागज सच्चा नायक और गोरिल्ला ग्लास दुष्ट खलनायक!

Tuesday, September 22, 2015

नेताजी को लेकर इतनी ‘गोपनीयता’ ठीक नहीं


हो सकता है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लेकर जो संदेह व्यक्त किए जा रहे हैं वे निर्मूल साबित हों, पर यह बात समझ में नहीं आती कि सत्तर साल बाद अब वे कौन से रहस्य हैं जिनके सामने आने से हमारे रिश्ते दूसरे देशों से बिगड़ जाएंगे। पारदर्शिता का तकाजा है कि गोपनीयता के वर्ष तय होने चाहिए। तीस-चालीस या पचास साल क्या इतिहास पर पर्दा डालने के लिए काफी नहीं होते? यदि ऐसा रहा तो दुनिया का इतिहास लिखना मुश्किल हो जाएगा। दूसरी ओर अतिशय गोपनीयता कई तरह की अफवाहों को जन्म देती है, जो हमारे हित में नहीं है।

अब जब पश्चिम बंगाल सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत कर दिया है, भारत सरकार पर इस बात का दबाव बढ़ेगा कि वह अपनी फाइलों को भी गोपनीयता के दायरे से बाहर लाए। यह बात इसलिए जरूरी लगती है क्योंकि बंगाल की फाइलों की शुरुआती पड़ताल से यह संदेह पुख्ता हो रहा है कि नेताजी का निधन 18 अगस्त 1945 को हुआ भी था या नहीं। फाइलों के 12,744 पृष्ठ पढ़ने और उनका निहितार्थ समझने में समय लगेगा, पर राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि मैंने उसमें से कुछ फाइलें पढ़ीं। उन फाइलों के अनुसार 1945 के बाद नेताजी के जिंदा होने की बात सामने आई है।

Wednesday, September 16, 2015

बिहार पहले दौर की अधिसूचना आज

बिहार में आज पहले दौर के चुनाव की अधिसूचना जारी होगी। इन क्षेत्रों में नामांकन की आखिरी तारीख 23 और नाम वापसी की तारीख 26 सितम्बर है। मतदान 12 अक्तूबर को होगा। 

12 अक्टूबर 

पहले चरण में भागलपुर मंडल के दोनों जिले भागलपुर और बांका, मुंगेर प्रमंडल के सभी पांचों जिले मुंगेर, लखीसराय, शेखपुरा, खगड़िया, जमुई के साथ मिथिला मंडल के समस्तीपुर, बेगूसराय और मगध मंडल के नवादा जिलों में वोट डाले जाएंगे. यानी कुल 10 जिलों की 49 सीटों पर वोटिंग होगी. 2010 में इन 49 सीटों में से जेडीयू के पास 29, बीजेपी के पास 13, आरजेडी के पास 4, कांग्रेस के पास 1 और अन्य के पास 2 सीटें थी.

इन सीटों के नाम इस प्रकार हैं-